रविवार, 2 जून 2013

श्रीराम की हुई जनक दुलारी

 -१५ हजार श्रद्धालु शामिल हुए राम बारात में, कुठार से खेजड़ा देव तक दिखा मनोरम दृश्य 
भोपाल। 
काशी के ज्योतिषाचार्य पं. प्रमोद शुक्ल आचार्यत्व में 11 विद्वान पंडितों ने जैसे ही प्रभू श्रीराम और जनक दुलारी के फोरों का मंत्रोच्चार किया। यहां उपस्थित जन समूह भाव विभोर हो उठा। फेरे पूरे होते ही जय श्रीराम राम के जयकारे गूंजे। 
इससे पहले १५ हजार से अधिक कुठार वासी तथा पास के ग्रामीण खेजड़ा देव प्रभू श्रीराम की बारात आकर्षक झांकी बनाकर लेकर पहुंचे। रथ पर सवार प्रभू श्रीराम, लक्ष्मण और हनुमानजी की विशाल प्रतिमाएं थीं। बारातियों ने कुठार को अवधपुरी और खेजड़ा देव को जनकपुरी नाम दिया था। इन दोनों गांवों की दूरी करीब नौ है, इस दूरी को बारातियों ने भजन-कीर्तन और श्रीराम के जयकारों के साथ पूरा किया। बारात में राजा दशरथ के प्रतीक प्रेमनारायण मीना और राजा जनक के प्रतीक बटनलाल मारण ने वैदिक पद्धति से राम-जानकी के सात फेरे करा विवाह संपन्न कराया। बीते सात दिनों से ग्राम कुठार में नवनिर्मित श्रीराम जानकी मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह चल रहा था। यहीं पं. जगदीश नारायण स्वामी श्रीमद भागवत कथा कर रहे थे, जिसका अमृत पान हजारों श्रद्धालुओं ने किया। 

-इतिहास बनी शोभायात्रा 
दोनों गांवों के बीच निकली प्रभू श्रीराम की शोभायात्रा इतिहास बन गई। जिसने ने भी बारात को देखा, वह बारात खुद की उपस्थिति दर्ज कराने उत्साहित दिखा। बताया जाता है कि इस पूरे क्षेत्र में यह पहला मौका है, जब भगवान की बारात इतनी श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ निकाली गई और इसमें इतने श्रद्धालु बारातियों के रूप में सम्मिलित हुए। बारात में दो हजार से अधिक दो पहिया वाहन, 500 से अधिक चार पहिया और करीब साठ से अधिक ट्रैक्टर-ट्राली में बाराती चल रहे थे। इसी प्रकार कुठार (अवधपुरी) में महिलाओं ने रामजी के विवाह के बन्ना गीत गाए। बारात के स्वागत के लिए खेजड़ा देव को जनकपुरी के रूप में भव्य तरीके से सजाया गया था। प्रेमपुरा स्थित संकट मोचन हनुमान मंदिर परिसर को विवाह स्थल के रूप में बहुत उम्मदा सजाया गया था। उल्लेखनीय है दोनों की गांव में मीना समाज का बाहुल्य है। यहां उसी ठेठ अंदाज में राम धुनी लगी। 

 उतारी आरती, किया स्वागत 
प्रभू श्रीराम की बारात अपने निज स्थान से चली ही थी कि द्वारे से निलते ही पुष्प वर्षा से उनका और बारातियों का स्वागत किया गया। इसके बाद क्या था, कुछ कदम और हर गांव के प्रमुख चौक-चौराहे पर हार मालाओं से प्रभु व बारातियों का स्वागत होता। वहीं जलजीरा तथा ठंडे पेय पदार्थ बारातियों को पिलाए जाते। शाहपुर जोड़ पर पूर्व सरपंच रामजीवन मीना के नेतृत्व में बारातियों को दूध और सूखे मेवे मिश्रित पंजाबी शरबत पिलाई गई। इसी के बाद द्वारका प्रसाद मीना के नेतृत्व में मनीखेड़ी के ग्रामीणों ने बारातियों को फल और जलजीरा पिलाया। वहीं श्रीराम, लक्षमण और हनुमानजी की आरती उतारी गई। 
...और हुई गोदभराई 
अमूमन कन्या पक्ष वर को टीका फलदान के रूप में लग्न पत्रिका के साथ और वर पक्ष वधु को गोद भराई में कुछ उपहार या नगद राशि देता है। खेजड़ा देव में मां सीता की गोद भराई का अलग नजारा दिखा। यहां दो घंटे चली इस रस्म के दौरान श्रद्धालुओं ने मिलकर करीब एक लाख 60 हजार रुपए व चांदी-सोने के जेवर भेंट किए। हर कोई मां सीता की बलाएं ले रहा था।  
 इन्होंने की प्राण-प्रतिष्ठा 
विवाह के बाद प्रभू श्रीराम मां जानकी को लेकर लक्ष्मण और हनुमानजी के साथ यथा स्थान पहुंचे। यहां वैदिक मंत्रोच्चार के साथ प्राण-प्रतिष्ठा की गई। यह प्राण-प्रतिष्ठाा ब्रह्माचार्य पं. कृष्णकांत तिवारी और उनके सहयोगी पं. नीरज कुमार मिश्र, पं. राधे महाराज, पं. चंद्रशे ार तिवारी चैतन्यजी, पं. देवेंद्र गौतम, पं. भगवतीप्रसाद शर्मा, पं. रजनीश शर्मा, पं. राघवेंद्र पांडेय, पं. नर्मदेश्वर शर्मा दुबे, पं. लोकेश शुक्ल, पं. नरेश शर्मा द्वारा मंदिर के पुजारी पं. दीपक तिवारी, स्थानीय संतश्री किशोरदास त्यागी ने की7 

वहीं ग्राम पटेल ठाकुरप्रसाद मीना और यज्ञ के प्रमुख यजमान सरपंच कमलाबाई-विजयसिंह मीना, राजा दशरथ के पात्र प्रेमनारायण मीना सहित यजमान विश्रामसिंह, हरीराम मीना, दौलत पटेल, कन्हैयालाल मारण, ाोजराज मीना, हेमराज, ज्ञानसिंह, तुलसीराम, हटेसिंह मीना, फूलसिंह दुकानदार, काशीराम, सुरेंद्र सिंह, ौरोंसिंह, सवाईसिंह, ल ान मीना, नारायणसिंह, रामफूल, नथमल पटेल, रमेश पंडाजी, अजबसिंह पंडाजी, विमल मीना, मुकेश मीना और अचरजसिंह मीना सहित मर्दनसिंह मीना, हरभजन मीना अग्निहोत्री आदि हजारों लोगों ने प्रभू के दर्शन लाभ लिए। 

की प्रसादी ग्रहण 
कुठार में चले इस गरीमामय कार्यक्रम का आनंद हर ग्राम वासी ने लिया। श्रीमद भागवत कथा ज्ञानयज्ञ का भी प्राण-प्रतिष्ठा एवं पूर्णाहुति यज्ञ के साथ समापन हुआ। पं. जगदीश नारायण स्वामी द्वारा भागवत के अंतिम चरण में राजा परीक्षित को मोक्ष प्राप्ति की कथा का विस्तार से वर्णन करते हुए लोगों को सत्कर्म की शिक्षा दी। इसके बाद विशाला भंडारा हुआ, जिसमें ११ हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने प्रसादी ग्रहण की। यहां महौल देखते ही बन रहा था। 

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