मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

'जख्म-ए-जमीं' पार्ट-1

विकास अनुमति १० की, 20 एकड़ पर निर्माण 
-ग्रीन पार्क कालोनी बनाने में राजधानी लैंड हाउसिंग कार्पोरेशन ने की गड़बडिय़ां 
भोपाल।
स्टेशन रोड (80 फीट) पर बसाई गई वर्धमान ग्रीन पार्क कालोनी को कालोनाइजर पुनीत गोधा व संगीता गोधा ने १० एकड़ की विकास अनुमति ले २० एकड़ पर बसा दिया। पुनीत गोधा ने यह काम इतनी चतुराई से किया कि कागजों में कलेक्टर से लेकर एसडीएम तक को कटघरे में खड़ा होना बताया और सिविल न्यायालय को प्रस्तुत कर झूठे दस्तावेजों पर स्टे ले लिया। इस गड़बड़ी में साथ दिया आरआई प्रमोद श्रीवास्तव व शासकीय अधिवक्ता पुरुषोत्म पंजवानी ने। 
ताज्जुब की बात यह है कि कलेक्टोरेट की लेटिगेशन शाखा से कब लेटर जारी हुआ और कब प्रकरण न्यायालय में चला गया। इस बारे में कलेक्टर और अनुविभागीय गोविन्दपुरा को पता ही नहीं है। इस पूरे खेल को जिला प्रशासन की वरिष्ठ अधिकारियों की नजरों से बचाकर अंजाम दिया गया। मेसर्स राजधानी लैंड हाउसिंग कार्पोरेशन के संचालक पुनीत गोधा ने कालोनी के निमार्ण में भी भारी अनियमितताएं बरती हैं। वार्ड क्र-६५, जोन-८ के अंतर्गत आने वाले अशोका गार्ड, ग्राम हिनोतिया कांछियान-सेमराकलां के खसरा क्र्र.- ३६, ३८, ४१ एवं ९४/३७ में से ४.७१ एकड़ तथा खसरा क्र.- २१६, २१५, १४२, ३६ में से १५.29 एकड़ कुल रकबा 20 एकड़ पर पुनीत गोधा ने कालोनी का निर्माण किया। गौर करने वाली बात यह है कि कालोनी में की गई भारी अनियमितताओं की कई बार शिकायतें हुईं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं। 

-खड़े होते हैं सवाल पर सवाल 
जिस प्रकरण में न्यायालय ने स्टे कर अंतिम आदेश पारित किया है। उसमें भवन अनुज्ञा संबंधी किसी बात का उल्लेख ही नहीं है। न ही नगर निगम इसमें पक्षकार है। दूसरी ओर कलेक्टर की तरफ से आरआई प्रमोद श्रीवास्तव को पक्षकार बता न्यायालय में उपस्थित किया गया। प्रमोद ने कलेक्ट्रोरेट की तरफ से पक्ष रखा, जबकि नियमानुसार तहसीलदार से निचले पद के अधिकारी को पक्षकार नियुक्त ही नहीं किया जा सकता। वहीं कलेक्टर के लेटिगेशन शाखा से भी इस बारे में पत्र जारी हो गया, जबकि शाखा में इस प्रकार का लेखा-जोखा ही नहीं है। 

-खसरा ३६ को बताया दो जगह 
कालोनाइजर की चालाकी देखिए विकास अनुमति ग्राम हिनोतिया कांछियान के खसरा क्र.- ३६, ३८, ४१ की ही ली, जबकि पुनीत गोधा ने सेमराकलां के खसरा क्र.- 216, 216 और 142 की १० एकड़ जमीन पर भी कालोनी तैयार बना डाली। गोधा ने यह खेल खसरा क्र.-36 के जरिए किया। दरअसल, 36 नम्बर का खसरा हिनोतिया कांछियान का है, जिसे उसने सेमराकलां का होना भी बताया। इसी को आधार बना गोधा के वकील ने न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की। यह गफलत किसी को समझ में नहीं आई। 

-ऐसे हुआ खेल 
विकास अनुमति क्र.-२८९ दिनांक ३/४/२००७ में बताया कि प्रकरण क्र.- ६४/ए-२, २००३-०४ के जरिए सिर्फ १० एकड़ जमीन का डायवर्सन है। शेष भूमि का डायवर्सन नहीं कराया गया। पुनीत गोधा ने शेष भूमि के डायवर्सन के लिए आवेदन दिया। एसडीएम ने कालोनाइजर को डायवर्सन के लिए आवश्यक दस्तावेज एसडीएम कार्यालय में प्रस्तुत करने सूचना पत्र जारी किया। पुनीत गोधा इस सूचना पत्र को लेकर न्यायालय में पहुंच गए। एसडीएम द्वारा जारी इस पत्र में न तो कालोनाइजर के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की बात लिखी थी और न ही काम रोकने की। 

-ये है प्रावधान
भू-राजस्व संहिता की धारा-172 में यह स्पष्ट उल्लेख है कि 30 दिन के भीतर डायर्वसन के आवेदन पर अनुविभागीय अधिकारी को निर्णय देना चाहिए। लेकिन एसडीएम द्वारा निर्णय तभी दिया जा सकता है, जब आवेदनकर्ता ने आवेदन के साथ सभी आवश्यक दस्तावेज लगाए हों। कालोनाइजर ने आवश्यक दस्तावेज ही नहीं लगाए, ऐसी स्थिति में व्यापवर्तन नहीं किया जा सकता। 

-नहीं दिए दस्तावेज 
इस मामले को लेकर बिल्डर पुनीत गोधा से संपर्क किया गया। उन्होंने दो दिन का समय मांगा, लेकिन उन्होंने दो दिन बाद भी किसी प्रकार के कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा पाए। 

-ये हो सकता है
जिला प्रशासन और नगर निगम अवैधानिक निर्माण को हटाने की कार्रवाई कर सकता है। इससे सीधा नुकासान भवन के्रताओं को होगा। वहीं ये भी हो सकता है कि निर्माण अनुमति का शुल्क जो बिल्डर द्वारा दिया जाता है, वह भवन क्रेताओं को वहन करना होगा। इस मामले जिला प्रशासन के अधिकारियों आधिकारिक तौर पर कुछ भी कहने से साफ इंकार कर दिया है। हालांकि वे अनौपचारिक रूप से बिल्डर द्वारा भारी गड़बड़ी किए जाने की बात स्वीकारते हैं। 

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