-उनके नाम से प्रदेश सरकार नहीं देती सम्मान
हेमन्त पटेल, भोपाल।
मैं मध्य प्रदेश! १ नवंबर २०१२ को ५६ वर्ष का हो गया। जहन में बात उठना लाजमी है, आज ३१ दिसंबर को यह बात क्यों कह रहा हूं? दरअसल, मेरा 'जनक' (पं. रविशंकर शुक्ल) जिसने मेरा श्रृजन किया मेरे नाम की कृति देश ही नहीं दुनिया में फैलाई। उसी विराट पुरुष का अपनी ही माटी में बैगानों जैसा हाल है। रवि की आज ५६वीं पुण्य तिथि है।
इन ५६वर्षों में मप्र में काफी कुछ बदला। दर-ओ-दीवार से लेकर गुम्बदे मीनार तक, लेकिन अब तक रवि की समाधि पर उसके नाम का पत्थर तक न लग सका। न ही मप्र सरकार उसके नाम से किसी प्रकार का जलसा-सम्मान आयोजित करती है। रवि तब-तब याद आता है। जब-जब राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मेरी बात चलती है। मुझे याद है! १९९२ में नागपुर में पहला हिन्दी सम्मेलन आयोजित हुआ, रवि ने ही इसे मप्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन नाम दिया और अध्ययक्षता करते हुए कार्यक्रम को सफल बनाया। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से मप्र को प्रथक राज्य का दर्जा दिलाने दमदारी से बात रखी।
-अपने भी भूल गए
विधायक विश्रामगृह-1 के सामने पं. शुक्ल की समाधि है। यहां शुक्ल की मूर्ति तो लगी है, वहीं उद्यान में भी पं. रशिशंकर शुक्ल वाटिका का बोर्ड लगा है, लेकिन समाधि पर शुक्ल न नाम है न कोई संकेतिक बोर्ड। यहां कहीं ऐसा भी नहीं लिखा जो यह दर्शाए कि उक्त समाधि पं. शुक्ल की ही है। गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा तो दूसर कांग्रेस के प्रत्याशी भी उन्हें भूल गए हैं। कांग्रेसियों ने भी कभी पं. शुक्ल को लेकर किसी प्रकार के सामूहिक कार्यक्रम, उनके नाम से सम्मान, योजना चलाने का प्रयास नहीं किया।
पं. शुक्ल एक परिचय
जन्म- 2 अगस्त 1877 को सागर में।
शिक्षा- सागर तथा रायपुर में। स्नातक और कानून की शिक्षा प्राप्त की।
पहला काम- 1902 में खैरागढ़ रियासत में प्रधानाध्यापक के पद पर नियुक्त हुए।
यह भी- कानून की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद राजनांदगांव में वकालत शुरू की।
प्रभाव- लोकमान्य तिलक के विचारों से प्रभावित रहे, उनके द्वारा संचालित होम रुल आंदोलन का समर्थन किया।
सदस्यता- 1921 में कांग्रेस की औपचारिक सदस्यता ग्रहण की।
प्रकाशन- 1935 में महाकोशल साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन किया।
आंदोलन- 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व का भार छत्तीसगढ़ में संभाला।
लेखक भी- राजनेता होने के साथ शुक्ल अच्छे वक्ता और लेखक भी थे।
...और इतिहास- 1946 में राज्य विधानसभा में मध्यप्रांत के मुख्यमंत्री और फिर अविभाजित मप्र के प्रथम मुख्यमंत्री बने।
इसलिए निर्माता- स्वतंत्रता के बाद रियासतों के विलय में भी आपने महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसलिए आधुनिक मध्यप्रदेश का निर्माता कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में औद्योगिक क्रांति के समर्थक थे। भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना का श्रेय शुक्ल को ही है।
-छग का भी श्रेय शुक्ल को
संसद में छत्तीसगढ राज्य के गठन के विधेयक प्रस्तुत करते समय भारत के तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवानी ने यह स्पष्ट कहा कि छत्तीसगढ़ को राज्य का दर्जा दिलाने का श्रेय यदि किसी एक व्यक्ति को जाता है तो वे पं. रविशंकर शुक्ल हैं।
-...और छग करता है यह
छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृती में सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षणिक क्षेत्र में अभिनव प्रयत्नों के लिए पं. रविशंकर शुक्ल सम्मान स्थापित किया है।
-सरकार में रखेंगे पक्ष
मैं इसकी जानकारी लेता हूं। इस संबंध में सरकार के सामने भी पक्ष रखा जाएगा कि पुण्यतिथि व जयंती पर कार्यक्रम आयोजित हों। साथ ही उनके नाम से योजना व सम्मान समारोह कराने की बात सरकार में रखेंगे।
नरोत्तम मिश्रा, संसदीय कार्य मंत्री, मप्र शासन
-मैं मुख्यमंत्री से आग्रह करूंगा...
निश्चित ही यह दु:खद है कि प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल की स्मृति में स्थापित मूर्ति और पार्क इतना बदहाल है और सरकार की अपेक्षा का शिकार है। यह भाजपा सरकार की उस उदार मानसिकता का झूठ बतलाती है जो वह प्रचारित करने के लिए बोलती और दिखाती है। मैं मुख्यमंत्री से आग्रह करूंगा कि वे दलगत भावना से ऊपर उठकर जैंसा वे कहते हैं प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल की मूर्ति और उनकी स्मृति में स्थापित पार्क को सम्मान प्रदान करे ताकि भोपाल सुंदर होने के साथ ही अपने गौरवशाली अतीत को भी स्मृति पटल में अंकित रख सके।
अजय सिंह, नेता प्रतिपक्ष
-उनके नाम से स्कॉलरशिप शुरू की जाए
पं. शुक्ल की नातिन विजयालक्ष्मी शुक्ल (७५) कहती हैं मुझे ही नहीं पता कि नानाजी (पं. शुक्ल) की समाधि भोपाल में है, तो आम व्यक्ति को कैसे पता चलेगा? एक सवाल के जवाब में वह कहती हैं कि यह विडंबना और आश्चर्यचकित कर देने वाली बात है कि जिसने मप्र गढ़ा उसी के नाम और काम को सरकार व सरकार के लोग भूल गए। पुण्यतिथि को आज ५६ साल हो गए। श्रीमती शुक्ल ने कहा वे बच्चों से प्रेम करते थे, वे हमेशा शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को प्रोत्साहित करते थे। मप्र सरकार चाहे तो उनके नाम से स्कॉलरशिप योजना शुरू कर सकती है। मप्र के साथ उन्होंने छत्तीसगढ़ की भी निर्माण किया। छग में उनके नाम से सम्मान समारोह आयोजित किया जाता है। उसी तरह मप्र सरकार को भी करना चाहिए। मैं विद्याचरण से कहूंगी कि वे प्रदेश व केंद्र सरकार में उनके नाम से किसी प्रकार कोई आयोजन व योजना शुरू करने का अग्रह करें।
-अपने भी भूल गए
मप्र काफी बड़ा था, इसे मूलरूप देने उन्होंने हर संभव प्रयास किया। भले ही वे कांग्रेस में थे, लेकिन जब मप्र की बात आती तो वे किसी की न सुनते। मप्र के निर्माण के लिए कांग्रेस के दिग्गजों से भी जूझे और प्रदेश का हक दिलाया। यह कहना है पं. शुक्ल की बेटी क्रांति त्रिवेदी का। फोन पर चर्चा में उन्होंने कहा भोपाल में उनके नाम से एक मार्केट (पं. रविशंकर मार्केट) और सड़क भर है। १ नवंबर (मप्र स्थापना दिवस) तो आयोजित होता है। इसमें लाखों-करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन मप्र के युग पुरुष की गाथा मप्र के युवाओं तक पहुंचे ऐसा प्रयास किसी भी सरकार ने नहीं किया। मुझे बेहद खेद है कि अपने (कांग्रेस) भी उन्हें भूल गए। वर्तमान सरकार को भी दायित्व बनता है कि उनके नाम को और ऊंचाइयां दी जाएं।
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