रविवार, 30 जून 2013

अवैध निर्माण ढहाने की हो गई रस्मअदायगी

नगर निगम परिषद में मामला उठने के बाद हो सकी कारर्वाई
अशोका गार्डन में सरकारी जमीन पर बनाया गया है मकान
अवैध निर्माण को पूरी तरह ढहाने के बजाय छोड़ दिया गया
भोपाल। 
सरकारी जमीनों पर बेजा कब्जा करके अवैध निर्माण के खिलाफ नगर निगम का अतिक्रमण विरोधी अमला क्या कारर्वाई करता है, तो यह उसकी बानगी है। अशोका गार्डन इलाके में सरकारी जमीन पर तानी गई इमारत को पूरी तरह से ढहाने के बजाय कुछ ईंटे हटाने की रस्मअदायगी करके छोड़ दिया गया। दूसरी ओर, अवैध निर्माण के खिलाफ नगर निगम परिषद की बैठक में नेता प्रतिपक्ष सहित कांग्रेसी पाषर्दों के जबर्दस्त हंगामा के बाद जांच हुई थी और अवैध निर्माण प्रमाणित होने पर संपूर्ण अतिक्रमण हटाने के निर्देश जारी हुए थे। 
नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी अमले ने शनिवार को अवैध निर्माण ढहाने की बड़ी कारर्वाई का ढोल पीटते हुए अशोका गार्डन इलाके की इकबाल कालोनी के प्लाट 118 पर बिल्डिंग परमिशन के बिना बनाई गई इमारत की दो मंजिलों को ढहाने का दावा किया है। हालांकि, मौके पर सिर्फ दूसरी और तीसरी मंजिल के अवैध निर्माण को जरा सा तोड़ा गया है। मकान मालिक आरटी चौरसिया ने 650 वर्ग फीट के दायरे से बाहर जाकर करीब 1200 वर्ग फुट पर बेजा निर्माण किया है। गौरतलब होगा कि, कांग्रेस पार्षद दल नेता मोहम्मद सगीर ने इस अवैध निर्माण के बारे में परिषद में सवाल पूछा था, जिस पर 28 मार्च,13 को पेश जवाब में माना गया है कि अवैध निर्माण पाए जाने पर नोटिस जारी किया गया है। हालांकि, इसके बाद भी कारर्वाई नहीं होने पर सगीर ने मार्च और फिर मई,2013 में कमिश्नर नगर निगम को मय दस्तावेजों के शिकायत करते हुए कारर्वाई की मांग की। 
परिषद की बैठक में मचेगा हंगामा
अवैध निर्माण तोड़ने के बजाय रस्मअदायगी के खिलाफ नगर निगम परिषद की आगामी बैठक में हंगामा मचने के आसार हैं। नेता प्रतिपक्ष मोहम्मद सगीर ने कहा है कि राजनीतिक दबाव के चलते बिना इजाजत सरकारी जमीन पर बने मकान को तोड़ने के बजाय कुछ ईंटे गिराकर निगम अमला लौट गया। इसके बाद भी निगम के इंजीनियर और अतिक्रमण अधिकारी झूठ बोल रहे हैं कि दो मंजिलों को ढहाया गया है। इस मिलीभगत के खिलाफ परिषद की बैठक में आवाज उठाने के साथ ही कांग्रेस पार्षद दल आंदोलन भी करेगा। 

गैस पीड़ितों ने घेरा बीएमएचआरसी ,भोपाल

गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन ने शनिवार को भोपाल मेमोरियाल हास्पिटल के अपग्रेडेशन में हो रही देरी के खिलाफ अस्पताल का घेराव किया। इस दौरान संगठन के कार्यकर्ता करीब ढाई घंटे तक गेट के सामने जमा रहे। 
संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने बताया, 9 जनवरी, 2012 से बीएमएचआरसी देश की शीर्ष मेडीकल शोध व अध्ययन संस्था भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के जिम्मे है। पहले 18 जुलाई, 10 तक यह अस्पताल   सुप्रीमकोर्ट के निवृतमान न्यायमूर्ति एएम अहमदी की चेअरमैनशिप में एक ट्रस्ट चला। इसमें भारी अनियमितताएं व मेडीकल अव्यवस्थाएं सामने आई थीं। इसके बाद 19 जुलाई, 10 को सुप्रीम कोर्ट ने ट्रस्ट से अस्पताल लेकर भारत सरकार को सौंप दिया था। 
उल्लेखनीय है कि सबसे पहले अस्पताल का दायित्व परमाणु उर्जा विभाग के पास था, इसी के चलते यहां तेजी से सुधार हुआ। अचानक प्रधानमंत्री कार्यालय में चले षड़यंत्र के तहत इसे डेढ़ वर्ष पूर्व आईसीएमआर को सौंपा गया। इसके बाद 18 माह तक अतिसंवेदनशील महत्वपूर्ण उपकरणों की खरीदी से लेकर बन्द विभाग को दोबारा शुरू के बारे में कुछ नहीं हो सका। श्री जब्बार ने बताया, 9 अगस्त 12 को संगठन की मेडीकल व्यवस्था सुधार याचिका पर सुप्रीमकोर्ट ने आईसीएमआर को सुपर स्पेशलिटी का पोस्ट ग्रेजुएट संस्थान बनाने के साथ ही यहां से सेवाएं छोड़ रहे चिकित्सकों को रोकने के उपाय करने को कहा है। 

-...और बना दी दूसरी कमेटी 
बीएमएचआरसी में व्यवस्थाएं सुधार को  लेकर आईसीएमआर ने एम्स दिल्ली, चंढ़ीगढ़ के साथ ही 17 से अधिक शीर्ष चिकित्सकों की एक कमेटी बनाई थी। इसका क्या परिणाम आया, उसकी  सिफारिशे क्या हैं? इसे सार्वजनिक नहीं किया गया। इसके उलट 30 चिकित्सकों की नई कमेटी बना दी है। इसकी शनिवार को पहली बैठक थी। इस बारे में कोई जानकारी ही नहीं कि दूसरी कमेटी का औचित्य क्या है। 


‘मुआवजा नहीं तो वोट नहीं’

-सड़कों पर उतरे गैस पीड़ित, बीएमएचआरसी के खिलाफ की नारेबाजी 
भोपाल। 
गैस पीड़ित शनिवार को वाजिब मुआवजा और भोपाल मेमोरियल अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) को अपग्रेडे किए जाने की फाइलें दबे होने से सड़कों पर उतरे। गैस पीड़ितों का कहना था, वाजिब मुआवजा नहीं तो वोट नहीं। 
गैस पीड़ित संयुक्त संघर्ष मोर्चा ने यूनियन कार्बाइड तक रैली निकाल आवज बुलंद की। दूसरी ओर गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन ने बीएमएचआरसी के सामने प्रदर्शन करके अस्पताल अपग्रेडेशन में हो रही देरी पर नाराजगी जताई। संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष शमशुल हसन बल्ली की अगुवाई में भारत टॉकीज चौराहे से यूका, जेपी तक यह रैली निकाली गई। संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष ने कहा, बीते 28 साल से गैस पीड़ित संघर्ष करते आ रहे हैं, लेकिन उनकी अगुवाई करने वाले संगठनों की सरकार से मिलीभगत के चलते वास्तवकि मुआवजा नहीं मिल सका। संगठनों के नाम पर विदेश यात्राएं करके चंदाखोरी की जा रही है। गैस पीड़ितों के नाम पर बीते 25 साल से चंदाखोरी करने वाले फर्जी गैस पीड़ित नेताओं की जांच करके आपराधिक कारर्वाई की जाए। गैस पीड़ित बस्तियों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी साफ और शुद्ध पेयजल नहीं पहुंचाया जा रहा है। वहीं गैस राहत अस्पतालों में कागजी खाना पूर्ति की जा रही है, लेकिन गैस पीड़ितों को लाभ नहीं मिल रहा है। इसका सीधा फायदा अपग्रेडेशन के नाम पर ठेकेदारों को हो रहा है। 

कल से सस्ता होगा दर्द का मर्ज

 या
कल से दवा होगी थोड़ी सस्ती 
-444 दवाओं की हुई डीपीसी, रिटेल दवा व्यापारियों में हड़कंप 
-मूल्य नियंत्रण होने से फुटकर विक्रताओं का 20 प्रतिशत तक मार्जन कम हुआ
-फिर भी कमाई होगी 40 से 50 प्रतिशत तक 
हेमन्त पटेल, भोपाल। 
लंबे समय से दवाओं के मूल्य नियंत्रण की चल रही कवायदें पूरी हो गई हैं। अब 1 जुलाई, (सोमवार) से दवाओं को डीपीसी (ड्रग प्राइज कंट्रोल) में लाया जा रहा है। इसी के साथ प्रदेश में 444 दवाईयां इस जद में होंगी। लोगों को यह दवाएं थोड़े सस्ते में मिलेंगी। 
इससे पहले 350 दवाओं को डीपीसी में लाया जा रहा था। बाद में मप्र स्वास्थ्य विभाग ने इसमें 94 दवाओं को ओर सूचिबद्ध किया। ‘नवीन दवा मूल्य नियंत्रण आदेश’ मेडिकल इंडस्ट्रीज और दवा विके्रताओं के लिए 1 जुलाई से मान्य होंगे। हलांकि मूल्य नियंत्रण में लाए जाने की कवायद केंद्र के स्वास्थ्य विभाग, कैमिकल इंडस्ट्रीज और मानव संसाधन विभाग ने शुरू की है। इसके तहत केंद्र सरकार ने न्यूनतम दाम निर्धारित करने के लिए नेशनल फार्मेस्क्यूटीकल प्राइजिंग आॅथारिर्टी (एनपीपीए) गठित की है। उम्मीद है दवाओं के दाम नियंत्रण में लिए जाने के बाद से इसका सीधा फायदा आम लोगों को मिलेगा। वहीं फुटकर व्यापारी धड़े में इसको लेकर पहले से ही उहापोह की स्थिति थी, जो अब ओर बढ़ती दिखाई दे रही है। 

-इसलिए हड़कंप 
‘नवीन दवा मूल्य नियंत्रण आदेश’ के तहत प्रथम दृष्टि में एक मरीज को जिन जीवन रक्षक दवाओं की ज्यादा आवश्यकता होती है, उन्हें सूचीबद्ध किया गया है। जानकारों के अनुसार चूंकि बाजार में इनकी खफत 60 फीसदी होती है, इस लिहाज से इनका फायदा घट जाएगा। मूल्य नियंत्रण में आने से रिटेल दवा व्यापारियों के मार्जन लगभग 15 से 20 प्रतिशत तक कमी आएगी। बावजूद इसके 40 से 50 प्रतिशत फायदा फिर भी इनको मिलना जारी रहेगा। दवा इंडस्ट्रीज से जुड़े डॉ. वीके पारशर की माने तो यह मूल्य नियंत्रण केवल टेबले और कैप्शूल में किया गया है। कई इंजेक्शन ऐसे हैं, जिनके मूल्य सरकार को नियंत्रण में लाना चाहिए। 

-डीपीसी में ये भी होगा 
डीपीसी को ध्यान में रख कर कैमिकल इंडस्ट्रीज को कम से कम कीमतों में नई श्रेणी की दवाईयां बनाने को कहा। इसमें टीवी दवाएं, सेडवेटिव, लिपिड, लोबरिंग दवाएं और स्ट्रेपिड दर्द निवारक आदि शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि 29 सितंबर, 2012 को 348 दवाओं को डीपीसी के तहत सूचीबद्ध किया गया था। 

-ऐसे सस्ती हुई दवा 
सेफिजिम-200 जिसका वर्तमान प्रिंट मूल्य 170 रुपए है। यह अब 120 रुपए में मिलेगी। इसी प्रकार सेफिजिम डिसपरसिबिल-100 टेबलेट 90 रुपए के स्थान पर 63 रुपए में दवा दुकान से मिल सकेगी। वहीं रिटेल दवा विक्रेताओं को क्रमश: 80 व 40 रुपए तक का मार्जन मिलेगा। 

ड्रग प्राइज कंट्रोल में 444 दवाईयों को सूचीबद्ध किया गया है। यह 1 जुलाई से होने वाली मैन्यूफेक्जरिंग में लागू हो जाएगी। इसके बाद से रिटेल बाजार में यह आम जन को कम कीमत में मिलेंगी। 
प्रवीर कृष्ण, प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य

सरकार ने मोटे तौर पर ज्यादा खपत और जरूरी लगने वाली दवाओं को दायरे में लिया है। यह अच्छी बात है। इसका सीधा फायदा दवा के्रताओं को मिलेगा, जिन्हें महंगी दवाएं खरीदनी होती हैं। 
मुकेश कुमार राठौर, फील्ड सेल्स आॅफिसर 


शनिवार, 29 जून 2013

राकेश अचल प्रमोद वर्मा सम्मान से अलंकृत

सेम्रीप{कम्बोडिया}/यहाँ सम्पन्न सातवें अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार औरसाहित्यकार राकेश अचल को प्रमोद वर्मा सम्मान से अलंकृत किया गया .अचल को ये सम्मान उनकीउत्कृष्ट साहित्य सेवा के लिए दिया ग्याअचल सम्मेलन के उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि भी थे  से  जून तक चले इस सम्मेलन में अचल ने भूमंडलीकरण और मीडिया विषय पर अपने आलेख का वाचनभी कियासम्मेलन में देशविदेश के करीब   साहित्यकारों और पत्रकारों ने हिस्सा लियामध्यप्रदेश सेराकेश अचल के    अलावा राजेश्वर आन्देव,चेतना भारद्वाज,राजश्री  रावत,अरविन्द रावत  सम्मेलन मेंमौजूद थे  सृजन गाथा और उसकी सहयोगी संस्थाओं द्वारा आयोजित इस सम्मेलन का उद्घाटन राजस्थानके पूर्व सूचना आयुक्त श्री अमर  सिंह राठौड़ ने किया .आभार प्रदर्शन जयप्रकाश मानस ने कियसम्मेलनमें करीब दो दर्जन पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गयाअंतर्राष्ट्रीय कविता संगोष्ठी में भी साहित्यकारों कीभागीदारी रहिसम्मेलन में शामिल सदस्यों ने कम्बोडिया के अलावा थाईलैंड और वियतनाम की सांस्कृतिकयात्रा भी की    
कम्बोडिया में मध्यप्रदेश सरकार की सराहना 
अटल बिहारी हिंदी विश्व विद्यालय की स्थापना के लिए साधुवाद दिया 
सेम्रीप{कम्बोडिया}/यहाँ सम्पन्न सातवें अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ने मध्यप्रदेश के भोपाल शहर में देश कापहला हिन्दी विश्व विद्यालय खोलने के लिए मध्यप्रदेश सरकार की भूरिभूरी सराहना की है. .सम्मेलन मेंमध्यप्रदेश के साहित्यकार राकेश अचल द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव को सम्मेलन ने सर्व सम्मति से स्वीकार करतेहुए अटल बिहारी हिंदी विश्व विद्यालय की स्थापना के लिए मध्य प्रदेश सरकार को साधुवाद दिया और आशाव्यक्त की यह विश्व विद्यालय चिकित्सा और तकनीकी विषयों की शिक्षा हिन्दी में प्रारम्भ  करने में विशेषभूमिका का निर्वाह करेगाप्रस्ताव के समर्थक छिंदवाडा के राजेश्वर आन्देव थेसम्मेलन के चर्चा सत्र मेंपारित किये गये स्तर की अध्यक्षता देव कृष्ण राजपुरोहित ने कि.विशिश्थ अतिथि हरीश नवल थे. .

मंगलवार, 25 जून 2013

...तो बंद हो जाएंगी प्रदेश की २०० बंदूक दुकानें

-आम्र्स डीलरों को सरकार का फरमान: साल में 25 बंदूके और 2500 कारतूस बेचना जरूरी
- प्रदेश के २०० गन हाउस बंद होने की कगार पर 
दबंग रिपोर्टर. भोपाल। 
प्रदेश शासन द्वारा दो साल पहले दिए गए एक फरमान से प्रदेश भर के शस्त्र विक्रेता अपना बोरिया-बिस्तर समेटने को मजबूर हो गए हैं। शासन के इस लक्ष्य को पूरा नहीं करने वाले शस्त्र विक्रेताओं की दुकानों का लाइसेंस रिन्यू नहीं किया जा रहा है। यही कारण है कि प्रदेश की 200 शस्त्र दुकानें बंद होने की कगार पर आ गई है। अकेले राजधानी में ही 10 शस्त्र विक्रेता हैं जो इस फरमान के कारण अपनी दुकान बंद करने का विचार कर रहे हैं। वर्तमान में शहर की इन 10 दुकानों में से अभी तक शासन ने केवल 2 दुकानों का लाइसेंस ही रिन्यू किया है। बाकी 8 दुकानों का प्रस्ताव शासन के पास विचाराधीन है। यहीं नहीं,ग्वालियर की 27 दुकानों की हालत भी खराब ही है। शासन के इस आदेश के खिलाफ ये दुकानदार कोर्ट की शरण में भी गए। कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला देते हुए सरकार को 45 दिन के भीतर लाइसेंस रिन्यू करने का आदेश दिए,लेकिन इसके बावजूद सरकार ने इस आदेश का पालन नहीं किया है। 
गृह विभाग का दोहरा रवैया
डीलरों के अनुसार प्रदेश का गृह विभाग उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार अपना रहा है। एक ओर तो वह हथियारों और कारतूसों के चलन को बढ़ावा दे रहा है वहीं दूसरी तरफ हथियारों के नए लाइसेंस नहीं बना रहा है। जिनके लाइसेंस बनते भी है वह चंडीगढ़ व कानपुर से जाकर हथियार खरीदते है। इस वजह से शासन के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाने वाली प्रदेश की लभगग ३० दुकानें अब तक बंद हो चुकी है। यहीं नहीं उनका यह भी कहना है कि शस्त्र लाइसेंस रखने वाले लोगों को साल भर में कारतूस खरीदने की संख्या भी निधारित की गई है। साल भर में एक लाइसेंस पर 25 कारतूस ही मिलते है।
कोर्ट का आदेश भी ताक पर
बंदूक और गोलियों की बिक्री निर्धारित करने के मनमाने आदेश के खिलाफ प्रदेश के कई बंदूक दुकानदारों ने कोर्ट की शरण ली। पूरा मामला समझने के बाद हाईकोर्ट जबलपुर ने करीब छह माह पहले आदेश दिए थे कि लाइसेंस रिन्यू करने की नियमावली बनाने का अधिकार प्रदेश शासन को नहीं है। इसलिए नियमावली रद्द की जाती है। इस आदेश में बंदूक दुकानदारों के लाइसेंस 45 दिन के भीतर रिन्यू करने के आदेश दिए थे,लेकिन आज तक लाइसेंस रिन्यू नहीं हो पाए है। अब आम्र्स डीलर न्यायालय की अवमानना का केस लगाने की तैयारी में है। 
रिन्यू के मापदंड
- वर्ष भर में न्यूनतम 25 हथियार या 2500 कारतूस से कम बिक्री पर लाइसेंस नवीनीकरण नहीं
- गत तीन वर्ष की औसत बिक्री-गत वर्ष की बिक्री के आधार पर मापदंड बनेगा
- गत वर्ष या गत तीन वर्ष के वार्षिक औसत बिक्री की मात्रा के पश्चात संख्या को अगले 10 के गुणक पर राउंड कर अंतिम संख्या नवीनीकरण हेतु नियत की जाएगी।
- बिक्री का आंकड़ा एक वर्ष से कम हो तो आनुपातिक रूप से एक वर्ष का आंकड़ा निकालेंगे।
-प्रारंभिक तौर पर नए शस्त्र दुकानों में मरम्मत का लाइसेंस जारी नहीं होगा। तीन वर्ष की बिक्री का संतोषजनक परिणाम आने के बाद ही मरम्मत की अनुज्ञप्ति जारी की जाएगी।
-जिनको अभी तक लाइसेंस जारी हो चुका है उनको मरम्मत का लाइसेंस जारी नहीं होगा। तीन वर्ष की बिक्री का संतोषजनक परिणाम आने पर ही मरम्मत की अनुज्ञप्ति जारी की जाएगी।
- मरम्मत का कार्य नगण्य हो तो लाइसेंस नहीं
- प्रारंभिक तौर पर नई दुकानों को सेफ कस्टडी जारी नहीं की जाएगी।
इनका कहना
सरकार के कड़े नियमों की वजह से शस्त्र विक्रेताओं की आर्थिक हालत खराब हो रही है। सरकार को नियमों में शिथिलता लाकर सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए।
शैलेष केसरवानी,प्रदेश अध्यक्ष शस्त्र विक्रेता

शासन ने 25 बंदूकें और 2500 कारतूस बेचने के बाद लाइसेंस रिन्यू करने का आदेश दिया है। हमारा काम शासन के नियमों पर चलना है न कि तर्क-वितर्क करना। जहां तक कोर्ट के आदेश की बात है। इसके बारे में मुझे जानकारी नहीं है।
बीएस जामौद, प्रभारी कलेक्टर व एडीएम

फोनिक्स एजेंसी की 6 लाख 88 हजार की सामग्री राजसात

 - जाते-जाते पूर्व कलेक्टर कर गए तगड़ा जुर्माना 
भोपाल। पांच हजार सिलेण्डरों का हिसाब न मिल पाना, बांटे गए सिलेण्डरों की जानकारी न होना सहित अन्य गड़बडिय़ां करने वाली फोनिक्स गैस एजेंसी पर पूर्व कलेक्टर निकुंज कुमार श्रीवास्तव ने तगड़ा जुर्माना किया है। एजेंसी से जब्त किए गए सभी 545 सिलेण्डर राजसात किया गया है। इन सिलेण्डरों का मूल्य 6 लाख 88 हजार 482 रुपए है, जिन्हें राजसात की गई सामग्री के एवज में जमा कराने को कहा गया है। इधर खाद्य विभाग के अधिकारियों की माने तो इस प्रकरण में एजेंसी के संचालक पर पूर्व में ही एफआईआर हो चुकी है। 

 यह है मामला -  गैस एजेंसियों द्वारा की जा रही घरेलू गैस सिलेण्डरों की कालाबाजारी खत्म करने तथा उपभोक्ताओं को आसानी से गैस सिलेण्डर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से खाद्य विभाग ने 6 जनवरी 2012 को फोनिक्स फिनिक्स गैस एजेंसी पर छापा मारा। इंद्रपुरी स्थित इस एजेंसी पर पहुंचे जिला खाद्य आपूर्ति नियंत्रक एचएस परमार ने 22 उपभोक्ताओं से पूछा तो इसमें से 18 ने बताया कि 8 -10 दिन पहले सिलेण्डर के लिए बुकिं ग कराई थी, लेकिन अब तक सिलेण्डर नहीं मिला। श्री परमार ने जांच पड़ताल की तो पता चला कि क प्यूटर में उनकी बुकिंग के साथ उनकी डिलेवरी भी चढ़ी थी और बिल भी जारी कर दिए गए थे, लेकिन जांच में पावती नहीं मिली। इसके बाद श्री परमार ने दिसंबर व जनवरी का बुकिंग-डिलेवरी, सिलेण्डर आए व उपभोक्ताओं को दिए गए का रिकार्ड निकलवाया तो पाया कि 5005 सिलेण्डर की पावती स्लिप भी नहीं मिली। हालांकि कागजों व क प्यूटर रिकार्ड में इन सिलेण्डरों की डिलेवरी बताई गई थी। जब एजेंसी संचालक से इसके बारे में पूछा गया तो वह भी जानकारी नहीं दे सका कि यह सिलेण्डर किनको दिए गए। इस ाुलासे के बाद अधिकारियों ने एजेंसी के स ाी आंकड़ों को खंगाला तो सामने आया कि एजेंसी में 1300 उपभोक्ताओं की वेटिंग चल रही है, जबकि 17 सौ से अधिक के बिल निकाले पाए गए। श्री परमार ने बताया कि टीम कुछ सदस्यों ने एजेंसी के नीलबड़ स्थित गोदाम पर भी पहुंचे और वहां से 545 सिलेण्डर जब्त किए करते हुए एजेंसी के खिलाफ प्रकरण बनाया गया था।  

जमीन तो मिली, छत नहीं

-गोविंदपुरा उप पंजीयन कार्यालय को सवा साल से भवन की दरकार 
-परीबाजार के कार्यालय में ही चह रहा काम काज 
भोपाल। 
गोविंदपुरा उप पंजीयन कार्यालय ताबड़ तौड़ 1 अप्रैल 2012 को बना तो दिया, लेकिन इसे अब तक छत नसीब नहीं हो पाई है। सवा साल बाद भी यह परीबाजार स्थित जिला पंजीयन कार्यालय के दो कमरो में ही चल रहा है। गोविंदपुरा क्षेत्र में इसके लिए अब तक कोई निजी या शासकीय भवन नहीं मिल सका है। हालांकि की अधिकारी नरेला शंकरी में कार्यालय के लिए जमीन आवंटन की बात कह रहे हैं। 
विभागीय अधिकारियों की ही माने तों उप पंजीयन कार्यालय को गोविंदपुरा क्षेत्र में स्थापित करने बीते एक साल से प्रयास चल रहा है। इसके लिए आधा दर्जन से अधिक स्थानों का निरीक्षण किया गया। कई निजी और भेल के क्वॉटर्स भी देखे, लेकिन कभी अफसरों को पसंद नहीं आया तो कभी मकान मालिक ने मकान देने से ही इंकार कर दिया। जो पसंद आए वह प्रथम तल पर थे, जबकि विभाग को ग्राउण्ड लोर पर मकान चाहिए था। इसको लेकर वरिष्ठ जिला पंजीयक एनएस तोमर ने पत्राचार भी किया, लेकिन इसका भी जवाब नहीं मिला। अब विभाग ने जमीन के लिए प्रस्ताव जिला प्रशासन को भेजा। अच्छी बात यह है कि इसे जमीन के आरक्षण की पुष्टि हो गई है। 

-हाथ से गया भवन 
भेल में पुरानी डिस्पेंसरी मिली थी यहां लोक सेवा केंद्र संचालित हो रहा था। यह केंद्र दो बड़े हाल में चल रहा था। इसके अतिरिक्त डिस्पेंसरी में अन्य कमरे भी थे, जो कि गोविंदपुरा उपपंजीयन कार्यालय के लिए पर्याप्त थे। इस पर सहमति बनने के बाद उपपंजीयन कार्यालय के इसमें शिफ्ट करने की तैयारी शुरू होने ही वाली थी कि कस्तूरबा अस्पताल की बिल्डिंग का एक हिस्सा गिर गया। इसके बाद भेल से अपने क्षेत्र में स्थित जर्जर भवनों की जानकारी जुटाना शुरू कर दी। नतीजतन पुरानी डिस्पेंसरी भी जर्जर भवन की सूची में आ गई। लोक सेवा केंद्र तो कोलार शि ट हुआ ही, साथ ही साथ उपपंजीयन कार्यालय के लिए फिर से संकट खड़ा कर गया। 

-जल्द होगा निर्माण 
वार्ड 15 से 24 तक (पटवारी हल्के के मुताबिक) तथा साधारण वार्ड 35 से 39, 43, 55 से 65, 67 तक की जमीनों की रजिस्ट्रियां परीबाजार के कार्यालय के उपरी मंजील के दो कमरो में हो रही हैं। जमीन का आवंटन हो गया है, जल्द ही यहां निर्माण कराया जाएगा। 
एनएस तोमर, वरिष्ठ जिला पंजीयक 

१९ का आवेदन २५ तक लंबित

-बिना औचित्यपूर्ण कारण के निरस्त किए जा रहे आवेदन 
-लोक सेवा केंद्र में चल रही मनमानी 
भोपाल। 
कलेक्टोरेट का निजी लोक सेवा केंद्र कुप्रबंधन की भेंट चढ़ गया है। एक सप्ताह पहले जिन्होंने आय और स्थानीय निवासी के लिए आवेदन दिया था। उन्हें अब तक यह प्रमाण-पत्र नहीं मिले हैं। १९ और २० जून के आवेदकों को २५ (मंगलवार) तक प्रमाण-पत्र ही नहीं मिले हैं। वहीं आवेदकों के आवेदनों पर मीन-मेक निकाल उन्हें निरस्त किया जा रहा है, जबकि आवेदक द्वारा दिए जा रहे दस्तावेजों व आवेदन को सही स्केन ही नहीं किया जा रहा है। जिला प्रशासन के आला अधिकारी अब भी सुध लेने को तैयार नहीं हैं।
इस समय महाविद्यालय और स्कूलों में प्रवेश चल रहा है। कलेजों में एडमिशन की तारीख ३० जून निर्धारित की गई है। केंद्रीय और राज्य शासन के स्कूलों में भी यही स्थिति निर्मित है। इसके चलते छात्र-छात्राओं और परिजनों का कलेक्टर कार्यालय के इस केंद्र में जमावड़ा लग रहा है। दूसरी और केंद्र के कर्मचारी सीधे आवेदक से इक्का-दुक्का आवेदन लेकर बाकी रिजेक्ट कर रहे हैं। दूसरी और दलालों के मार्फत उन्हीं आवेदनों के प्रमाण-पत्र बन रहे हैं। 
२५ सितंबर, २०१२ से निवर्तमान कलेक्टर निकुंज कुमार श्रीवास्तव ने शहर में तीन निजी लोक सेवा केंद्रों का गठन किया था। इसके पीछे तर्क था कि इससे लोगों को ठीक और समय पर आय और स्थानीय निवासी प्रमाण-पत्र समय पर उपलब्ध होंगे। बावजूद इसके स्थिति बुरी तरह बिगड़ चुकी है। वैसे केंद्र के निजी होने से व्यवस्थाएं चरमारा गई थी। 


-अधिकारी उत्तराखंड में है 
लोक सेवा केंद्र के एक कर्मचारी से सामान्य व्यक्ति बन दस्तावेज समय पर न बन पाने के बारे में पूछा तो उत्तर मिला, 'सभी अधिकारी और तहसीलदार उत्तराखंड में आई बाढ़ के आपदा प्रबंधन में लगे हुए हैं। इसलिए प्रमाण-पत्र जारी नहीं हो रहे हैं।Ó गौर करने वाली बात यह है कि केंद्र कर्मचारी केवल गुमराह कर रहे हैं, जबकि पूर्व कलेक्टर के निर्देशानुसार हर दिन अलग-अलग तहसीलदार की ड्यूटी आय, स्थानीय निवासी प्रमाण-पत्रों पर हस्ताक्षर करने की होती है। 

-५०० लोग हो रहे परेशान 
कलेक्टोरेट में इस समय प्रतिदिन ५०० से ७०० लोग पहुंच रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा परेशान होने वालों की संख्या विद्यार्थी वर्ग की है। इसमें कक्षा ८वीं से लेकर कालेज में प्रवेश करने वाले छात्र-छात्रा आवेदक शामिल है। इसी प्रकार वह परिजन जिन्हें अपने बेटा-बेटी या नाती-पौते को दखिला दिलाना है। उनकी भी खासी भीड़ यहां देखी जा सकती है। उल्लेखनीय है महाविद्यालयों में काउंसिलिंग के दौरान विद्यार्थियों से आय, स्थानीय निवासी और जाति प्रमाण-पत्र मांगे जाते हैं। वहीं छोटी कक्षाओं में छात्रवृत्ति और प्रवेश नियम के तहत इन दस्तावेजों की आश्यकता होती है।

 -कलेक्टर गए, व्यवस्था खत्म
लोक सेवा गारंटी अधिनियम अनुसार आय और स्थानीय निवासी प्रमाण-पत्र ७ दिन में बनाने का प्रावधान किया गया है। हालांकि पूर्व कलेक्टर निकुंज कुमार श्रीवास्तव ने समाधान एक दिन की व्यवस्था के तहत इन्हें भी एक दिन में जारी किए जाएं। लोक सेवा केंद्र की स्थापना से पूर्व यह एक दिन में ही जारी हुआ करते थे। कलेक्टर के जाने के साथ ही व्यवस्था खत्म हो गई है। उल्लेखनीय है कि अब केंद्र की सेवाओं में प्रसूति प्रोत्साहन राशि के आवेदनों को भी इसमें जोड़ दिया गया। केंद्र में इसकी राशि ३० रुपए ली जा रही है। पहले इसका कोई भी शुल्क नहीं लगता था। 

एक नजर में...
सेवा पूर्व शुल्क  वर्तमान देय शुल्क यह थी समयसीमा अब समयसीमा
आय ५० कुल ३० रुपए एक दिन सात दिन 
स्थानीय निवासी ५० कुल ३० रुपए  एक दिन सात दिन 
प्रसूता सहायता नि:शुल्क ३० रुपए  सात दिन समय सीमा तय नहीं 
राशनकार्ड ०५ रुपए  ३० रुपए  १५ दिन समय सीमा तय नहीं 
मजदूरी कार्ड  नि:शुक्ल ३० रुपए  १५ दिन  समय सीमा तय नहीं 

-१९ को किया था आवेदन -फोटो
मैंने १९ जून को आय और स्थानीय निवासी प्रमाण-पत्र के लिए आवेदन किया था। पहले तो आवेदल ले लिया। इसके बाद यह कहते हुए इसे रिजेक्ट कर दिया कि हस्ताक्षर पूरे स्केन नहीं हुए, जबकि यह गलती केंद्र के कर्मचारियों की है। तहसीलदार को जब पूरे हस्ताक्षर व सही स्केन किए हुए कागज नहीं मिलेंगे तो वह रिजेक्टर करेगा। पर केंद्र कर्मचारी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं। नए सिरे से आवेदन करने को कह रहे हैं। 
किशोर कुमार सोमानी, बैरागढ़ निवासी 

वर्जन
परेशानी नहीं होगी
आपके माध्यम से बात संज्ञान में आई है। हितग्राहियों को परेशानी हो रही है तो मैं दिखवाता हूं। 
बीएस जामोद, प्रभारी कलेक्टर 

आवेदन लंबित नहीं 
हम तीन दिन में प्रमाण-पत्र तैयार करके दे रहे हैं। १९ या २० तारीख का कोई भी आवेदन लंबित नहीं है। 
दिलीप रघुवंशी, प्रभारी, निजी लोक सेवा केंद्र

पूर्ववत हो व्यवस्था 
भाजपा लोक सेवा गारंटी इसलिए लेकर आई थी कि लोगों को सस्ता और सुलभ तरीके से प्रमाण-पत्र मिलें। अब केंद्र का व्यवसायीकरण हो चुका है। इसका हम विरोध करेंगे। और कलेक्टर कार्यालय में पूर्ववत व्यवस्था सुचारु करने ज्ञापन सौंपा जाएगा। 
संजय साहू, अधिवक्ता एवं उपाध्यक्ष, भाजपा अग्रसेन मंडल