मंगलवार, 19 मार्च 2013

पुलिस के पहरे में यतीमखाना वक्फबोर्ड ने औकाफे आम्मा का प्रभार लेने के दिए निर्देश

यतीमखाना संचालित करने वाली सोसायटी ने जताया विरोध
संवाददाता, भोपाल
मालिकाना हक को लेकर ताजुल मसाजिद के बगल में संचालित यमीमखाना को संचालित करने वाली सोसायटी और वक्फ बोर्ड आमने-सामने आ गए हैं। बोर्ड के निर्देश के बाद यतीमखाना का प्रभार लेने गए औकाफे आम्मा के कार्यपालन अधिकारी को सोसायटी के पदाधिकारियों ने बैरंग लौटा दिया। दूसरी ओर, इस सब के दौरान हालात बिगडऩे की आशंका के मद्देनजर यतीमखाना के बाहर पुलिस ने मोर्चा संभालना पड़ा।
दरअसल, यतीमखाना के मालिकाना हक को लेकर संचालित करने वाली दारुल शफकत सोसायटी और मप्र वक्फ बोर्ड के बीच सालों से कानूनी लड़ाई चली आ रही है। हाईकोर्ट में संचालन अधिकार को लेकर विचाराधीन याचिका के बीते साल अक्टूबर में निपटारे के बाद बोर्ड के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) सैफुद्दीन सैयद ने सोमवार को औकाफे आम्मा के कार्यपालन अधिकारी (ईओ) हाशमी को निर्देश दिए कि, यतीमखाना का चार्ज ले लें। इसकी भनक लगते ही सोसायटी ने कलेक्टर और एसएसपी को पूरे मामले से अवगत कराते हुए झगड़े का अंदेशा जताया। इस पर सुबह से ही पुलिस ने यतीमखाना के बाहर मोर्चाबंदी कर दी। दोपहर करीब 12:30 बजे औकाफे आम्मा के ईओ हाशमी पहुंचे, लेकिन सोसायटी के सदर शाहिद अलीम, नायब सदर आरिफ हसन सहित सोसायटी के सभी 19 मेंबरों ने विरोध जताया। करीब घंटेभर की जद्दोजहद के बाद बिना चार्ज लिए ही ईओ को बैरंग लौटना पड़ा।
सालों से चला आ रहा है झगड़ा
वक्फ बोर्ड ने एक सोसायटी बनाकर यतीमखाना का संचालन संभालने की कोशिश की थी। इसके विरोध में दारुल शफकत सोसायटी ने 2007 में हाईकोर्ट में याचिका पेश करके बोर्ड को दखलदांजी से रोकने की गुहार लगाई थी, जिस पर कोर्ट ने स्टे जारी कर दिया था। वर्ष 2012 में बोर्ड ने कोर्ट के सामने यह तथ्य पेश किया कि, बोर्ड द्वारा यतीमखाना के संचालन के लिए बनाई गई कमेटी के तीन साल पूरे हो जाने और यतीमखाना का संचालन नहीं मिलने से अवधिबाहृय हो गई है। ऐसे में बोर्ड अब कोई कार्रवाई वक्फ एक्ट के तहत नहीं करेगा। इस पर कोर्ट ने याचिका को अक्टूबर,2012 में समाप्त करते हुए दोनों पक्षों को विवाद की स्थिति में फिर से फ्रेश एप्लीकेशन पेश करने पर नए सिरे से सुनवाई करने का आदेश दिया। इसी आदेश को दोनों पक्ष अपने-अपने हक में बता रहे हैं।
यतीमों से ज्यादा जमीन का चक्कर
सूत्रों की माने तो सारा झगड़ा करोड़ों की जमीन को लेकर है। इसके लिए एक लॉबी लंबे समय से सक्रिय है। यतीमखाना वाली बिल्डिंग का निर्माण नवाब शाहजहां बेगम ने करवाया था। इसमें यतीमखाना संचालित करने वाली सोसायटी का पंजीयन 1957 में कंट्रोलर ऑफ चैरिटेबल ट्रस्ट ने किया था। चंदा और गुप्त मदद से सोसायटी यतीमखाना का संचानल करती आ रही है, जिसमें अभी 70 बच्चे और बच्चियां हैं। दूसरी ओर, वक्फ एक्ट का निर्माण 1961 में हुआ। ऐसे में सोसायटी का दो टूक कहना है कि, पहले से रजिस्टर्ड सोसायटी को बाद में बने वक्फ एक्ट के तहत कैसे माना जा सकता है।

कथन
हाईकोर्ट में बोर्ड के खिलाफ मुकद्मा सोसायटी लड़ रही थी, जिसमें कोर्ट ने बोर्ड को कमेटी बनाकर यतीमखाना संचालन के लिए कहा है। ऐसे में नई कमेटी बनने तक औकाफे आम्मा के ईओ चार्ज लेने के निर्देश दिए गए हैं।
सैफुद्दीन सैयद, सीईओ, मप्र वक्फ बोर्ड
कोर्ट के फैसले को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। कोर्ट ने सोसायटी के दावे को सही और बोर्ड द्वारा दखलदांजी नहीं करने की अंडरटेकिंग देने के बाद ही पिटीशन का निपटारा किया। वैसे भी वक्फ एक्ट से पहले की सोसायटी है।
शाहिद अलीम, सदर, यतीमखाना सोसायटी

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