रविवार, 20 अक्टूबर 2013

प्रदेश के स्वशासी कॉलेज होंगे विश्वविद्यालय

-केंद्रीय कैबिनट की मंजूरी के बाद उच्च शिक्षा विभाग ने शुरू की तैयारी
-नूतन को यूनिवर्सिटी करने की पूरी उम्मीद 
हेमन्त पटेल, भोपाल। 
07869301887.
मध्य प्रदेश के स्वशायी महाविद्यालय अब विश्वविद्यालय दर्जा प्राप्त होंगे। केंद्रीय कैबिनेट ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा तैयार राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) ड्राफ्ट मंजूरी दे दी है। हालांकि प्रदेश के 18 स्वाशासी कॉलेजों में से कितनों को यूनिवर्सिटी का सर्टिफिकेट मिलेगा। इसका फैसला कॉलेजों की ताजा और पूर्व रिकॉर्ड को देखेकर लिया जाएगा। 
राजधानी के तीन कॉलेज इस दौड़ में हैं। इनमें से नूतन कॉलेज को यूनिवर्सिटी का दर्जा दिए जाने की पूरी संभावनाएं हैं। वहीं बुद्धिजीवियों ने कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं। उनका साफ कहना है, दर्जा दिया जाना उचित है, लेकिन शिक्षा के स्तर को कितना बनाए रखा जाएगा इस पर संदेह है। 
इन्हें 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत विश्वविद्यालय बनाया जाएगा। वहीं, बेहतर सुविधा वाले कॉलेजों को मॉडल कॉलेज में तब्दील किया जाएगा। उच्च शिक्षा विभाग ने ड्राफ्ट की कॉपी मिलने के बाद अपनी तरफ से इस बदलाव की तैयारी शुरू कर दी है। 

-शहर के तीन कॉलेज दौड़ में 
राजधानी के तीन स्वशासी कॉलेजों में से शासकीय सरोजिनी नायडू कन्या पीजी महाविद्यालय जिसे नूतन कॉलेज के नाम से भी जाना जाता है, की संभावना सबसे अधिक है। यह कॉलेज बाकी दो कॉलेज शासकीय एमएलबी व शासकीय गीतांजलि महाविद्यालय के मुकाबले सभी सुविधाओं में संपन्न है। आयुक्त उच्च शिक्षा वीएस निरंजन ने रूसा का ड्रा्रफ्ट मिलने की पुष्टि की है। साथ ही उन्होंने इस दिशा में आगे की कारर्वाई करने में थोड़ा समय लगने की बात भी कही। यह योजना वर्ष 2012 से 2017 के बीच लागू होनी है।

-एक का कनेक्शन 100 से 
यूजीसी का सीधा उद्देश्य उच्च शिक्षा की गुणवता बढ़ाना, शिक्षा को राष्ट्रीय स्तर पर एक समान बनाना है। इसे राष्ट्रीय उच्चस्तर शिक्षा अभियान का ड्राफ्ट तैयार किया है। जिन कॉलेजों को विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाएगा। उनसे 100 कॉलेजों की संबद्धता प्रदान की जाएगी। यह पहला मौका है, जब इस तरह की कोई पहल की जा रही है। यूजीसी ने देश के सर्वाधिक संबद्ध कॉलेजों वाले जिन 20 विश्वविद्यालयों की सूची जारी की है, उसमें प्रदेश के दो विश्वविद्यालय भी शामिल हैं। इनमें एक राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) और दूसरा बरकतउल्ला विश्वविद्यालय (बीयू) है। खुद उच्च शिक्षा विभाग की वार्षिक रिपोर्ट 2012-13 के अनुसार प्रदेश में आरजीपीवी के अलावा बीयू व जीवाजी विवि ग्वालियर ही ऐसे हैं, जिनसे 200 से ज्यादा कॉलेज संबद्ध हैं। केवल डॉ. हरि सिंह गौर विवि सागर से ही सबसे कम कॉलेज संबद्ध हैं। 

-परिषद रखेगी नजर 
इस अभियान को लागू करने के लिए राज्य उच्च शिक्षा परिषद का गठन किया जाएगा, जो राज्य व केंद्र के बीच के अंतर को कम करेगा। इसका काम अभियान के तहत शिक्षण संस्थाओं को दिए जाने वाले अनुदान पर भी नजर रखना होगा। यह परिषद एक तरह से आॅटोनोमस बॉडी होगी। जानकारों का कहना है कि एक विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों की संख्या अधिक होने से कई परेशानियां आती हैं। पहले तो परीक्षाएं समय पर नहीं हो पातीं। परिणाम तैयार करने में भी काफी समय लगता है। पढ़ाई की गुणवत्ता भी काफी हद तक प्रभावित होती है। इसका सीधा असर छात्रों के कॅरियर पर पड़ता है। इसके अलावा कॉलेजों को मिलने वाला अनुदान भी काफी कम होता है। 

-स्वागत है, पर मंथन जरूरी 
यूजी का निर्णय स्वागत योग्य है। उसकी दृष्टि एक समान और शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है। लेकिन प्रदेश के कॉलेजों को उस स्तर का परफार्मेंस दिखाना होगा। दूसरा राज्य के उच्च शिक्षा विभाग को चाहिए कि कॉलेजों में अतिथि विद्वादनों की कमी को पूरा किया जाए, जिससे बार-बार आने वाली परेशानियां न हों। 
यशा राय, यूजीसी सदस्या 

-गुणवत्ता पर पड़ेगा असर
परंपरागत विश्वविद्यालयों की मोनापली खत्म होगी। जिनके पास सब कुछ है, उन्हें मान्यता नहीं मिल पाती। उनके लिए यह अच्छा होगा। किंतु शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा। वर्तमान में किसी कॉलेज को अनुमति लेनी है तो वह एक जगह आवेदन करता है। यहां उसे तमाम रूल्स से होकर गुजरना होता है। किन्हीं एक-दो को छोड़ दें तो भी कई नियमों का पालन अनिवार्य है, लेकिन नवीन व्यवस्था से कॉलेजों को मान्यता देने में लचीला पर अपनाया जाएगा। लिहाजा दुष्परिणाम सामने आएंगे। प्रदेश के कई कॉलेजों को तो अभी नेशनल एग्रीडिएशन एसेसमेंट कॉउंसिल से उत्कृष्टता का प्रमाण-पत्र ही प्राप्त नहीं है। राजधानी में बीयू को बी और नूतन को पहले बी फिर ए सर्टिफिकेट मिला है। इसके अलावा अन्य कॉलेजों को कोई उत्कृष्टता का प्रमाण-पत्र नहीं मिला है। 
डॉ. गुंजन शुक्ला, प्राचार्य, श्रीसार्इं कॉलेज 

-पर टीमें अगल हों 
वर्किंग सिस्टम ज्यादा अच्छा हो सकेगा। वहीं उच्च शिक्षा की दिशा में स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा जन्म लेगी। विश्वविद्यालय स्वतंत्र होंगे निर्णय लेने के लिए। अभी बीएड का कोर्स एक साल पीछे चला गया है। इससे छात्रों को एक साल का सीधे नुकसान हो गया है। कम से कम भविष्य में तो ऐसा नहीं होगा। दूसरा जिस यूनिवर्सिटी की कार्यप्रणाील पारदर्शी होगी, निर्णय लेने में सक्षम होगी। कॉलेज भी वहीं से मान्यता लेना चाहेंगे, खास तौर पर वह कॉलेज जिन्हें शिक्षण क्षेत्र में कुछ बेहतर करना है। वहीं जिन्हें विवि   की अनुमति मिलेगी, उन पर यह नियम भी हो की उनकी प्रशासकीय कार्य की टीम व शिक्षण कार्य करने वाली टीम अलग हो। प्रोफेसर वर्ष में केवल 3 निरीक्षण करेंगे, जिससे शिक्षण कार्य में किसी प्रकार की बाधा नहीं आएगी। 
क्षेत्रीय शिक्षण संस्थान, प्रवक्ता, श्यामला हिल्स भोपाल

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