-केंद्र ने रोका 381 करोड़ का प्राक्कलन, एक की भी स्वीकृति नहीं
-तथ्यों से परे और भ्रामक है राज्य सरकार पर आरोप
प्रशासनिक संवाददाता, भोपाल
राज्य शासन ने प्रदेश में स्थित राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में विल ब में राज्य का हाथ होने की बात को तथ्यों से परे और भ्रामक बताया है। इस संबंध में लोक निर्माण विभाग से प्राप्त वस्तुस्थिति के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्ग के लिये भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम के अंतर्गत की जाती है। यह कार्रवाई भारत सरकार के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय व्दारा उक्त अधिनियम में ही की जानी होती है। यह बात नेशनल हाइवे अथारिटी ऑफ इंडिया व्दारा किये जा रहे बीओटी परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण संदर्भ में भी लागू होती है। राज्य शासन व्दारा इस संबंध में जो भी सहायता अपेक्षित होती है, वह त्वरित रूप से दी जाती है। संबंधित परियोजनाएं राज्य सरकार की किसी कमी के चलते विल िबत नहीं हो रही हैं। केंद्र सरकार द्वारा प्लान में कुल 422 करोड़ 50 लाख रुपये की सैद्धांतिक स्वीकृति दी गई है न कि 479 करोड़ रूपये की। नानप्लान में 40 करोड़ रूपये की सैद्धांतिक स्वीकृति वार्षिक संधारण मद में दी गई है। राज्य शासन द्वारा 381 करोड़ रूपये के प्राक्कलन स्वीकृति के लिये केंद्र सरकार को भेजे गये हैं। इन प्राक्कलनों में से एक कार्य की भी प्रशासकीय स्वीकृति आज तक केंद्र सरकार द्वारा नहीं दी गई है।
केंद्र की व्यवस्था विसंगतिपूर्ण:
सरकार के अनुसार केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय राजमार्गों के लिये सैद्धांतिक स्वीकृति के बाद केन्द्र को प्रशासकीय स्वीकृति के लिये भेजे के बाद निविदाएं आमंत्रित की जाती हैं। यदि निविदा में न्यूनतम प्राप्त निविदा दर, दर सूची से 5 प्रतिशत से अधिक होती है तो पुन: प्राक्कलन को पुनरीक्षित प्रशासकीय स्वीकृति के लिए केन्द्र सरकार को भेजना होता है। अनेक अवसर पर इस प्रकार की पुनरीक्षित स्वीकृति प्राप्त होने तक निविदा की वैधता अवधि समाप्त हो जाती है, जिससे न केवल इन कार्यों पर पुन: निविदा बुलाने पर अधिक दरें प्राप्त होती हैं, बल्कि कार्य में अत्यधिक विल ब भी होता है। इन तथ्यों से यह स्पष्ट है कि कार्यों को स्वीकृत करने की जो व्यवस्था केंद्र सरकार में लागू है, वह अपने आप में विसंगतिपूर्ण है।
अगले वर्ष होगा कार्य:
इस वर्ष दी गई सैद्धांतिक स्वीकृति पर अगले वर्ष ही कार्य हो पायेगा, क्योंकि अधिकांश राष्ट्रीय राजमार्ग, नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इण्डिया के पास है तथा इनमें से कुछ मार्ग कुछ समय पूर्व ही राज्य शासन को सौंपे गये हैं। इसलिये इन कार्यों में पूर्व से उपलब्ध प्रशासकीय स्वीकृति लगभग नगण्य है।
जहां तक 46 करोड़ 71 लाख रूपये खर्च करने का सवाल है, वह पिछले वर्ष की स्वीकृति के विरूद्ध है। इस वर्ष जो सैद्धांतिक स्वीकृति 479 करोड़ रूपये की बतलाई गयी है, उसके विरूद्ध एक रूपये की स्वीकृति भी केंद्र शासन से प्राप्त नहीं हुई है।
-तथ्यों से परे और भ्रामक है राज्य सरकार पर आरोप
प्रशासनिक संवाददाता, भोपाल
राज्य शासन ने प्रदेश में स्थित राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में विल ब में राज्य का हाथ होने की बात को तथ्यों से परे और भ्रामक बताया है। इस संबंध में लोक निर्माण विभाग से प्राप्त वस्तुस्थिति के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्ग के लिये भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम के अंतर्गत की जाती है। यह कार्रवाई भारत सरकार के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय व्दारा उक्त अधिनियम में ही की जानी होती है। यह बात नेशनल हाइवे अथारिटी ऑफ इंडिया व्दारा किये जा रहे बीओटी परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण संदर्भ में भी लागू होती है। राज्य शासन व्दारा इस संबंध में जो भी सहायता अपेक्षित होती है, वह त्वरित रूप से दी जाती है। संबंधित परियोजनाएं राज्य सरकार की किसी कमी के चलते विल िबत नहीं हो रही हैं। केंद्र सरकार द्वारा प्लान में कुल 422 करोड़ 50 लाख रुपये की सैद्धांतिक स्वीकृति दी गई है न कि 479 करोड़ रूपये की। नानप्लान में 40 करोड़ रूपये की सैद्धांतिक स्वीकृति वार्षिक संधारण मद में दी गई है। राज्य शासन द्वारा 381 करोड़ रूपये के प्राक्कलन स्वीकृति के लिये केंद्र सरकार को भेजे गये हैं। इन प्राक्कलनों में से एक कार्य की भी प्रशासकीय स्वीकृति आज तक केंद्र सरकार द्वारा नहीं दी गई है।
केंद्र की व्यवस्था विसंगतिपूर्ण:
सरकार के अनुसार केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय राजमार्गों के लिये सैद्धांतिक स्वीकृति के बाद केन्द्र को प्रशासकीय स्वीकृति के लिये भेजे के बाद निविदाएं आमंत्रित की जाती हैं। यदि निविदा में न्यूनतम प्राप्त निविदा दर, दर सूची से 5 प्रतिशत से अधिक होती है तो पुन: प्राक्कलन को पुनरीक्षित प्रशासकीय स्वीकृति के लिए केन्द्र सरकार को भेजना होता है। अनेक अवसर पर इस प्रकार की पुनरीक्षित स्वीकृति प्राप्त होने तक निविदा की वैधता अवधि समाप्त हो जाती है, जिससे न केवल इन कार्यों पर पुन: निविदा बुलाने पर अधिक दरें प्राप्त होती हैं, बल्कि कार्य में अत्यधिक विल ब भी होता है। इन तथ्यों से यह स्पष्ट है कि कार्यों को स्वीकृत करने की जो व्यवस्था केंद्र सरकार में लागू है, वह अपने आप में विसंगतिपूर्ण है।
अगले वर्ष होगा कार्य:
इस वर्ष दी गई सैद्धांतिक स्वीकृति पर अगले वर्ष ही कार्य हो पायेगा, क्योंकि अधिकांश राष्ट्रीय राजमार्ग, नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इण्डिया के पास है तथा इनमें से कुछ मार्ग कुछ समय पूर्व ही राज्य शासन को सौंपे गये हैं। इसलिये इन कार्यों में पूर्व से उपलब्ध प्रशासकीय स्वीकृति लगभग नगण्य है।
जहां तक 46 करोड़ 71 लाख रूपये खर्च करने का सवाल है, वह पिछले वर्ष की स्वीकृति के विरूद्ध है। इस वर्ष जो सैद्धांतिक स्वीकृति 479 करोड़ रूपये की बतलाई गयी है, उसके विरूद्ध एक रूपये की स्वीकृति भी केंद्र शासन से प्राप्त नहीं हुई है।
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