-दीपावली सिर पर बन रही मिलावटी मिठाई और नमकीन
-गुपचुप हो रही कार्रवाई, छिपाई जा रही जानकारी
भोपाल।
जिले में मिलावट खोरों की मौज हो गई है। बीते साल जहां दीपावली से एक माह पहले से ही खाद्य एवं औषधि प्रशासन की छापामार कार्रवाई शुरू हो गई थी। वह अब तक शुरू नहीं हुई है। इक्का-दुक्का कार्रवाई की भी है उसे विभागीय टीम ने गुपचुप तरीके से अंजाम दिया। इसकी खबर बाहर नहीं जाने दी।
छापामारी की कार्रवाई मीडिया में आ जाती है तो व्यापारी पर चालानी कार्रवाई करना जरूरी हो जाता है। कार्रवाई को लेकर कुछ खाद्य सुरक्षा अधिकारी (खसुआ) वरिष्ठ अफसरों द्वारा आदेश न दिए जाने की बात कह रहे हैं, जबकि कलेक्टर निशांत वरवड़े ने अपनी ज्वॉइनिंग के कुछ दिन बाद ही खासुअ को संयुक्त रूप से कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। इसमें उन्हें एसडीएम, नापतौल और खाद्य विभाग के अमले को भी सामने रखने को कहा था। शुरुआत में कार्रवाई भी हुई, लेकिन अब सब ठंडे बस्ते में है। कार्रवाई न होने की दूसरी बड़ी वजह जिले के खसुआ का बीते कई सालों से जिले में ही पदस्थ होना है। ऐसे में यह उन प्रतिष्ठानों पर कार्रवाई नहीं करते जहां मिलावट की पूरी आशंका है पर अधिकारियों की व्यापारियों से साजगाठ है।
-सैंपल कम लेना भी एक वजह
मिलावट खोरों पर नकेल कसने की बात की जाए तो इसकी एक वजह खाद्य अधिकारियों द्वारा सैंपल कम लिए जाना है। वर्तमान में यह केवल दो सैंपल ले रहे हैं। इसमें से एक सैंपल फेल होना अनिवार्य है। ऐसा हो जाने से खसुआ सैंपल कम ले रहे हैं। इसमें सेटिंग की बात प्रमुख है। यदि किसी व्यापारी का सैंपल लिया है और तोड़ हो रहा है तो उसे मौके पर ही रफा-दफा किया जा रहा है। ऐसा होने से मिलावटखोर सीधे तौर पर बच रहे हैं और पिछले दरवाजे मिलावजी मल बन कर उपभोक्ताओं को बेचा जा रहा है।
-यही रही है व्यवस्था
वर्तमान कंट्रोलर डीडी अग्रवाल ने जिले के सभी खसुआ को दो सैंपल लेने के निर्देश दिए हैं। पूर्व के कंट्रोलर राकेश श्रीवास्तव के समय 5 सैंपल लिए जाना अनिवार्य था। वहीं अश्वनी कुमार राय के वक्त 10 सैंपल लिए जाते थे। उल्लेखनीय है उस वक्त सबसे ज्यादा कार्रवाई को अंजाम भी दिया गया। इसके दो सकारात्मक पहलू निकलकर आए थे। पहला खसुआ अपना टारगेट पूरा करने कार्रवाई करते थे। जिसके चलते यह अधिक सैंपल लेते और मिलावटी खोरों से वसूली जाने वाली राशि अधिक होती, जो कोर्ट केस के जरिए राज्य शासन के खाते में सीधे आती। दूसरा शहर में मिलावखोरी का कारोबार बेहद गुपचुप तरीके से होता।
-रूखी रही शरद पूर्णीमा
बीते साल शरद पूर्णीमा पर दर्जन भर स्थानों पर खसुआ की टीमों ने छापामार कार्रवाई की थी। क्विंटलों मावा जब्ति में लिया था, लेकिन शुक्रवार को पड़ी शरद पूर्णीमा के दिन जिले में एक भी मावे का व्यापार करने वाले पर कार्रवाई नहीं की गई। जबकि शहर में राजगढ़, ग्वालियर और सीमावर्ती यूपी के जिलों से मावा शहर में आया। इसके अलावा शहर में मिलावटी मावे से मिष्ठान बनाए जाने का काम तेजी से चल रहा है।
-बौने हुए कलेक्टर के आदेश
अगस्त के दूसरे सप्ताह में कलेक्टर निशांत वरवड़े ने जिले के सभी अधिकारियों की संयुक्त बैठक बुलाई थी। बैठक में उन्होंने अधिकारियों को संयुक्त रूप से मिलावट खोरो पर कार्रवाई करने के आदेश दिए थे। अगस्त माह तक तो सब कुछ ठीक चला, लेकिन इसके बाद सब कुछ ठंडा हो गया। अधिकारियों ने आदेश भुला दिए हैं, जबकि जिले में क्विंटलों मिलावटी मावे, बेसन और अन्य खाद्य पदार्थों की खपत हो रही है।
-वर्जन
जिले में कार्रवाई के निर्देश दे दिए गए हैं। टीमें मंगलवार से ही सक्रीय हो गई हैं।
पंकज शुक्ला, सीएमएचओ
-गुपचुप हो रही कार्रवाई, छिपाई जा रही जानकारी
भोपाल।
जिले में मिलावट खोरों की मौज हो गई है। बीते साल जहां दीपावली से एक माह पहले से ही खाद्य एवं औषधि प्रशासन की छापामार कार्रवाई शुरू हो गई थी। वह अब तक शुरू नहीं हुई है। इक्का-दुक्का कार्रवाई की भी है उसे विभागीय टीम ने गुपचुप तरीके से अंजाम दिया। इसकी खबर बाहर नहीं जाने दी।
छापामारी की कार्रवाई मीडिया में आ जाती है तो व्यापारी पर चालानी कार्रवाई करना जरूरी हो जाता है। कार्रवाई को लेकर कुछ खाद्य सुरक्षा अधिकारी (खसुआ) वरिष्ठ अफसरों द्वारा आदेश न दिए जाने की बात कह रहे हैं, जबकि कलेक्टर निशांत वरवड़े ने अपनी ज्वॉइनिंग के कुछ दिन बाद ही खासुअ को संयुक्त रूप से कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। इसमें उन्हें एसडीएम, नापतौल और खाद्य विभाग के अमले को भी सामने रखने को कहा था। शुरुआत में कार्रवाई भी हुई, लेकिन अब सब ठंडे बस्ते में है। कार्रवाई न होने की दूसरी बड़ी वजह जिले के खसुआ का बीते कई सालों से जिले में ही पदस्थ होना है। ऐसे में यह उन प्रतिष्ठानों पर कार्रवाई नहीं करते जहां मिलावट की पूरी आशंका है पर अधिकारियों की व्यापारियों से साजगाठ है।
-सैंपल कम लेना भी एक वजह
मिलावट खोरों पर नकेल कसने की बात की जाए तो इसकी एक वजह खाद्य अधिकारियों द्वारा सैंपल कम लिए जाना है। वर्तमान में यह केवल दो सैंपल ले रहे हैं। इसमें से एक सैंपल फेल होना अनिवार्य है। ऐसा हो जाने से खसुआ सैंपल कम ले रहे हैं। इसमें सेटिंग की बात प्रमुख है। यदि किसी व्यापारी का सैंपल लिया है और तोड़ हो रहा है तो उसे मौके पर ही रफा-दफा किया जा रहा है। ऐसा होने से मिलावटखोर सीधे तौर पर बच रहे हैं और पिछले दरवाजे मिलावजी मल बन कर उपभोक्ताओं को बेचा जा रहा है।
-यही रही है व्यवस्था
वर्तमान कंट्रोलर डीडी अग्रवाल ने जिले के सभी खसुआ को दो सैंपल लेने के निर्देश दिए हैं। पूर्व के कंट्रोलर राकेश श्रीवास्तव के समय 5 सैंपल लिए जाना अनिवार्य था। वहीं अश्वनी कुमार राय के वक्त 10 सैंपल लिए जाते थे। उल्लेखनीय है उस वक्त सबसे ज्यादा कार्रवाई को अंजाम भी दिया गया। इसके दो सकारात्मक पहलू निकलकर आए थे। पहला खसुआ अपना टारगेट पूरा करने कार्रवाई करते थे। जिसके चलते यह अधिक सैंपल लेते और मिलावटी खोरों से वसूली जाने वाली राशि अधिक होती, जो कोर्ट केस के जरिए राज्य शासन के खाते में सीधे आती। दूसरा शहर में मिलावखोरी का कारोबार बेहद गुपचुप तरीके से होता।
-रूखी रही शरद पूर्णीमा
बीते साल शरद पूर्णीमा पर दर्जन भर स्थानों पर खसुआ की टीमों ने छापामार कार्रवाई की थी। क्विंटलों मावा जब्ति में लिया था, लेकिन शुक्रवार को पड़ी शरद पूर्णीमा के दिन जिले में एक भी मावे का व्यापार करने वाले पर कार्रवाई नहीं की गई। जबकि शहर में राजगढ़, ग्वालियर और सीमावर्ती यूपी के जिलों से मावा शहर में आया। इसके अलावा शहर में मिलावटी मावे से मिष्ठान बनाए जाने का काम तेजी से चल रहा है।
-बौने हुए कलेक्टर के आदेश
अगस्त के दूसरे सप्ताह में कलेक्टर निशांत वरवड़े ने जिले के सभी अधिकारियों की संयुक्त बैठक बुलाई थी। बैठक में उन्होंने अधिकारियों को संयुक्त रूप से मिलावट खोरो पर कार्रवाई करने के आदेश दिए थे। अगस्त माह तक तो सब कुछ ठीक चला, लेकिन इसके बाद सब कुछ ठंडा हो गया। अधिकारियों ने आदेश भुला दिए हैं, जबकि जिले में क्विंटलों मिलावटी मावे, बेसन और अन्य खाद्य पदार्थों की खपत हो रही है।
-वर्जन
जिले में कार्रवाई के निर्देश दे दिए गए हैं। टीमें मंगलवार से ही सक्रीय हो गई हैं।
पंकज शुक्ला, सीएमएचओ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें