मंगलवार, 23 जुलाई 2013

महिला एवं बाल विकास के आंकड़े नहीं हैं विश्वसनीय: भूरिया , भोपाल

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने कहा है कि प्रदेश में महिलाओं और बच्चों के विकास के संबंध में राज्य सरकार द्वारा दावे तो बड़े-बड़े किये जा रहे हैं और ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है जैसे महिला और बाल विकास विभाग ने इन दोनों वर्गों की भलाई के लिए बहुत काम किया है। लेकिन जब आसमानी सुल्तानी सरकारी पब्लिसिटी की तह में जाकर जमीनी हकीकत से रूबरू होते हैं तो सरकारी दावों से उलट स्थिति उभरकर सामने आती है। भाजपा सरकार ने दावा किया है कि महिला एवं बाल विकास के सालाना बजट की 99 प्रतिशत धनराशि खर्च हुई है। सालाना खर्च के ये आंकड़े विश्वसनीय नहीं हैं, क्योंकि महिला बाल विकास की जिन योजनाओं पर यह खर्च होना बताया जा रहा है, जमीनी स्तर पर उन योजनाओं के अमल की स्थिति बदतर है। कहीं-कहीं तो विभागीय मैदानी अमले को विभागीय योजनाओं की पूरी जानकारी तक नहीं है। ऐसी दशा में भारी खर्च का दावा बेमानी है। सबूत के तौर पर मध्यान्ह भोजन योजना को लिया जा सकता है। भोजन में छिपकली, मेढ़क और चूहे निकलने के कारण बड़ी सं या में बच्चों ने मध्यान्ह भोजन से तौबा कर ली है और अपने घरों से टिफिन लाने लगे हैं। जब योजनाओं के हितग्राही घट रहे हैं तो बजट पूरा खर्च होने के दावे पर स्वत: सवालिया निशान लग जाता है।
श्री भूरिया ने कहा है कि महिला बाल विकास विभाग की उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने और महिलाओं को गुमराह करने के लिए योजनाओं पर खर्च और भौतिक उपलब्धियों के फर्जी आंकड़े तैयार कराये गए हैं। आपने कहा है कि बजट के उपयोग के आंकड़ों को अतिरंजित रूप में प्रस्तुत करने के लिए विभाग ने बड़ी चालबाजी दिखाई है। विभाग ने राज्य, संभाग, जिला और परियोजना स्तर पर अधिकारियों, कमर्चारियों को जो करोड़ों रूपये अस्थाई अग्रिम के बतौर दिये हैं और जिनके खर्च का हिसाब संबंधित ने प्रस्तुत नहीं किया है, ऐसे करोड़ों के अस्थाई अग्रिमों को भी खर्च की परिधि में ले लिया गया   है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने आरोप के प्रमाण के बतौर रीवा संभाग के आंकड़ों का जिक्र करते हुए कहा है कि अप्रैल 2012 की स्थिति में रीवा संभाग के रीवा, सीधी, सतना तथा सिंगरौली जिलों में महिला बाल विकास अधिकारियों और कमर्चारियों से लगभग 13 करोड़ रूपये के अस्थाई अग्रिम का समायोजन होना लंबित था। संभागायुक्त की कोशिश के बावजूद अप्रैल 2013 तक मात्र दो करोड़ बीस लाख रूपये का ही समायोजन हुआ है। करीब 11 करोड़ रूपये का समायोजन अथवा वसूली अभी भी शेष है। वित्तीय नियमानुसार यह स्थिति वित्तीय घोटाले की श्रेणी में आती है। आपने कहा है कि जब एक संभाग के चार जिलों की यह स्थिति है, तो सभी 50 जिलों की स्थिति क्या होगी, सहज अनुमान लगाया जा सकता है। सवाल यह है कि जब करोड़ों के अस्थाई अग्रिमों का समायोजन नहीं हुआ है तो विभाग पिछले वर्षों में सालाना बजट का 90 से लेकर 99 प्रतिशत तक खर्च किस आधार पर प्रचारित कर रहा है ?
श्री भूरिया ने कहा है कि प्रदेश की भाजपा सरकार अपने चहेते ठेकेदारों को भरपूर फायदा पहुंचाने के लिए झूठ का सहारा ले रही है। आपने महिला एवं बाल विकास विभाग के वर्ष 2004-05 से 2012-13 तक के वार्षिक बजट के खर्च का महालेखा नियंत्रक (कैग) से आडिट कराने की मांग की है। 

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