शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

हमें नहीं है म मी-पापा की डॉट पसंद

पुलिस किशोर विशेष इकाई में घर से भागने वाले बच्चों की सं या लगातार बढ़ रही है
भोपाल। 
 म मी ने कहा कि टीवी मत देखो तो गुस्से में घर छोड़ दिया। भाई ने दोस्तों के साथ खेलने नहीं दिया तो ट्रेन में बैठा और भोपाल आ गया। यह बातें उन बच्चों की हैं, जो घर से भागे हैं। विशेष किशोर पुलिस इकाई (एसजेपीयू) में ऐसे बच्चों को सं या लगातार बढ़ रही है। पिछले दो दिनों में एसजेपीयू में आठ बच्चे पहुंचे। इसमें से तीन बच्चें तो दूसरे राज्यों के थे जिन्हें पुलिस ने घर पहुंचाया है। इस मामले में काउंसलर्स का कहना है कि बच्चों में सहनशक्ति की क्षमता कम होना भागने का कारण है।
  एसजेपीयू को को-आडिर्नेट करने वाली चाइल्ड लाइन की डायरेक्टर अचर्ना सहाय ने बताया कि शुक्रवार को चाइल्ड लाइन की टीम उच्च मध्यम वर्ग के एक बच्चे को उसके घर पहुंचाने के लिए अहमदाबाद रवाना हुई है। ये बच्चा एक आभूषण व्यवसायी का है। पहले तो बच्चा बता नहीं रहा था कि वो कहां से आया है, दो सप्ताह के बाद उसने बालगृह के बच्चों को बताया कि वो अहमदाबाद का है, उसके पिता जौहरी है और उनका बड़ा व्यवसाय है। बड़ी बहन के डांटने पर वो भागकर यहां आ गया। सहाय ने बताया कि जब एसजेपीयू ने अहमदाबाद में बात की कि तो पता चला कि वहां बच्चे की गुमशुदगी के साथ ही अपहरण का मामला थाने में दर्ज था। सहाय का कहना है कि एक साल पहले घर से भागने वाले बच्चों की सं या 300 थी, जो अब बढ़कर एक हजार के आसपास हो गई है।
 दिल्ली, झाबुआ और कर्नाटक के बच्चे भी हैं
 एसजेपीयू में इस समय एक बच्चा दिल्ली का है, वो अपना पता बताने को तैयार नहीं है। उसका कहना है कि उसके पिता बहुत डांटते है इसलिए वो घर नहीं जाना चाहता। इस बच्चे का एक स्कूल में एडमिशन कराया गया है। एसजेपीयू की संगीता चौहान ने बताया कि अभी यहां कर्नाटक, झाबुआ और बैतूल के बच्चे भी है। घर से भाग कर आने वाले बच्चों की उम्र 8 से 14 वर्ष के बीच है।
 सहनशक्ति और धैर्य की कमी है
 चाइल्ड काउंसलर प्रीति माथुर का कहना है कि बच्चों के संबंध में माता-पिता 5 टी का खास ध्यान रखें ताकि बच्चे घर से भागने जैसा निर्णय न ले सके। इसमें  ट्रस्ट, टेंंडरनेस, टाइम, टॉक और टच का याल रखना चाहिए। यानि पहले तो बच्चों का भरोसा जीतना होगा, बातें करने का ढंग डांटना नहीं, बल्कि ऐसे समझाना है ताकि उनके कोमल मन को आघात न पहुंचे। बच्चों के साथ समय बिताना जरूरी है। उनसे संवादहीनता न हो इसलिए दोस्त बनकर बातचीत करें। साथ ही उन्हें स्नेहिल स्पर्श दे ताकि उन्हें सुरक्षा का अहसास हो। इससे बच्चों में धैर्य और सहनशीलता बढ़ेगी।
 घर से भागे बच्चों के आंकड़े
 वर्ष              सं या
 2010          525
 2011          725
 2012           836
 2013             624  (15 जुलाई तक) 

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