कथा प्रंसग का पांचवा दिन
भोपाल।
चित्रकूट से पधारे आचार्य नवलेश ने शिव महिमा को बताते हुए कहा है कि बाबा की कृपा जिस किसी भी मनुष्य पर हो जाती है उसे भक्ति वैराग्य और ज्ञान मिल जाता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को यह तीनों गुणा बिना उसकी कृपा के मिलता ही नहीं है। जीवन को संवारने और जीवन से मुक्ति दिलाने वाले यही वो तीनो तत्व हैं जो नर को नरायण बना देते हैं। आचार्यश्री ने कथा के पांचवे दिन पावर्ती के विवाह और विदाई के प्रसंग को सुनाकर श्रोताओं को भाववि ोर कर दिया। उन्होंने बताया कि पावर्ती की विदाई के समय उनके माता पिता ही नहीं बल्कि स्वयं शिव के नेत्र भी सजल हो गये थे। उन्होंने इसे भारत की अक्षुण संस्कार होना बताया और यह भी कहा कि यही संस्कार सनातन धर्म की आधारशिला है जो परिवार और सं बधों के रूप में हमारे सामने प्रकट होते है। आचार्य श्री ने कहा कि आज के समय में जरूरत इस बात की है कि हम अपने जीवन स्वधर्म, परिवार, संबंध को विशेष दृष्टि से देखें।
उन्होंने इस बात की ओर भी इशारा की जहां दिखावे का जीवन दिया जाता है उसे ही कल युग कहते हैं। आचार्य श्री ने श्रोताओं से स्वभाव में लौटकर जीने की अपील की। यह कथा बीएचईएल के सिक्योरिटी लाईन चौराहे पर प्रति दिन तीन बजे से होती है। इसका समापन 22 दिन मंगलवार को होगा।
आग्रह: कृपया खबर को फोटो के साथ उचित स्थान दें।
भोपाल।
चित्रकूट से पधारे आचार्य नवलेश ने शिव महिमा को बताते हुए कहा है कि बाबा की कृपा जिस किसी भी मनुष्य पर हो जाती है उसे भक्ति वैराग्य और ज्ञान मिल जाता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को यह तीनों गुणा बिना उसकी कृपा के मिलता ही नहीं है। जीवन को संवारने और जीवन से मुक्ति दिलाने वाले यही वो तीनो तत्व हैं जो नर को नरायण बना देते हैं। आचार्यश्री ने कथा के पांचवे दिन पावर्ती के विवाह और विदाई के प्रसंग को सुनाकर श्रोताओं को भाववि ोर कर दिया। उन्होंने बताया कि पावर्ती की विदाई के समय उनके माता पिता ही नहीं बल्कि स्वयं शिव के नेत्र भी सजल हो गये थे। उन्होंने इसे भारत की अक्षुण संस्कार होना बताया और यह भी कहा कि यही संस्कार सनातन धर्म की आधारशिला है जो परिवार और सं बधों के रूप में हमारे सामने प्रकट होते है। आचार्य श्री ने कहा कि आज के समय में जरूरत इस बात की है कि हम अपने जीवन स्वधर्म, परिवार, संबंध को विशेष दृष्टि से देखें।
उन्होंने इस बात की ओर भी इशारा की जहां दिखावे का जीवन दिया जाता है उसे ही कल युग कहते हैं। आचार्य श्री ने श्रोताओं से स्वभाव में लौटकर जीने की अपील की। यह कथा बीएचईएल के सिक्योरिटी लाईन चौराहे पर प्रति दिन तीन बजे से होती है। इसका समापन 22 दिन मंगलवार को होगा।
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