जनगणना के आंकड़ों का प्रदेश के समग्र विकास में उपयोग किया जाए। इन आंकड़ों के साथ आने वाले १० सालों तक प्रदेश के विकास योजना बनाई जाएंगी, लिहाजा आंकड़ों का विशलेषण बेहद जरूरी है। ग्रामीण विकास के सचिव डॉ. राजेश राजौरा ने यह बात होटल लेक व्यू अशोक में आयोजित जनगणना निदेशलाय द्वारा आयोजित कार्यशाला में कही। राजौरा ने यहां बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की।
कार्यशाला में मप्र की तुलना देश के आंकड़ों से करते हुए इसका प्रस्तुतिकरण किया। इस दौरान बताया कि मप्र की जनगणना दो चरणों में संपन्न हुई। इस पर आधारित विश्लेषणात्म पुस्तकों का प्रकाशन किया है। वहीं द्वितीय चरण की जनसंख्या की गणना को जनगणना कार्य निदेशालय मप्र ने उन्हें सीडी फार्म में भी तैयार किया है। दो दिवसीय इस कार्यशाला का समापन शनिवार को होगा। कार्यशाला में शासकीय-गैर शासकीय संगठन भाग ले रहे हैं।
राजौरा ने कहा केन्द्र एवं राज्य सरकार की अनेक योजनाएं है, जिनमें आवास, पेयजल, विद्युतीकरण, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि शामिल है, इनकी जमीनी हकीकत जानने जनसंख्या के साथ आंकड़ों होना बेहद जरूरी है। विश्व खाद्य कार्यक्रम के सलाहकार वसीम अख्तर ने कहा- इन आंकड़ों को जिला-स्तर पर भी पहुंचाने की आवश्यकता है। हर जिले की अपनी सामाजिक एवं भौगोलिक स्थिति है। इन आंकड़ों का उनके लिए सही तरीके से उपयोग किया जा सकता है। सचिन सिन्हा ने बताया कि प्रदेश में 7 मई से 22 जून, 2010 तक मकान सूचीकरण का काम किया गया है। इसमें एक लाख 20 हजार प्रगणक लगे। इसमें लगभग 19 हजार पर्यवेक्षकों ने कार्य की निगरानी की। कार्यशाला को यूनीसेफ के प्रतिनिधि कुमार प्रेमचंद और एक्शन ऑफ सोशल एडवांस के प्रतिनिधि आशीष मण्डल भी उपस्थित थे।
कार्यशाला में मप्र की तुलना देश के आंकड़ों से करते हुए इसका प्रस्तुतिकरण किया। इस दौरान बताया कि मप्र की जनगणना दो चरणों में संपन्न हुई। इस पर आधारित विश्लेषणात्म पुस्तकों का प्रकाशन किया है। वहीं द्वितीय चरण की जनसंख्या की गणना को जनगणना कार्य निदेशालय मप्र ने उन्हें सीडी फार्म में भी तैयार किया है। दो दिवसीय इस कार्यशाला का समापन शनिवार को होगा। कार्यशाला में शासकीय-गैर शासकीय संगठन भाग ले रहे हैं।
राजौरा ने कहा केन्द्र एवं राज्य सरकार की अनेक योजनाएं है, जिनमें आवास, पेयजल, विद्युतीकरण, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि शामिल है, इनकी जमीनी हकीकत जानने जनसंख्या के साथ आंकड़ों होना बेहद जरूरी है। विश्व खाद्य कार्यक्रम के सलाहकार वसीम अख्तर ने कहा- इन आंकड़ों को जिला-स्तर पर भी पहुंचाने की आवश्यकता है। हर जिले की अपनी सामाजिक एवं भौगोलिक स्थिति है। इन आंकड़ों का उनके लिए सही तरीके से उपयोग किया जा सकता है। सचिन सिन्हा ने बताया कि प्रदेश में 7 मई से 22 जून, 2010 तक मकान सूचीकरण का काम किया गया है। इसमें एक लाख 20 हजार प्रगणक लगे। इसमें लगभग 19 हजार पर्यवेक्षकों ने कार्य की निगरानी की। कार्यशाला को यूनीसेफ के प्रतिनिधि कुमार प्रेमचंद और एक्शन ऑफ सोशल एडवांस के प्रतिनिधि आशीष मण्डल भी उपस्थित थे।
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