आज देष में बढ़ती मंहगाई, वित्तीय क्षेत्र में लगातार गिरावट, भ्रष्टाचार, निर्यात की कमी, उत्पादन में हस, बेरोजगारी का सिर उठाना, राष्ट्रीय सम्मान पर लगातार आघात और सुरक्षा के मोर्चा पर आपराधिक विफलता के बावजूद जिस तरह मुद्रास्फीति बढ़ाने की नीतियों पर केन्द्र सरकार अमल करती चली आ रही है उससे लगता है कि स्वंय कांग्रेसनीत यूपीए सरकार अपनी इच्छामृत्यु का आव्हान कर रही है। दलदल में फंसे व्यक्ति की तरह कांग्रेस की हर गतिविधि उसे गहरे दलदल में धकेल रही है। ऐसे में मूल समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए कांग्रेस और उसके सहयोगी दल बीच-बीच में मोदी विरोध के स्वर निकालकर नरेन्द्र मोदी की जनस्वीकायर्ता का विस्तार करनें में सहायक बन रहे है। दिलचस्प बात ंतो यह है कि कांग्रेस अपने चरण को चरण कमल और दूसरों के पैर को गोंड की कहावत चरितार्थ कर रही है। बजट के पूर्व ही बजट के पचास प्रतिषत भाग की रियायतें कॉरपोरेट जगत को परोसने वाली कांग्रेस मोदी पर कॉरपोरेट परस्ती का इल्जाम लगाकर हास्य का पात्र बन रही है। इसी तरह कुपोषण का आरोप लगाकर खुद अपनी विफलता को जनता के सामने उघाड़ रही है। क्योंकि कुपोषण रोकने के प्रयासों को लेकर सीएजी ने वर्ष 2012-13 का जो प्रतिवेदन पेष किया है उसनें कांग्रेस शासित राज्यों की पोल खोल दी। गुजरात सहित भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में जहां कुपोषण में गिरावट का स्तर उत्साहवर्द्धक है वहीं हरियाणा, आंध्र-प्रदेष, असम, राजस्थान में कुपोषण के औसत में ऐसी कोई कमी नहीं आयी है जिससे लगे कि वास्तव में कुपोषण कांग्रेस के लिए दंष है। पूरे देष में कुपोषण का स्तर औसतन जहां 36 प्रतिषत है, गुजरात ने इसे 27 प्रतिषत पर समेट दिया है।
नरेन्द्र मोदी जहां भारतीय जनता पार्टी के लिए सीमेन्टिंग फोर्स बनकर उभरे है और उनकी स्वीकायर्ता युवा वर्ग, मध्यम वर्ग में लगातार बढ़ रही है कांग्रेस की मजबूरी अब गुजरात के विकास मॉडल को संदेह के घेरे में लाना बन चुकी है। लेकिन यदि गुजरात को पिछड़ा राज्य बताकर कांग्रेसी आत्मसंतोष का अनुभव करते है ंतो कांग्रेस अपनी जबावदेही से कैसे मुक्त होगी। क्योंकि नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के शासन के गुजरात में प्रादुर्भाव के पहले ंतो गुजरात की नियति कांग्रेस के अधीन ही थी। जब बंबई राज्य से गुजरात अलग हुआ ंतो सल्तनत कांग्रेस के हाथ आयी थी, बाद में जो सरकार आयी वह भी कांग्रेस समर्थित थी। 1960 के बाद कांग्रेस अमूमन गुजरात की 12 हजार दिनों से अधिक भाग्य-विधाता रही है, जबकि भारतीय जनता पार्टी अक्टूबर 2013 तक साढ़े चार हजार दिन सत्ता में रह चुकी है और देष-विदेष के निवेषकों का गुजरात डेस्टीनेषन बन चुका है। नरेन्द्र मोदी को लेकर एनडीए के बिखरने की आषंका को लेकर भारतीय जनता पार्टी में चिंता होने के बजाय आत्मविष्वास का संचार हुआ है और लोकसभा चुनाव में कूदने वाले क्षेत्रीय खिलाड़ी भी भारतीय जनता पार्टी के प्रति नयी आषाओं के साथ निहार रहे है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिष कुमार ने भाजपा से दूरी बनाकर अपनी विफलताओं पर आवरण डालने के प्रयास में महज चौबे से छब्बे बनने की कोषिष में अपने को दुबे बनाकर संतोष किया है। अब करोड़ो रूपयों का चारा चर जाने के आरोप में सत्ता की राजनीति से भी उनका पलायन लगभग तय लग रहा है। इसी तरह नरेन्द्र मोदी को लेकर वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की अप्रसन्नता को तूल देना बेमानी है। भारतीय राजनीति में यह अकेली घटना नहीं है। कांग्रेस में भी जब नेता सुभाषचन्द्र बोस अध्यक्ष चुन लिये गये तब महात्मा गांधी उन्हें पचा नहीं पाये थे। अंतर इतना आया है कि तब कांग्रेस ने सुभाष बाबू को उनके हक से लगभग वंचित कर दिया था लेकिन लालकृष्ण आडवाणी और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और कैडर बेस संगठन ने नरेन्द्र मोदी को गले लगाकर आषीर्वाद दिया। सब मिलजुल कर उन्हें लालकिले की प्राचीर पर देखना चाहते है। देष का आम आदमी आज रोजमर्रा की जिन समस्याओं से दो-चार हो रहा है उसे नरेन्द्र मोदी में एकमात्र आषा की किरण दिखाई देती है। इस भावना ने मोदी की लोकप्रियता में चार-चांद लगा दिये है। कांग्रेस के साथ सहानुभूति रखने वाले दल और संचार माध्यम जो कभी हेट मोदी अभियान में दिलचस्पी ले रहे थे। चीन और पाकिस्तान भी भारत विरोध उकसाऊ कायर्वाहियों और कांग्रेस अध्यक्ष तथा प्रधानमंत्री की आपराधिक उदासीनता देखकर सभी मोदी की बढ़ती लोकप्रियता के गीत गाने लगे है। अब उन्हें मोदी चुनौती नहीं समाधान के रूप में दिखाई दे रहे है।
नरेन्द्र मोदी का देष की राजनीति के केन्द्र में आना तथाकथित धर्मनिरपेक्ष बताये जाने वाले दलों के लिए एक सियासी तूफान दिखाई दे रहा है। इसलिए वे उसे अपने-अपने ढंग से परिभाषित करने आत्मतुष्टि का मजा ले रहे है। कोई मोदी के यह कहे जाने पर कि वे हिन्दु राष्ट्रवादी है सिर पर आसमान उठा रहे है, ंतो दूसरे दिलजले मोदी के इस कथन को हिन्दुत्व का ट्रम्प-कार्ड बता रहे है। मोदी ने कहा कि वे हिन्दु के रूप में जन्मे है। राष्ट्रवादी और देष भक्त है। भारतीय होना ही सबसे बड़ा देषभक्त होना है। लेकिन धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़कर सियासत करने वाले घृणा की राजनीति में जुट गये है।
भारतीय जनता पार्टी सार्वजनिक रूप से कहती है कि न्याय सबके लिए तुष्टिकरण किसी का नही। इससे स्पष्ट धर्म निरपेक्षता क्या हो सकती है। लेकिन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह योजना आयोग की बैठक में बहुत बड़े धर्म निरपेक्ष बनते हुए कहते है कि देष के खजाने पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है। केन्द्र के गृहमंत्री सुषील कुमार षिन्दे मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर कहते है कि अल्पसंख्यकों के विरूद्ध आतंकवाद के प्रकरणों की समीक्षा की जाये और बेगुनाह अल्पसंख्यक वेजा परेषानी का षिकार न हों। गोया शेष के साथ यह रियायत न हो ंतो भी चलेगा। यह सरासर वोट की तिजारत है। अलगाववाद की भावना परवान चढ़ाने का यह कांग्रेसी प्रयास है। कांग्रेस के सियासी रंग विचित्र है। कभी कहती है कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ आतंकवादी प्रषिक्षण देता है, बम बनाता है। कांग्रेस यह भूल जाती है कि यदि हिन्दु आतंकवाद की भावना इस देष में रही होती ंतो न ंतो धर्मनिरपेक्षता होती और न कष्मीर से कष्मीरी पंडित ऐसी आतंकवादी निर्ममता का षिकार बन पाते। भगवा आतंकवाद कहकर अल्पसंख्यकों में खौंफ बनाये रखना है जिससे हिन्दुत्व को कोसा जा सके। अब धर्मनिरपेक्षता के प्रवक्ताओं का शगल बन गया है जिससे मोदी को मौत का सौदागर बताने का औचित्य बताया जा सके। भले ही इससे शत्रु देष भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर घसीटता रहे। देष की एकता को जितनी हानि तथाकथित धर्म निरपेक्षता के अलंबरदारों ने पहुंचायी है उसकी कल्पना करना कठिन है। इससे अधिक बिडंवना क्या होगी कि धर्म निरपेक्षता की आड़ में इसरत जहां का मुकदमा इतना खींचा जा रहा है कि देष की दो शीर्ष जांच एजेंसियों में टकराव पैदा हो चुका है। जिन जांच एजेंसियों का काम देष के शत्रुओं की मुखबिरी करना है वे कांग्रेस के राजनैतिक प्रतिद्वंदियों के पीछे लगा दी गयी है। सुरक्षा विषेषज्ञों में इस बात को लेकर चिंता व्याप्त है। गृह मंत्रालय की साख मिट्टी में मिलाई जा रही है। देष में आतंकवादी घटनाओं और विस्फोटों में जहां अमेरिकी खुफिया एजेंसी पाकिस्तानी आतंकवादियों की भूमिका प्रमाणित कर चुकी है वही इसके लिए कांग्रेस नेतृत्व की प्रतिबद्धता हिन्दुत्व को बदनाम करने की है। मोदी इसी हिन्दुत्व का प्रतीक बनकर उभरे है और कांग्रेस की आंख का कांटा सिद्ध हो रहे है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कथन कि 2014 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस नहीं सीबीआई लडेग़ी कुछ मायने रखता है। लेकिन इसका एक सुखद पहलु भी है। कांग्रेस मोदी से जितनी भयभीत है और उनके खिलाफ घृणा अभियान चला रही है देष की जनता की रूचि मोदी के प्रति बढ़ती जा रही है। दक्षिणी राज्यों में मोदी को सुनने का जो सिलसिला आरंभ हुआ है वह उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पष्चिम सभी ओर हिन्दुत्व को जानने की उत्सुकता में बदल चुका है। संचार माध्यमों, सभाओं और सेमीनारों में यह स्पष्ट रूप में दिखाई दे रहा है। इससे देष में हिन्दुत्व के प्रति जन-जागरूकता का बढ़ना निष्चित है। इसका परोक्ष में यही नतीजा निकलना तय है कि हिन्दु कहने में जो परहेज रहा है उससे मुक्ति मिलेगी। अभिशाप समझे जाने वाले हिन्दु शब्द में आम आदमी गौरव महसूस करेगा।
नरेन्द्र मोदी को लेकर कांग्रेस और धर्म निरपेक्षतावादी दलों के पास 2002 के दंगों की पूंजी है जिसे वे वक्त वे वक्त भुनाते रहना चाहते है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के शासन के पूर्व गुजरात में कांग्रेस की जो भी सरकारें रही है क्या कांग्रेस अपने शासन को दंगा मुक्त शासन सिद्ध कर सकी है। फिर 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के इस कथन पर कि बड़ा पेड़ गिरता है ंतो भूमि में कंपन होता है। दंगे हुए, पांच हजार सिक्खों का कत्ले-आम सिर्फ दिल्ली में किया गया। दिल्ली में सैना बुलाने से गुरेज किया गया। इस हकीकत से कांग्रेस आंखे क्या मूंद रही है। मजहब की राजनीति करके कांग्रेस ने देष के सर्वधर्म समभाव में असंतुलन पैदा करके हमेषा वोटों की खेती की है। नरेन्द्र मोदी ंतो भारतीय होने का पैगाम दे रहे है। कांग्रेस मोदी के बहाने हिन्दुत्व को कोसना बंद करे ंतो यह कांग्रेस की बड़ी देष सेवा होगी। मोदी का भारतीय राजनैतिक क्षितिज पर आना अब एक घटना बन चुका है। गुजरात की माटी में पैदा हुए महात्मा गांधी ने जहां आजादी की अलख जगायी, वहीं वल्लभ भाई पटेल ने पौरूष को जगाकर भारत को एक सूत्र में गुंफित कर दिखाया। उसी उर्वर धरती की पैदाईष नरेन्द्र मोदी से समय और कौम को उम्मीदे है। देखना है कि जनता जिन्हें सिर-माथे बिठा रही है लेकिन वे अवसर की चुनौती से कैसे निपटते है। मोदी की परीक्षा है। देष की जनता इस अवसर को कैसे अनुकूलता प्रदान करती है। विजय का मोती प्रतिबद्धता की आवो-हवा और सहमति की सीपी में पलता है।
नरेन्द्र मोदी जहां भारतीय जनता पार्टी के लिए सीमेन्टिंग फोर्स बनकर उभरे है और उनकी स्वीकायर्ता युवा वर्ग, मध्यम वर्ग में लगातार बढ़ रही है कांग्रेस की मजबूरी अब गुजरात के विकास मॉडल को संदेह के घेरे में लाना बन चुकी है। लेकिन यदि गुजरात को पिछड़ा राज्य बताकर कांग्रेसी आत्मसंतोष का अनुभव करते है ंतो कांग्रेस अपनी जबावदेही से कैसे मुक्त होगी। क्योंकि नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के शासन के गुजरात में प्रादुर्भाव के पहले ंतो गुजरात की नियति कांग्रेस के अधीन ही थी। जब बंबई राज्य से गुजरात अलग हुआ ंतो सल्तनत कांग्रेस के हाथ आयी थी, बाद में जो सरकार आयी वह भी कांग्रेस समर्थित थी। 1960 के बाद कांग्रेस अमूमन गुजरात की 12 हजार दिनों से अधिक भाग्य-विधाता रही है, जबकि भारतीय जनता पार्टी अक्टूबर 2013 तक साढ़े चार हजार दिन सत्ता में रह चुकी है और देष-विदेष के निवेषकों का गुजरात डेस्टीनेषन बन चुका है। नरेन्द्र मोदी को लेकर एनडीए के बिखरने की आषंका को लेकर भारतीय जनता पार्टी में चिंता होने के बजाय आत्मविष्वास का संचार हुआ है और लोकसभा चुनाव में कूदने वाले क्षेत्रीय खिलाड़ी भी भारतीय जनता पार्टी के प्रति नयी आषाओं के साथ निहार रहे है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिष कुमार ने भाजपा से दूरी बनाकर अपनी विफलताओं पर आवरण डालने के प्रयास में महज चौबे से छब्बे बनने की कोषिष में अपने को दुबे बनाकर संतोष किया है। अब करोड़ो रूपयों का चारा चर जाने के आरोप में सत्ता की राजनीति से भी उनका पलायन लगभग तय लग रहा है। इसी तरह नरेन्द्र मोदी को लेकर वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की अप्रसन्नता को तूल देना बेमानी है। भारतीय राजनीति में यह अकेली घटना नहीं है। कांग्रेस में भी जब नेता सुभाषचन्द्र बोस अध्यक्ष चुन लिये गये तब महात्मा गांधी उन्हें पचा नहीं पाये थे। अंतर इतना आया है कि तब कांग्रेस ने सुभाष बाबू को उनके हक से लगभग वंचित कर दिया था लेकिन लालकृष्ण आडवाणी और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और कैडर बेस संगठन ने नरेन्द्र मोदी को गले लगाकर आषीर्वाद दिया। सब मिलजुल कर उन्हें लालकिले की प्राचीर पर देखना चाहते है। देष का आम आदमी आज रोजमर्रा की जिन समस्याओं से दो-चार हो रहा है उसे नरेन्द्र मोदी में एकमात्र आषा की किरण दिखाई देती है। इस भावना ने मोदी की लोकप्रियता में चार-चांद लगा दिये है। कांग्रेस के साथ सहानुभूति रखने वाले दल और संचार माध्यम जो कभी हेट मोदी अभियान में दिलचस्पी ले रहे थे। चीन और पाकिस्तान भी भारत विरोध उकसाऊ कायर्वाहियों और कांग्रेस अध्यक्ष तथा प्रधानमंत्री की आपराधिक उदासीनता देखकर सभी मोदी की बढ़ती लोकप्रियता के गीत गाने लगे है। अब उन्हें मोदी चुनौती नहीं समाधान के रूप में दिखाई दे रहे है।
नरेन्द्र मोदी का देष की राजनीति के केन्द्र में आना तथाकथित धर्मनिरपेक्ष बताये जाने वाले दलों के लिए एक सियासी तूफान दिखाई दे रहा है। इसलिए वे उसे अपने-अपने ढंग से परिभाषित करने आत्मतुष्टि का मजा ले रहे है। कोई मोदी के यह कहे जाने पर कि वे हिन्दु राष्ट्रवादी है सिर पर आसमान उठा रहे है, ंतो दूसरे दिलजले मोदी के इस कथन को हिन्दुत्व का ट्रम्प-कार्ड बता रहे है। मोदी ने कहा कि वे हिन्दु के रूप में जन्मे है। राष्ट्रवादी और देष भक्त है। भारतीय होना ही सबसे बड़ा देषभक्त होना है। लेकिन धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़कर सियासत करने वाले घृणा की राजनीति में जुट गये है।
भारतीय जनता पार्टी सार्वजनिक रूप से कहती है कि न्याय सबके लिए तुष्टिकरण किसी का नही। इससे स्पष्ट धर्म निरपेक्षता क्या हो सकती है। लेकिन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह योजना आयोग की बैठक में बहुत बड़े धर्म निरपेक्ष बनते हुए कहते है कि देष के खजाने पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है। केन्द्र के गृहमंत्री सुषील कुमार षिन्दे मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर कहते है कि अल्पसंख्यकों के विरूद्ध आतंकवाद के प्रकरणों की समीक्षा की जाये और बेगुनाह अल्पसंख्यक वेजा परेषानी का षिकार न हों। गोया शेष के साथ यह रियायत न हो ंतो भी चलेगा। यह सरासर वोट की तिजारत है। अलगाववाद की भावना परवान चढ़ाने का यह कांग्रेसी प्रयास है। कांग्रेस के सियासी रंग विचित्र है। कभी कहती है कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ आतंकवादी प्रषिक्षण देता है, बम बनाता है। कांग्रेस यह भूल जाती है कि यदि हिन्दु आतंकवाद की भावना इस देष में रही होती ंतो न ंतो धर्मनिरपेक्षता होती और न कष्मीर से कष्मीरी पंडित ऐसी आतंकवादी निर्ममता का षिकार बन पाते। भगवा आतंकवाद कहकर अल्पसंख्यकों में खौंफ बनाये रखना है जिससे हिन्दुत्व को कोसा जा सके। अब धर्मनिरपेक्षता के प्रवक्ताओं का शगल बन गया है जिससे मोदी को मौत का सौदागर बताने का औचित्य बताया जा सके। भले ही इससे शत्रु देष भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर घसीटता रहे। देष की एकता को जितनी हानि तथाकथित धर्म निरपेक्षता के अलंबरदारों ने पहुंचायी है उसकी कल्पना करना कठिन है। इससे अधिक बिडंवना क्या होगी कि धर्म निरपेक्षता की आड़ में इसरत जहां का मुकदमा इतना खींचा जा रहा है कि देष की दो शीर्ष जांच एजेंसियों में टकराव पैदा हो चुका है। जिन जांच एजेंसियों का काम देष के शत्रुओं की मुखबिरी करना है वे कांग्रेस के राजनैतिक प्रतिद्वंदियों के पीछे लगा दी गयी है। सुरक्षा विषेषज्ञों में इस बात को लेकर चिंता व्याप्त है। गृह मंत्रालय की साख मिट्टी में मिलाई जा रही है। देष में आतंकवादी घटनाओं और विस्फोटों में जहां अमेरिकी खुफिया एजेंसी पाकिस्तानी आतंकवादियों की भूमिका प्रमाणित कर चुकी है वही इसके लिए कांग्रेस नेतृत्व की प्रतिबद्धता हिन्दुत्व को बदनाम करने की है। मोदी इसी हिन्दुत्व का प्रतीक बनकर उभरे है और कांग्रेस की आंख का कांटा सिद्ध हो रहे है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कथन कि 2014 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस नहीं सीबीआई लडेग़ी कुछ मायने रखता है। लेकिन इसका एक सुखद पहलु भी है। कांग्रेस मोदी से जितनी भयभीत है और उनके खिलाफ घृणा अभियान चला रही है देष की जनता की रूचि मोदी के प्रति बढ़ती जा रही है। दक्षिणी राज्यों में मोदी को सुनने का जो सिलसिला आरंभ हुआ है वह उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पष्चिम सभी ओर हिन्दुत्व को जानने की उत्सुकता में बदल चुका है। संचार माध्यमों, सभाओं और सेमीनारों में यह स्पष्ट रूप में दिखाई दे रहा है। इससे देष में हिन्दुत्व के प्रति जन-जागरूकता का बढ़ना निष्चित है। इसका परोक्ष में यही नतीजा निकलना तय है कि हिन्दु कहने में जो परहेज रहा है उससे मुक्ति मिलेगी। अभिशाप समझे जाने वाले हिन्दु शब्द में आम आदमी गौरव महसूस करेगा।
नरेन्द्र मोदी को लेकर कांग्रेस और धर्म निरपेक्षतावादी दलों के पास 2002 के दंगों की पूंजी है जिसे वे वक्त वे वक्त भुनाते रहना चाहते है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के शासन के पूर्व गुजरात में कांग्रेस की जो भी सरकारें रही है क्या कांग्रेस अपने शासन को दंगा मुक्त शासन सिद्ध कर सकी है। फिर 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के इस कथन पर कि बड़ा पेड़ गिरता है ंतो भूमि में कंपन होता है। दंगे हुए, पांच हजार सिक्खों का कत्ले-आम सिर्फ दिल्ली में किया गया। दिल्ली में सैना बुलाने से गुरेज किया गया। इस हकीकत से कांग्रेस आंखे क्या मूंद रही है। मजहब की राजनीति करके कांग्रेस ने देष के सर्वधर्म समभाव में असंतुलन पैदा करके हमेषा वोटों की खेती की है। नरेन्द्र मोदी ंतो भारतीय होने का पैगाम दे रहे है। कांग्रेस मोदी के बहाने हिन्दुत्व को कोसना बंद करे ंतो यह कांग्रेस की बड़ी देष सेवा होगी। मोदी का भारतीय राजनैतिक क्षितिज पर आना अब एक घटना बन चुका है। गुजरात की माटी में पैदा हुए महात्मा गांधी ने जहां आजादी की अलख जगायी, वहीं वल्लभ भाई पटेल ने पौरूष को जगाकर भारत को एक सूत्र में गुंफित कर दिखाया। उसी उर्वर धरती की पैदाईष नरेन्द्र मोदी से समय और कौम को उम्मीदे है। देखना है कि जनता जिन्हें सिर-माथे बिठा रही है लेकिन वे अवसर की चुनौती से कैसे निपटते है। मोदी की परीक्षा है। देष की जनता इस अवसर को कैसे अनुकूलता प्रदान करती है। विजय का मोती प्रतिबद्धता की आवो-हवा और सहमति की सीपी में पलता है।
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