-मामला कोच फैक्ट्री के लिए ली गई भूमि का
-अपर कलेक्टर से लेकर एसडीएम की गाड़ियों की बनाई कुर्की, अफसरों ने 8 दिन का मांगा समय
-22 कलेक्टर भी नहीं कर पाए निराकरण
भोपाल।
कलेक्टर कार्यालय में शुक्रवार को प्रशासनिक अफसरों पर शनि भारी होते दिखाई दिए। दरसअल, जिला न्यायालय ने 1984 में पुराने भोपाल के ग्राम करारिया और निशातपुरा में सवारी डिब्बा पुनर्निर्माण कारखाना (कोच फैक्ट्री) लिए अधिग्रहित की गई भूमि के किसानों को जिला प्रशासन की संपत्ति कुर्क कर राशि देने के आदेश दिए। कार्यवाही शुरू हुई, इसी बीच प्रशानिक अफसरों ने 8 दिन का समय मांगा।
अपर कलेक्टर बसंत कुर्रे और गोविंदपुरा एसडीएम डीसी सिंघी ने यह समय मांगा, जिसके बाद कुर्की की समय अवधि बढ़ा दी गई। कोर्ट का अमला और किसान कुर्की की कार्यवाही के लिए दोपहर करीब 2.30 बजे कलेक्टोरेट पहुंचे। नजारा बड़ा गहमा-गहमी भरा नजर आने लगा। कुर्की के लिए आए अफसरों ने एडीएम नार्थ की गाड़ी एमपी-02-आरडी-0444, अपर कलेक्टर की गाड़ी एमपी-02-एबी-0111, एमपी-02-आरडी-0501 और एमपी-02-एवी-1060 की कुर्की के दस्तावेज तैयार कर लिए गए। हालांकि इन गाड़ियों को क्रेन से उठाया नहीं जा सका। इससे पहले ही एसडीएम चंद्रमोहन मिश्रा ने मोर्चा संभालते हुए। वरिष्ठ अफसरों से बात करने को कहा। वहीं किसानों का एक मंडल रेल प्रबंधक पहुंचा, जहां डीआरएम ने मामले की जानकारी न होने की बात कहते हुए कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।
-8 दिन बाद फैसला
किसानों को जमीन का मुआवजा कैसे मिलेगा? कितनी राशि दी जाएगी? इस बात का फैसला अब जिला प्रशासन को ही लेना है। अपर कलेक्टर और एसडीएम ने इसके लिए 8 दिन का वक्त मांगा, जो उन्हें दिया गया। निराकरण न होने पर गाड़ियों को कुर्क किया जाएगा। इसी के साथ करीब 7 करोड़ रुपए की वसूली के लिए प्रशासन की अन्य संपत्तियों को भी कुर्की में शामिल किया जाएगा।
-22 कलेक्टर नहीं कर पाए निराकरण
भूमि अधिग्रहण का यह प्रकरण कलेक्टोरेट में 1984 से चल रहा है। उस वक्त कलेक्टर राकेश बंसल थे। 8/6/1984 को कलेक्टर मोति सिंह आए। इनके पास भी फाइल चली। ऐसा करते-करते निकुंज कुमार श्रीवास्तव 27/4/2010 को 22वें कलेक्टर के रूप में आए, लेकिन निराकरण नहीं करा सके। सूत्रों की मानें तो श्री श्रीवास्तव से दो से तीन बार न्यायालय ने पूछा भी कि किसानों के मुआवजे का क्या हुआ? बावजूद इसके प्रकरण आया गया कर दिया गया। वर्तमान में कलेक्टर निशांत वरवड़े हैं, लेकिन उनके आते ही विधानसभा की आचार संहिता लग गई। बताया जाता है, ऐसे में वह मामले से अवगत नहीं हो पाए।
-यह है मामला
सन 1983-84 में राज्य सरकार के निर्देश पर जिला प्रशासन ने भोपाल रेलवे को कोच फैक्ट्री स्थिापित करने के लिए करीब 420 एकड़ जमीन किसानों से अधिगृहीत करके दी थी। करारिया, भानपुर व छोला क्षेत्र के करीब 44 किसानों की यह जमीन थी, जिसका भू-अर्जन कर मुआवजा भी दिया गया। इसमें किसी की जमीन 21 एकड़ थी तो किसी की 1 से लेकर 5 एकड़ तक। इन जमीनों का मुआवजा भी 18000 रुपए प्रतिएकड़ असिंचित व 28 हजार रुपए प्रतिएकड़ सिंचित के हिसाब से दिया गया। मुआवजा कम दिए जाने की मांग को लेकर 18 किसानों ने सिविल कोर्ट में जिला प्रशासन के खिलाफ केस लगा दिया। कोर्ट ने सन 2004 में अपना निर्णय सुनाते हुए 1200 रुपए प्रतिएकड़ असिंचित व 1800 रुपए प्रतिएकड़ सिंचित के हिसाब से किसानों की अतिरिक्त राशि (मुआवजा) देने के निर्देश दिए। इसके बाद किसानों ने जिला प्रशासन का दरवाजा खटखटाता तो उन्होंने किसानों को रेलवे के पास भेज दिया। रेलवे ने अपना मामला न होने की बात कहते हुए किसानों को वापस जिला प्रशासन भेज दिया। इस तरह भटकते भटकते किसानों को 10 साल बीत गए और कोर्ट की अवमानना होती रही। सब्र का बांध टूटने के बाद किसानों से फिर से एकजुट होकर एडीजे की कोर्ट में हिजरा फाईल किया। कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कलेक्ट्रेट कार्यालय (जिला प्रशासन) की संपत्ति कुर्क करने के आदेश गत डेढ़ ह ते पहले दे दिए। हालांकि पहली बार कुर्की के लिए पहुंचे न्यायालय के दल व किसानों को आठ दिन में राशि दिलाए जाने का आश्वासन ही मिला था, जो पूरा नहीं हुआ। इसके बाद शुक्रवार को दोबारा दल कुर्की की कारर्वाई करने पहुंचा। मुआवजे की यह राशि कुल डेढ़ करोड़ रुपए हैं, लेकिन भू-अर्जन नियम के तहत राशि देने में जितना विलंभ होता है, उतने साल का ब्याज भी उस राशि में जुड़ता जाता है। अब यह राशि 6 करोड़ रुपए से अधिक हो गई है।
-न मिले पूरा मुआवजा और न नौकरी
किसान लीला किशन माली ने बताया कि उनकी 21.36 एकड़ जमीन का अधिगृहण किया गया था। इस दौरान आश्वासन दिया गया था कि मुआवजे के साथ-साथ परिवार के एक सदस्य को नौकरी भी दी जाएगी। नौकरी तो छोड़िए मुआवजा भी पूरा नहीं दिया है। 2004 से आदेश लेकर भटक रहे हैं। ऐसी की कुछ दास्तां धनश्याम लोधी, गंगाराम लोधी व शिवशंकर लोधी ने भी सुनाई। उनका कहना था कि दोनों विभागों के बीच घूमते -घूमते अब थक चुके हैं। अब तो कुर्की करवाकर ही राशि वसूलेंगे। उनका कहना है कि न्यायालय ने कुर्की के लिए 23 जनवरी तक वक्त दिया है। आठ दिन की मोहलत दी है, इसके बाद भी यदि मुआवजा नहीं मिलता है तो फिर से कारर्वाई के लिए आएंगे।
-समय मांगा है
मुख्यत: मामला रेलवे और किसानों के बीच का है। किसानों के जमीन का अतिरिक्त मुआवजा रेलवे उपलब्ध करा देगा तो हम किसानों को यह राशि उपलब्ध करवा देंगे। इसको लेकर एडीजे से समय मांगा जा रहा है तथा किसानों से भी मोहलत मांगी गई है।
बसंत कुर्रे, अपर कलेक्टर भोपाल
-वर्जन
1984 में प्रशासन ने कोच फैक्ट्री के लिए 48 किसानों से 400 एकड़ भूमि अधिग्रहित की थी। इमसें से 345 एकड़ जमीन कारखाने और रेलवे क्वॉटर्स के लिए ली गई। इस भूमि का उचित मुआवजा अब तक रेलवे व जिला प्रशासन ने किसानों को नहीं दिया है। फिलहाल 48 में से 18 किसानों का केस न्यायालय में चल रहा है। 8 दिन बाद निराकरण नहीं होता है तो आगे की कार्रवाई शुरू करेंगे।
बीएल रघुवंशी, किसानों के अधिवक्ता
-बोले किसान
(1) प्रशासनिक अफसरों ने हर बार केवल बात सुनकर अनसुना कर दिया। किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लिया। इसके बाद ही हम कोर्ट गए थे, लेकिन आज भी अधिकारी अपने दड़बे बाहर नहीं आए।
मानसिंह लोधी, किसान (फोटो क्र.-3357)
(2) 1984 में कोच फैक्ट्री में लगे कर्मचारी अब रिटार्यड होने लगे हैं, लेकिन इन 30 सालों में प्रशासनिक अफसरों ने कास्तकारों की कोई सुनवाई ही नहीं की। रेलवे प्रबंधन ने भी मामले को गंभीरता से नहीं लिया।
खेमचंद लोधी, किसान (फोटो क्र.-3361)
(3) कोर्ट ने 1200 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से ब्याज 2004 में देने का फैसला दिया था, लेकिन कलेक्टर ने कोई एक्शन ही नहीं लिया।
पूरन सिंह लोधी, किसान (फोटो क्र.-3362)
(4) हमें अब पूरी 400 एकड़ भूमि का उचित मुआवजा चाहिए। यदि भूमि का मुआवजा प्रशासनिक अफसर नहीं दिलाते हैं तो कलेक्टोरेट और डीआरएम आॅफिस पर धराना-प्रदर्शन करने से भी नहीं चूकेंगे।
तुलसीराम लोधी, किसान (फोटो क्र.-3362)
(5) जबलपुर हाईकोर्ट में भी याचिका दायर कर दी गई है। रेलवे और जिला प्रशासन दोनों की ही किसानों को मुआवजा राशि देने की नियत नहीं है। यदि ऐसा होता तो इतनी लंबी लड़ाई नहीं लड़ना पड़ती किसानों को।
रामप्रसाद लोधी, किसान (फोटो क्र.-3367)
(6) हम किसानों को कभी किसी अधिकारी ने कुछ नहीं समझा। अनेकों बार रेलवे और कलेक्टर कार्यालय के चक्कर हमने लगाए। 8 दिन में कोई हल नहीं निकला तो उग्र आंदोलन करेंगे।
नरेन्द्र तिवारी, किसान (फोटो क्र.-3369)
-अपर कलेक्टर से लेकर एसडीएम की गाड़ियों की बनाई कुर्की, अफसरों ने 8 दिन का मांगा समय
-22 कलेक्टर भी नहीं कर पाए निराकरण
भोपाल।
कलेक्टर कार्यालय में शुक्रवार को प्रशासनिक अफसरों पर शनि भारी होते दिखाई दिए। दरसअल, जिला न्यायालय ने 1984 में पुराने भोपाल के ग्राम करारिया और निशातपुरा में सवारी डिब्बा पुनर्निर्माण कारखाना (कोच फैक्ट्री) लिए अधिग्रहित की गई भूमि के किसानों को जिला प्रशासन की संपत्ति कुर्क कर राशि देने के आदेश दिए। कार्यवाही शुरू हुई, इसी बीच प्रशानिक अफसरों ने 8 दिन का समय मांगा।
अपर कलेक्टर बसंत कुर्रे और गोविंदपुरा एसडीएम डीसी सिंघी ने यह समय मांगा, जिसके बाद कुर्की की समय अवधि बढ़ा दी गई। कोर्ट का अमला और किसान कुर्की की कार्यवाही के लिए दोपहर करीब 2.30 बजे कलेक्टोरेट पहुंचे। नजारा बड़ा गहमा-गहमी भरा नजर आने लगा। कुर्की के लिए आए अफसरों ने एडीएम नार्थ की गाड़ी एमपी-02-आरडी-0444, अपर कलेक्टर की गाड़ी एमपी-02-एबी-0111, एमपी-02-आरडी-0501 और एमपी-02-एवी-1060 की कुर्की के दस्तावेज तैयार कर लिए गए। हालांकि इन गाड़ियों को क्रेन से उठाया नहीं जा सका। इससे पहले ही एसडीएम चंद्रमोहन मिश्रा ने मोर्चा संभालते हुए। वरिष्ठ अफसरों से बात करने को कहा। वहीं किसानों का एक मंडल रेल प्रबंधक पहुंचा, जहां डीआरएम ने मामले की जानकारी न होने की बात कहते हुए कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।
-8 दिन बाद फैसला
किसानों को जमीन का मुआवजा कैसे मिलेगा? कितनी राशि दी जाएगी? इस बात का फैसला अब जिला प्रशासन को ही लेना है। अपर कलेक्टर और एसडीएम ने इसके लिए 8 दिन का वक्त मांगा, जो उन्हें दिया गया। निराकरण न होने पर गाड़ियों को कुर्क किया जाएगा। इसी के साथ करीब 7 करोड़ रुपए की वसूली के लिए प्रशासन की अन्य संपत्तियों को भी कुर्की में शामिल किया जाएगा।
-22 कलेक्टर नहीं कर पाए निराकरण
भूमि अधिग्रहण का यह प्रकरण कलेक्टोरेट में 1984 से चल रहा है। उस वक्त कलेक्टर राकेश बंसल थे। 8/6/1984 को कलेक्टर मोति सिंह आए। इनके पास भी फाइल चली। ऐसा करते-करते निकुंज कुमार श्रीवास्तव 27/4/2010 को 22वें कलेक्टर के रूप में आए, लेकिन निराकरण नहीं करा सके। सूत्रों की मानें तो श्री श्रीवास्तव से दो से तीन बार न्यायालय ने पूछा भी कि किसानों के मुआवजे का क्या हुआ? बावजूद इसके प्रकरण आया गया कर दिया गया। वर्तमान में कलेक्टर निशांत वरवड़े हैं, लेकिन उनके आते ही विधानसभा की आचार संहिता लग गई। बताया जाता है, ऐसे में वह मामले से अवगत नहीं हो पाए।
-यह है मामला
सन 1983-84 में राज्य सरकार के निर्देश पर जिला प्रशासन ने भोपाल रेलवे को कोच फैक्ट्री स्थिापित करने के लिए करीब 420 एकड़ जमीन किसानों से अधिगृहीत करके दी थी। करारिया, भानपुर व छोला क्षेत्र के करीब 44 किसानों की यह जमीन थी, जिसका भू-अर्जन कर मुआवजा भी दिया गया। इसमें किसी की जमीन 21 एकड़ थी तो किसी की 1 से लेकर 5 एकड़ तक। इन जमीनों का मुआवजा भी 18000 रुपए प्रतिएकड़ असिंचित व 28 हजार रुपए प्रतिएकड़ सिंचित के हिसाब से दिया गया। मुआवजा कम दिए जाने की मांग को लेकर 18 किसानों ने सिविल कोर्ट में जिला प्रशासन के खिलाफ केस लगा दिया। कोर्ट ने सन 2004 में अपना निर्णय सुनाते हुए 1200 रुपए प्रतिएकड़ असिंचित व 1800 रुपए प्रतिएकड़ सिंचित के हिसाब से किसानों की अतिरिक्त राशि (मुआवजा) देने के निर्देश दिए। इसके बाद किसानों ने जिला प्रशासन का दरवाजा खटखटाता तो उन्होंने किसानों को रेलवे के पास भेज दिया। रेलवे ने अपना मामला न होने की बात कहते हुए किसानों को वापस जिला प्रशासन भेज दिया। इस तरह भटकते भटकते किसानों को 10 साल बीत गए और कोर्ट की अवमानना होती रही। सब्र का बांध टूटने के बाद किसानों से फिर से एकजुट होकर एडीजे की कोर्ट में हिजरा फाईल किया। कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कलेक्ट्रेट कार्यालय (जिला प्रशासन) की संपत्ति कुर्क करने के आदेश गत डेढ़ ह ते पहले दे दिए। हालांकि पहली बार कुर्की के लिए पहुंचे न्यायालय के दल व किसानों को आठ दिन में राशि दिलाए जाने का आश्वासन ही मिला था, जो पूरा नहीं हुआ। इसके बाद शुक्रवार को दोबारा दल कुर्की की कारर्वाई करने पहुंचा। मुआवजे की यह राशि कुल डेढ़ करोड़ रुपए हैं, लेकिन भू-अर्जन नियम के तहत राशि देने में जितना विलंभ होता है, उतने साल का ब्याज भी उस राशि में जुड़ता जाता है। अब यह राशि 6 करोड़ रुपए से अधिक हो गई है।
-न मिले पूरा मुआवजा और न नौकरी
किसान लीला किशन माली ने बताया कि उनकी 21.36 एकड़ जमीन का अधिगृहण किया गया था। इस दौरान आश्वासन दिया गया था कि मुआवजे के साथ-साथ परिवार के एक सदस्य को नौकरी भी दी जाएगी। नौकरी तो छोड़िए मुआवजा भी पूरा नहीं दिया है। 2004 से आदेश लेकर भटक रहे हैं। ऐसी की कुछ दास्तां धनश्याम लोधी, गंगाराम लोधी व शिवशंकर लोधी ने भी सुनाई। उनका कहना था कि दोनों विभागों के बीच घूमते -घूमते अब थक चुके हैं। अब तो कुर्की करवाकर ही राशि वसूलेंगे। उनका कहना है कि न्यायालय ने कुर्की के लिए 23 जनवरी तक वक्त दिया है। आठ दिन की मोहलत दी है, इसके बाद भी यदि मुआवजा नहीं मिलता है तो फिर से कारर्वाई के लिए आएंगे।
-समय मांगा है
मुख्यत: मामला रेलवे और किसानों के बीच का है। किसानों के जमीन का अतिरिक्त मुआवजा रेलवे उपलब्ध करा देगा तो हम किसानों को यह राशि उपलब्ध करवा देंगे। इसको लेकर एडीजे से समय मांगा जा रहा है तथा किसानों से भी मोहलत मांगी गई है।
बसंत कुर्रे, अपर कलेक्टर भोपाल
-वर्जन
1984 में प्रशासन ने कोच फैक्ट्री के लिए 48 किसानों से 400 एकड़ भूमि अधिग्रहित की थी। इमसें से 345 एकड़ जमीन कारखाने और रेलवे क्वॉटर्स के लिए ली गई। इस भूमि का उचित मुआवजा अब तक रेलवे व जिला प्रशासन ने किसानों को नहीं दिया है। फिलहाल 48 में से 18 किसानों का केस न्यायालय में चल रहा है। 8 दिन बाद निराकरण नहीं होता है तो आगे की कार्रवाई शुरू करेंगे।
बीएल रघुवंशी, किसानों के अधिवक्ता
-बोले किसान
(1) प्रशासनिक अफसरों ने हर बार केवल बात सुनकर अनसुना कर दिया। किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लिया। इसके बाद ही हम कोर्ट गए थे, लेकिन आज भी अधिकारी अपने दड़बे बाहर नहीं आए।
मानसिंह लोधी, किसान (फोटो क्र.-3357)
(2) 1984 में कोच फैक्ट्री में लगे कर्मचारी अब रिटार्यड होने लगे हैं, लेकिन इन 30 सालों में प्रशासनिक अफसरों ने कास्तकारों की कोई सुनवाई ही नहीं की। रेलवे प्रबंधन ने भी मामले को गंभीरता से नहीं लिया।
खेमचंद लोधी, किसान (फोटो क्र.-3361)
(3) कोर्ट ने 1200 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से ब्याज 2004 में देने का फैसला दिया था, लेकिन कलेक्टर ने कोई एक्शन ही नहीं लिया।
पूरन सिंह लोधी, किसान (फोटो क्र.-3362)
(4) हमें अब पूरी 400 एकड़ भूमि का उचित मुआवजा चाहिए। यदि भूमि का मुआवजा प्रशासनिक अफसर नहीं दिलाते हैं तो कलेक्टोरेट और डीआरएम आॅफिस पर धराना-प्रदर्शन करने से भी नहीं चूकेंगे।
तुलसीराम लोधी, किसान (फोटो क्र.-3362)
(5) जबलपुर हाईकोर्ट में भी याचिका दायर कर दी गई है। रेलवे और जिला प्रशासन दोनों की ही किसानों को मुआवजा राशि देने की नियत नहीं है। यदि ऐसा होता तो इतनी लंबी लड़ाई नहीं लड़ना पड़ती किसानों को।
रामप्रसाद लोधी, किसान (फोटो क्र.-3367)
(6) हम किसानों को कभी किसी अधिकारी ने कुछ नहीं समझा। अनेकों बार रेलवे और कलेक्टर कार्यालय के चक्कर हमने लगाए। 8 दिन में कोई हल नहीं निकला तो उग्र आंदोलन करेंगे।
नरेन्द्र तिवारी, किसान (फोटो क्र.-3369)
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