जनगणना कार्य निदेशालय के जारी ताजा आंकड़ों में हुआ खुलासा
मध्य प्रदेश के जिलों में २००१ की अपेक्षा २०११ में क्रमश: १४० की जगह १८५ लाख मकान बढ़े हैं। राष्ट्रीय स्तर पर यह वृद्धि दर ३२ प्रतिशत है। बावजूद इसके जमीनी सुविधाएं कोसो दूर हैं। प्रदेश की मात्र २९ फीसदी आबादी को शौचालय उपलब्ध हैं, वहीं ४८ प्रतिशत लोगों ही छतवाले स्नानगृह (बाथरूम) का उपयोग कर रहे हैं। यह खुलासा कर रही जनगणना कार्य निदेशालय की ताजा रिपोर्ट। मप्र की स्थिति हालांकि कुछ क्षेत्रों में पहले से बेहतर हुई है, लेकिन रफ्तार धीमी ही रही। कछुआ चाल गति के चलते मप्र पिछड़ा बना हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय संस्था यूनीसेफ ने भी माना है कि २१ फीसदी लोगों तो पीने योग्य पानी ही नसीब नहीं हो पाता। प्रदेश ने बीते १० सालों में कृषि विकास दर में भले ही देश में परचम लहराया हो और अग्रणि राज्यों की पंक्ति में गिना जाने लगा। बावजूद इसके ग्रामीण क्षेत्र में ही सबसे ज्यादा सुविधाओं का आभाव बना हुआ है। ७४.७ फीसदी ग्रामीणों के पास गंदे पानी की निकासी की सुविधा नहीं है। वहीं ६६.४ प्रतिशत परिवार जलाऊ लकड़ी का उपयोग कर रहे हैं, इसमें ४०.८५ प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
-हकीकत बताते आंकड़े
जनगणना के ताजा आंकड़ों के हिसाब से मात्र २३.३ फीसदी परिवार पेयजल नल से प्राप्त कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में ९.९ व नगरीय क्षेत्र में ६२.२ प्रतिशत परिवार नल के जरिए पानी ले रहे हैं। एक दश के दौरान २६.५ प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन राष्ट्रीय ग्राफ पर यह रैंक २९ है। जाति आधार पर अनुसूचित जाति के २०.४ और अनुसूचित जनजाति के ८.८ पर्सेन्ट परिवार ही नलों जरिए पानी ग्रहण कर रहे हैं। प्रदेश में हैंडपंप पर निर्भर रहने वालों का प्रतिशत ४७ है। गांवों में ५८.३ और शहर में १४.६ फीसदी रहवासी पीने के पानी इनसे ले रहे हैं। कुंए की बात करें तो २० प्रतिशत लोग इसे उपयोग में ले रहे हैं। ७.६ प्रतिशत परिवारों को ट्यूबवेल का पानी उपलब्ध है। गांव में यह आंकड़ा ४.९ व शहरी इलाकों में १५.३ प्रतिशत के आसपास है।
-अच्छी खबर भी
नवीन आंकड़ों में अच्छी खबर भी है। वह ये कि बीते १० वर्ष की तुलना में ६७ फीसदी परिवारों को बिजली मिली उपलब्ध हुई है। वृद्धि दर की बात करें तो यह ३१.४ प्रतिशत है। ग्रामीण इलाकों में करंट दौड़ा है। यहां यह प्रतिशत ५८.३ तो शहरों में ९२.७ प्रतिशत परिवार प्रकाश का उपभोग कर रहे हैं। अजा-अजजा का प्रतिशत भी क्रमश: ६५.२ व ५४.० प्रतिशत है। अब ग्रामीण क्षेत्रों ०.२ प्रतिशत परिवारों के यहां खाना पकाने के लिए एलपीजी का उपयोग हो रहा है। नगरीय क्षेत्र में यह ग्राफ ४.५ के आसपास है।
संचार क्रांति में भी ग्रामीण मप्र आगे है। ग्रामों में १८.६ व नगरीय क्षेत्रों में ७१.३ प्रतिशत परिवारों के पास टेलीवीजन है। दशक के दौरान यह वृद्धि प्रतिशत ४८.६ है। ४६ प्रतिशत परिवार बैंकिंग सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं, इनमें गांव में ४.७ तों शहरों में ६३.५ फीसदी परिवारों के पास बैंकों के अकाउंट हैं। सबसे गजब की वृद्धि बैंकिंग सेक्टर में दिखाई दी है। यह वृद्धि दर १२८.८ प्रतिशत है। जो सर्वोच्य है।
मध्य प्रदेश के जिलों में २००१ की अपेक्षा २०११ में क्रमश: १४० की जगह १८५ लाख मकान बढ़े हैं। राष्ट्रीय स्तर पर यह वृद्धि दर ३२ प्रतिशत है। बावजूद इसके जमीनी सुविधाएं कोसो दूर हैं। प्रदेश की मात्र २९ फीसदी आबादी को शौचालय उपलब्ध हैं, वहीं ४८ प्रतिशत लोगों ही छतवाले स्नानगृह (बाथरूम) का उपयोग कर रहे हैं। यह खुलासा कर रही जनगणना कार्य निदेशालय की ताजा रिपोर्ट। मप्र की स्थिति हालांकि कुछ क्षेत्रों में पहले से बेहतर हुई है, लेकिन रफ्तार धीमी ही रही। कछुआ चाल गति के चलते मप्र पिछड़ा बना हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय संस्था यूनीसेफ ने भी माना है कि २१ फीसदी लोगों तो पीने योग्य पानी ही नसीब नहीं हो पाता। प्रदेश ने बीते १० सालों में कृषि विकास दर में भले ही देश में परचम लहराया हो और अग्रणि राज्यों की पंक्ति में गिना जाने लगा। बावजूद इसके ग्रामीण क्षेत्र में ही सबसे ज्यादा सुविधाओं का आभाव बना हुआ है। ७४.७ फीसदी ग्रामीणों के पास गंदे पानी की निकासी की सुविधा नहीं है। वहीं ६६.४ प्रतिशत परिवार जलाऊ लकड़ी का उपयोग कर रहे हैं, इसमें ४०.८५ प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
-हकीकत बताते आंकड़े
जनगणना के ताजा आंकड़ों के हिसाब से मात्र २३.३ फीसदी परिवार पेयजल नल से प्राप्त कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में ९.९ व नगरीय क्षेत्र में ६२.२ प्रतिशत परिवार नल के जरिए पानी ले रहे हैं। एक दश के दौरान २६.५ प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन राष्ट्रीय ग्राफ पर यह रैंक २९ है। जाति आधार पर अनुसूचित जाति के २०.४ और अनुसूचित जनजाति के ८.८ पर्सेन्ट परिवार ही नलों जरिए पानी ग्रहण कर रहे हैं। प्रदेश में हैंडपंप पर निर्भर रहने वालों का प्रतिशत ४७ है। गांवों में ५८.३ और शहर में १४.६ फीसदी रहवासी पीने के पानी इनसे ले रहे हैं। कुंए की बात करें तो २० प्रतिशत लोग इसे उपयोग में ले रहे हैं। ७.६ प्रतिशत परिवारों को ट्यूबवेल का पानी उपलब्ध है। गांव में यह आंकड़ा ४.९ व शहरी इलाकों में १५.३ प्रतिशत के आसपास है।
-अच्छी खबर भी
नवीन आंकड़ों में अच्छी खबर भी है। वह ये कि बीते १० वर्ष की तुलना में ६७ फीसदी परिवारों को बिजली मिली उपलब्ध हुई है। वृद्धि दर की बात करें तो यह ३१.४ प्रतिशत है। ग्रामीण इलाकों में करंट दौड़ा है। यहां यह प्रतिशत ५८.३ तो शहरों में ९२.७ प्रतिशत परिवार प्रकाश का उपभोग कर रहे हैं। अजा-अजजा का प्रतिशत भी क्रमश: ६५.२ व ५४.० प्रतिशत है। अब ग्रामीण क्षेत्रों ०.२ प्रतिशत परिवारों के यहां खाना पकाने के लिए एलपीजी का उपयोग हो रहा है। नगरीय क्षेत्र में यह ग्राफ ४.५ के आसपास है।
संचार क्रांति में भी ग्रामीण मप्र आगे है। ग्रामों में १८.६ व नगरीय क्षेत्रों में ७१.३ प्रतिशत परिवारों के पास टेलीवीजन है। दशक के दौरान यह वृद्धि प्रतिशत ४८.६ है। ४६ प्रतिशत परिवार बैंकिंग सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं, इनमें गांव में ४.७ तों शहरों में ६३.५ फीसदी परिवारों के पास बैंकों के अकाउंट हैं। सबसे गजब की वृद्धि बैंकिंग सेक्टर में दिखाई दी है। यह वृद्धि दर १२८.८ प्रतिशत है। जो सर्वोच्य है।
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