
बहुरंगी सांस्कृति परंपराओं के लिए पहचाने जाने वाले देष के पष्चिमी प्रांत राजस्थान के कलात्मक परिदृृष्य को निरंतरता प्रदान करने में वहां की लोक कलाओं का महत्वपूर्ण योगदान है फिर चाहे वह कला का कोई भी क्षेत्र क्यों न हो। कलाकारों ने समयानुसार कहीं कहीं नवाचार षामिल करते हुए इन परंपराओं को निरंतरता और विस्तार प्रदान किया है। राजस्थान की विविध कला परंपराओं में से मिनिएचर या लघुचित्रण कला विषेष है जिसमें एक छोटी सी चित्र रचना में भी छोटी से छोटी चीज को पूरे विस्तार के साथ चित्रित किया जाता है। मुगलकाल में दरबारों और महलों को सजाने हेतु प्रादुर्भाव में आई मिनिएचर चित्रकला अत्यधिक श्रम साध्य और कलात्मक कौषल की आवष्यकता होती हे। तथापि स्थानीय कलाकारों ने कुछ प्रयोग कर कला के प्रति रूझान को बनाये रखा है। इसी क्रम में इम्बोज्ड चित्रकला उल्लेखनीय है। पतली प्लाई की समतल पृृष्ठभूमि पर कागज की लुगदी, मुलतानी मिटटी, गोंद और मेथी दाने के मिश्रण से आकृतियों का मूल रूप तैयार किया जाता है तथा सूखने पर आवष्यकतानुसार जल तथा वानस्पतिक रंगों का इस्तेमाल कर कलाकृृति को पूर्ण किया जाता है। विषयवस्तु के रूप में मुगल दरबार और कभी कभी ग्रामीण वातावरण को लिया जाता है। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत कौषल के आधार पर भी विषयवस्तु रखी जा सकती है। राजस्थान की इस कला के पारंपरागत कलाकार श्री जगदीष स्वामी एवं श्रीमती मनीषा स्वामी प्रतिभागियों को सिरेमिक कार्यषाला में रोजना सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक प्रषिक्षण दे रहे हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें