-मामला कोच फैक्ट्री के लिए ली गई 400 एकड़ जमीन का
-पूर्व में अपर कलेक्टर से लेकर एसडीएम की गाड़ियों की बनाई जा चुकी है कुर्की
-अफसरों ने 8 दिन का मांगा था समय
भोपाल।
भोपाल कलेक्टर निशांत वरवड़े, अपर कलेक्टर बसंत कुर्रे आज से पैदल हो सकते हैं। इसी क्रम में भोपाल के एसडीएम भी शामिल हैं, उन्हें भी बिन चौपहिया वाहन यात्रा करनी पड़ सकती है। दरअसल, जिला प्रशासन के इन अफसरों की गाड़ियों की 20 दिसंबर को जिला न्यायालय के एडीजे बीके द्विवेदी के एक आदेश के बाद कुर्की बनाई गई थी।
कुर्की बनाए जाने के बाद भी न्यायालय की वसूली टीम वाहनों को जब्ती में नहीं ले पाई थी। कारण प्रशासनिक अफसरों ने 8 दिन का समय मांग लिया था। अब सोमवार को एक बार फिर न्यायालीन कार्यवाही शुरू होगी। जिला न्यायालय ने संपत्ति कुर्की के आदेश 1984 में पुराने भोपाल के ग्राम करारिया और निशातपुरा में सवारी डिब्बा पुनर्निर्माण कारखाना (कोच फैक्ट्री) लिए अधिग्रहित की गई किसानों की जमीन को लेकर दिए हैं। अधिग्रहित की गई 400 एकड़ जमीन के कृषकों को उचित मुआवजा नहीं मिला था, जिसके चलते 48 में से 18 किसान जिला प्रशासन के विरुद्ध न्यायालय चले गए थे। अफसरों की गाड़ियों की कुर्की को लेकर किसानों की तरफ से अधिवक्ता बीएल रघुवंशी नई तैयारी कर रहे हैं। इधर सूत्रों की मानें तो भले ही अफसरों ने आठ दिन का समय मांगा हो, लेकिन वे इस बीच कुछ नहीं कर सके। लिहाजा इसका खामियाजा उन्हें भरना पड़ेगा।
-इनकी बनाई थी कुर्की
न्यायालय की संपत्ति कुर्क टीम से अपर कलेक्टर बसंत कुर्रे और गोविंदपुरा एसडीएम डीसी सिंघी ने आठ दिन का यह समय मांगा था। जिसके बाद कुर्की की समय अवधि बढ़ा दी गई थी। कुर्की टीम ने एडीएम नार्थ की गाड़ी एमपी-02-आरडी-0444, अपर कलेक्टर की गाड़ी एमपी-02-एबी-0111, एमपी-02-आरडी-0501 और एमपी-02-एवी-1060 की कुर्की के दस्तावेज तैयार किए हैं। उस समय इन गाड़ियों को उठाया नहीं जा सका था। कुर्की की कार्रवाई के दौरान ही एसडीएम चंद्रमोहन मिश्रा ने मोर्चा संभाला था। इसके बाद किसान जहां मंडल रेल प्रबंधक और अफसरों की बात में फंस गए। वहीं अपर कलेक्टर बसंत कुर्रे ने 8 दिन का समय मांगते हुए। बला टाल दिया था।
-22 कलेक्टर आकर चले गए
भूमि अधिग्रहण का यह प्रकरण कलेक्टोरेट में 1984 से चल रहा है। उस वक्त कलेक्टर राकेश बंसल थे। 8/6/1984 को कलेक्टर मोति सिंह आए। इनके पास भी फाइल चली। ऐसा करते-करते निकुंज कुमार श्रीवास्तव 27/4/2010 को 22वें कलेक्टर के रूप में आए, लेकिन निराकरण नहीं करा सके। सूत्रों की मानें तो श्री श्रीवास्तव से दो से तीन बार न्यायालय ने पूछा भी कि किसानों के मुआवजे का क्या हुआ? बावजूद इसके प्रकरण आया गया कर दिया गया। वर्तमान में कलेक्टर निशांत वरवड़े हैं, लेकिन उनके आते ही विधानसभा की आचार संहिता लग गई। बताया जाता है, ऐसे में वह मामले से अवगत नहीं हो पाए।
-यह है मामला
सन 1983-84 में राज्य सरकार के निर्देश पर जिला प्रशासन ने भोपाल रेलवे को कोच फैक्ट्री स्थिापित करने के लिए करीब 420 एकड़ जमीन किसानों से अधिगृहीत करके दी थी। करारिया, भानपुर व छोला क्षेत्र के करीब 44 किसानों की यह जमीन थी, जिसका भू-अर्जन कर मुआवजा भी दिया गया। इसमें किसी की जमीन 21 एकड़ थी तो किसी की 1 से लेकर 5 एकड़ तक। इन जमीनों का मुआवजा भी 18000 रुपए प्रतिएकड़ असिंचित व 28 हजार रुपए प्रतिएकड़ सिंचित के हिसाब से दिया गया। मुआवजा कम दिए जाने की मांग को लेकर 18 किसानों ने सिविल कोर्ट में जिला प्रशासन के खिलाफ केस लगा दिया। कोर्ट ने सन 2004 में अपना निर्णय सुनाते हुए 1200 रुपए प्रतिएकड़ असिंचित व 1800 रुपए प्रतिएकड़ सिंचित के हिसाब से किसानों की अतिरिक्त राशि (मुआवजा) देने के निर्देश दिए। इसके बाद किसानों ने जिला प्रशासन का दरवाजा खटखटाता तो उन्होंने किसानों को रेलवे के पास भेज दिया। रेलवे ने अपना मामला न होने की बात कहते हुए किसानों को वापस जिला प्रशासन भेज दिया। इस तरह भटकते भटकते किसानों को 10 साल बीत गए और कोर्ट की अवमानना होती रही। सब्र का बांध टूटने के बाद किसानों से फिर से एकजुट होकर एडीजे की कोर्ट में हिजरा फाईल किया। कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कलेक्ट्रेट कार्यालय (जिला प्रशासन) की संपत्ति कुर्क करने के आदेश दिए। पहली बार कुर्की के लिए पहुंचे न्यायालय के दल व किसानों को आठ दिन में राशि दिलाए जाने का आश्वास ही मिला था, जो पूरा नहीं हुआ।
-वर्जन
जिला प्रशासन ने उचित मुआवजा को लेकर क्या किया। यह जिला प्रशासन के अफसरों से पूछा जाएगा, यदि कुछ नहीं हुआ तो एडीजे से फिर गुहार लगाई जाएगी। फिलहाल 48 में से 18 किसानों का केस न्यायालय में चल रहा है।
बीएल रघुवंशी, किसानों के अधिवक्ता
-हमने जवाब सौंप दिया
हमने न्यायालय को अपना जवाब सौंप दिया है। हमने कहा है, रेलवे प्रशासन से मुआवजा राशि मिलेगी तो किसानों को दी जाएगी। क्योंकि जमीन रेलवे के लिए अधिग्रहित की गई थी। बाकी न्यायालय के फैसले का हम स्वागत करेंगे, चाहे जो भी आदेश मिले।
बसंत कुर्रे, अपर कलेक्टर
-पूर्व में अपर कलेक्टर से लेकर एसडीएम की गाड़ियों की बनाई जा चुकी है कुर्की
-अफसरों ने 8 दिन का मांगा था समय
भोपाल।
भोपाल कलेक्टर निशांत वरवड़े, अपर कलेक्टर बसंत कुर्रे आज से पैदल हो सकते हैं। इसी क्रम में भोपाल के एसडीएम भी शामिल हैं, उन्हें भी बिन चौपहिया वाहन यात्रा करनी पड़ सकती है। दरअसल, जिला प्रशासन के इन अफसरों की गाड़ियों की 20 दिसंबर को जिला न्यायालय के एडीजे बीके द्विवेदी के एक आदेश के बाद कुर्की बनाई गई थी।
कुर्की बनाए जाने के बाद भी न्यायालय की वसूली टीम वाहनों को जब्ती में नहीं ले पाई थी। कारण प्रशासनिक अफसरों ने 8 दिन का समय मांग लिया था। अब सोमवार को एक बार फिर न्यायालीन कार्यवाही शुरू होगी। जिला न्यायालय ने संपत्ति कुर्की के आदेश 1984 में पुराने भोपाल के ग्राम करारिया और निशातपुरा में सवारी डिब्बा पुनर्निर्माण कारखाना (कोच फैक्ट्री) लिए अधिग्रहित की गई किसानों की जमीन को लेकर दिए हैं। अधिग्रहित की गई 400 एकड़ जमीन के कृषकों को उचित मुआवजा नहीं मिला था, जिसके चलते 48 में से 18 किसान जिला प्रशासन के विरुद्ध न्यायालय चले गए थे। अफसरों की गाड़ियों की कुर्की को लेकर किसानों की तरफ से अधिवक्ता बीएल रघुवंशी नई तैयारी कर रहे हैं। इधर सूत्रों की मानें तो भले ही अफसरों ने आठ दिन का समय मांगा हो, लेकिन वे इस बीच कुछ नहीं कर सके। लिहाजा इसका खामियाजा उन्हें भरना पड़ेगा।
-इनकी बनाई थी कुर्की
न्यायालय की संपत्ति कुर्क टीम से अपर कलेक्टर बसंत कुर्रे और गोविंदपुरा एसडीएम डीसी सिंघी ने आठ दिन का यह समय मांगा था। जिसके बाद कुर्की की समय अवधि बढ़ा दी गई थी। कुर्की टीम ने एडीएम नार्थ की गाड़ी एमपी-02-आरडी-0444, अपर कलेक्टर की गाड़ी एमपी-02-एबी-0111, एमपी-02-आरडी-0501 और एमपी-02-एवी-1060 की कुर्की के दस्तावेज तैयार किए हैं। उस समय इन गाड़ियों को उठाया नहीं जा सका था। कुर्की की कार्रवाई के दौरान ही एसडीएम चंद्रमोहन मिश्रा ने मोर्चा संभाला था। इसके बाद किसान जहां मंडल रेल प्रबंधक और अफसरों की बात में फंस गए। वहीं अपर कलेक्टर बसंत कुर्रे ने 8 दिन का समय मांगते हुए। बला टाल दिया था।
-22 कलेक्टर आकर चले गए
भूमि अधिग्रहण का यह प्रकरण कलेक्टोरेट में 1984 से चल रहा है। उस वक्त कलेक्टर राकेश बंसल थे। 8/6/1984 को कलेक्टर मोति सिंह आए। इनके पास भी फाइल चली। ऐसा करते-करते निकुंज कुमार श्रीवास्तव 27/4/2010 को 22वें कलेक्टर के रूप में आए, लेकिन निराकरण नहीं करा सके। सूत्रों की मानें तो श्री श्रीवास्तव से दो से तीन बार न्यायालय ने पूछा भी कि किसानों के मुआवजे का क्या हुआ? बावजूद इसके प्रकरण आया गया कर दिया गया। वर्तमान में कलेक्टर निशांत वरवड़े हैं, लेकिन उनके आते ही विधानसभा की आचार संहिता लग गई। बताया जाता है, ऐसे में वह मामले से अवगत नहीं हो पाए।
-यह है मामला
सन 1983-84 में राज्य सरकार के निर्देश पर जिला प्रशासन ने भोपाल रेलवे को कोच फैक्ट्री स्थिापित करने के लिए करीब 420 एकड़ जमीन किसानों से अधिगृहीत करके दी थी। करारिया, भानपुर व छोला क्षेत्र के करीब 44 किसानों की यह जमीन थी, जिसका भू-अर्जन कर मुआवजा भी दिया गया। इसमें किसी की जमीन 21 एकड़ थी तो किसी की 1 से लेकर 5 एकड़ तक। इन जमीनों का मुआवजा भी 18000 रुपए प्रतिएकड़ असिंचित व 28 हजार रुपए प्रतिएकड़ सिंचित के हिसाब से दिया गया। मुआवजा कम दिए जाने की मांग को लेकर 18 किसानों ने सिविल कोर्ट में जिला प्रशासन के खिलाफ केस लगा दिया। कोर्ट ने सन 2004 में अपना निर्णय सुनाते हुए 1200 रुपए प्रतिएकड़ असिंचित व 1800 रुपए प्रतिएकड़ सिंचित के हिसाब से किसानों की अतिरिक्त राशि (मुआवजा) देने के निर्देश दिए। इसके बाद किसानों ने जिला प्रशासन का दरवाजा खटखटाता तो उन्होंने किसानों को रेलवे के पास भेज दिया। रेलवे ने अपना मामला न होने की बात कहते हुए किसानों को वापस जिला प्रशासन भेज दिया। इस तरह भटकते भटकते किसानों को 10 साल बीत गए और कोर्ट की अवमानना होती रही। सब्र का बांध टूटने के बाद किसानों से फिर से एकजुट होकर एडीजे की कोर्ट में हिजरा फाईल किया। कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कलेक्ट्रेट कार्यालय (जिला प्रशासन) की संपत्ति कुर्क करने के आदेश दिए। पहली बार कुर्की के लिए पहुंचे न्यायालय के दल व किसानों को आठ दिन में राशि दिलाए जाने का आश्वास ही मिला था, जो पूरा नहीं हुआ।
-वर्जन
जिला प्रशासन ने उचित मुआवजा को लेकर क्या किया। यह जिला प्रशासन के अफसरों से पूछा जाएगा, यदि कुछ नहीं हुआ तो एडीजे से फिर गुहार लगाई जाएगी। फिलहाल 48 में से 18 किसानों का केस न्यायालय में चल रहा है।
बीएल रघुवंशी, किसानों के अधिवक्ता
-हमने जवाब सौंप दिया
हमने न्यायालय को अपना जवाब सौंप दिया है। हमने कहा है, रेलवे प्रशासन से मुआवजा राशि मिलेगी तो किसानों को दी जाएगी। क्योंकि जमीन रेलवे के लिए अधिग्रहित की गई थी। बाकी न्यायालय के फैसले का हम स्वागत करेंगे, चाहे जो भी आदेश मिले।
बसंत कुर्रे, अपर कलेक्टर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें