नरेंद्र दामोदर दास मोदी। बीजेपी की चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष और गुजरात के मुख्यमंत्री। बीजेपी के सबसे कद्दावर और लोकप्रिय नेता के तौर पर तेजी से स्थापित होते जा रहे मोदी ने कभी वे दिन भी देखें हैं, जब उन्हें किसी और के कपड़े धोने पड़ते थे और कई कमरों में झाड़ू लगाना पड़ता था।

साधारण परिवार में जन्में नरेंद्र अपने विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नियमों का पूरी कर्त्वयपरायणता की भावना से पालन किया।
मोदी के आधिकारिक जीवनीकार एमवी कामत ने अपनी किताब ‘नरेंद्र मोदी द आर्किटेक्ट ऑफ मॉडर्न स्टेट’ में मोदी के हवाले से लिखा है, ’1974 में नवनिर्माण आंदोलन के दौरान आरएसएस के अहमदाबाद कार्यालय हेडगेवार भवन में वकील साहब ने मुझे रहने के लिए आमंत्रित किया। वहां वकील साहब करीब 12 से 15 लोगों के साथ रहते थे। मेरा रोजमर्रा का काम प्रचारकों के लिए चाय और नाश्ता बनाने के साथ शुरू होता था। उसके बाद पूरी बिल्डिंग के करीब 8-9 कमरों में झाड़ू लगाता था। मैं अपने और वकील साहब के कपड़े भी धोता था। यह सिलसिला करीब एक साल तक चला। इस दौरान मेरी मुलाकात संघ के कई नेताओं और पदाधिकारियों से हुई।’
वकील साहब ने दिलाई थी शपथ
लक्ष्मणराव ईनामदार को गुजरात में आरएसएस कार्यकर्ता ‘वकील साहब’ कहकर पुकारते थे। गुजरात में आरएसएस की जड़ें मजबूत करने का सबसे ज्यादा श्रेय ईनामदार को जाता है। 1958 में दिवाली के दिन गुजरात राज्य का काम देख रहे लक्ष्मणराव ईनामदार ने वडनगर में कुछ बच्चों को ‘बाल’ स्वयंसेवक के रूप में शपथ दिलाई थी। इनमें से एक बच्चा 8 साल का नरेंद्र दामोदर दास मोदी भी था। नरेंद्र मोदी के सबसे बड़े भाई सोमभाई मोदी के मुताबिक, ‘नरेंद्र हमेशा ही कुछ अलग करना चाहता था। हम लोग स्कूल या घर पर जो कुछ भी करते थे। इसके अतिरिक्त वह कुछ करना चाहता था और संघ की शाखाओं ने नरेंद्र को वह मौका दिया।’
तालाब पार कर बदला था भगवा झंडा
नरेंद्र मोदी के जीवन से जुड़ी एक कहानी पर अक्सर उनके जानने वाले चर्चा करते हैं। हालांकि, यह कितनी सही या गलत है, इसके बारे में कोई पुष्टि नहीं हुई है। कहानी के मुताबिक 12 साल की उम्र में नरेंद्र मोदी ने वडनगर कस्बे में मौजूद तालाब के बीच में स्थित एक मंदिर पर लगे भगवा झंडे को साहसिक तरीके से बदला था। बताया जाता है कि उस तालाब में कई मगरमच्छ थे। मगरमच्छ के डर से जल्दी कोई भी उस तालाब में जाने से कतराता था। इसलिए लंबे समय तक मंदिर पर लगा भगवा झंडा बदला नहीं जा सका और वह पुराना पड़ गया। जब बालक नरेंद्र मोदी को इसकी खबर लगी तो वह बिना मगरमच्छ की परवाह किए तालाब में कूद गया और भगवा झंडा बदलकर ही वापस लौटा।
औसत छात्र थे मोदी
मोदी ने वडनगर के भगवताचार्य नारायणाचार्य हाई स्कूल में पढ़ाई की। इस स्कूल में मोदी के संस्कृत अध्यापक रहे प्रह्लाद पटेल मोदी को याद करते हुए कहते हैं, ‘वह औसत छात्र था। लेकिन बहस और थिएटर में उसकी गहरी दिलचस्पी थी। मैंने स्कूल में डिबेट क्लब बनाया था। मुझे याद आता है कि नरेंद्र उन छात्रों में था जो रोज बहस में हिस्सा लेते था।’ वडनगर में मोदी के साथी रहे सुधीर जोशी ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा, ‘स्कूल में पढ़ाई खत्म होने पर शाम को हम अपनी किताबें घर पर छोड़ सीधे शाखा में पहुंचते थे।’ मोदी के बड़े भाई सोमभाई ने बताया, ‘पिता, माता की मदद और स्कूल में पढ़ाई के बीच नरेंद्र शाखा को सबसे ज्यादा अहमियत देता था। जब नरेंद्र ने नमक और तेल खाना छोड़ने का फैसला किया था तो हमें लगा कि कहीं वह भिक्षा मांगकर गुजारा तो नहीं करेगा।’
दो साल तक रहे ‘अज्ञातवास’ में
नरेंद्र मोदी के बड़े भाई सोमभाई बताते हैं कि 18 साल की उम्र में मोदी घर छोड़कर चले गए थे। वे करीब दो साल तक ‘अज्ञातवास’ में रहे। बताया जाता है कि इन दो सालों में वे हिमालय की खाक छानते रहे। हालांकि, किसी को भी अच्छी तरह से यह नहीं मालूम कि इस दौरान मोदी कहां-कहां गए और क्या-क्या किया। नरेंद्र मोदी के बड़े भाई सोमभाई ने एक इंटरव्यू में बताया, ‘मोदी 18 साल की उम्र में दो सालों के लिए गायब हो गए थे। मां और हम सभी इस बात को लेकर परेशान थे कि नरेंद्र कहां चला गया। लेकिन दो साल बाद एक दिन वह घर लौट आया। उसने हमें बताया कि वह अहमदाबाद जाकर हमारे चाचा बाबूभाई की कैंटीन में काम करेगा।’
सिटी बस स्टैंड पर चलाते थे कैंटीन
वडनगर में मोदी के परिवार के पड़ोसी रहे एक शख्स के मुताबिक, ‘नरेंद्र के अज्ञातवास से लौट आने पर घर में उनके निजी जीवन को लेकर कलह होने लगी। इससे नाराज होकर नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर घर छोड़ दिया।’ इसके बाद मोदी अहमदाबाद पहुंचे जहां उनके चाचा बाबूभाई सिटी बस स्टैंड पर कैंटीन चलाते थे। मोदी ने कुछ दिन वहां काम किया। इसके बाद गीता मंदिर के नजदीक चाय का ठेला लगाने लगे। संघ के प्रचारक के
मुताबिक,’कुछ प्रचारक सुबह की शाखा से लौटते समय मोदी के ठेले पर चाय पीने आते थे।’ धीरे-धीरे मोदी की बातों ने उन पर असर किया। चूंकि, मोदी वडनगर में आरएसएस से जुड़े रह चुके थे, इसलिए संघ के प्रचारकों ने उन्हें संघ के राज्य मुख्यालय में असिस्टेंट के तौर पर काम करने के लिए बुला लिया। यहीं पर मोदी की मुलाकात एक बार फिर से वकील साहब से हुई थी।
सबसे पहले हम हम वर्ष 1977 के समय में चलते हैं। यह वही समय था जब देश आपातकाल का सामना कर रहा था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरे देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। इस समय राजनेताओं को धड़ाधड़ जेल में बंद किया जा रहा था, जिससे पूरे देश में बवाल मचा हुआ था। राजनीतिज्ञों के साथ इसका शिकार मीडिया को भी बनना पड़ा था। तब अनेक राजनीतिज्ञों और संघ के स्वयंसेवकों ने पुलिस से बचने के लिए अनोखा रास्ता खोज निकाला था। इसमें मोदी भी शामिल थे।
साधारण परिवार में जन्में नरेंद्र अपने विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नियमों का पूरी कर्त्वयपरायणता की भावना से पालन किया।
संघ में शामिल होने के बाद से मोदी सिर्फ एक बार ही अपने घर गए थे, वह भी पिता के निधन के समय।
ब्रह्मकुमारी की प्रमुख दादी जानकी के साथ सरदार मैमोरियल ऑडिटोरियम में बातचीत करते नरेंद्र मोदी। (मोदी के शासनकाल में गुजरात एक मात्र ऐसा राज्य बनकर सामने आया है जहां ज्योतिग्राम योजना के तहत करीब 18000 गांवों में 24 घंटे बिजली सप्लाई की गई।
बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष कुशाभाई ठाकरे से उन दिनों नरेंद्र मोदी की काफी नजदीकियां थी। अक्टूबर 2001 में एक कार्यक्रम के दौरान ठाकरे के पैर छूते नरेंद्र मोदी। (गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य के आर्थिक विकास पर खासा ध्यान दिया है। मोदी ने बतौर मुख्यमंत्री गुजरात को ऑटो हब के रूप में स्थापित किया।)
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में ही दुनिया की सबसे सस्ती कार टाटा नैनो का प्लांट गुजरात में शुरू हुआ। आज दुनिया में काफी चर्चा बटोर चुकी नैनो ने अपने साथ गुजरात को भी दुनिया भर में काफी नाम दिलाया है।
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में ही दुनिया की सबसे सस्ती कार टाटा नैनो का प्लांट गुजरात में शुरू हुआ। आज दुनिया में काफी चर्चा बटोर चुकी नैनो ने अपने साथ गुजरात को भी दुनिया भर में काफी नाम दिलाया है।
1980 के दशक में कुछ ऐसा दिखते थे मोदी। 1980 के दशक में नरेंद्र मोदी राजनीति में अपना सिक्का जमाने के लिए प्रयासरत थे। तब मोदी गुजरात के लिए संगठन के लिए महासचिव की भूमिका निभा रहे थे। (आज गुजरात में टाटा नैनो सहित कई ऑटोमोबाइल कंपनियों के प्लांट हैं। आर्थिक जगत में जल्द ही गुजरात में मारुति का प्लांट भी खुलने की चर्चा है।)
भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के साथ पोज देकर फोटो खिंचवाते नरेंद्र मोदी। (10 साल पहले तक जिस गुजरात ने विश्व बैंक से 50 हजार करोड़ डॉलर लोन ले रखा था उसी राज्य ने आज विश्व बैंक में 100 हजार करोड़ डॉलर जमा कर रखा है।)
अपनी जवानी के दिनों में साथी कार्यकर्ता से बात करते नरेंद्र मोदी। (पिछले कुछ साल में हुए गुजरात के विकास को लेकर देश ही नहीं बल्कि अमेरिका, चीन और ब्रिटेन जैसे सभी बड़े देशों ने भी प्रशंसा की है।)
फुर्सत के पल में आंख बंदकर ध्यान करते नरेंद्र मोदी। (पर्यटन के लिहाज से भी मोदी के शासनकाल में गुजरात का खासा विकास हुआ है। मोदी ने बॉलीवुड महानायक अमिताभ बच्चन को गुजरात पर्यटन का ब्रांड एम्बेस्डर बनाकर राज्य में पर्यटन को एक नई ऊंचाई दी।)
बॉलीवुड महानायक अमिताभ बच्चन के साथ एक कार्यक्रम में मोदी। (नरेंद्र मोदी 7 अक्टूबर 2001 से गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हैं। मोदी का राजनीतिक कॅरियर हमेशा ही विवादों से घिरा रहा है। 2002 में हुए गुजरात दंगों के बाद उन्हें देश ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारी आलोचना का सामना करना पड़ा है।)
जवानी के दिनों में कुछ ऐसे दिखते थे गुजरात के वर्तमान मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी। (मोदी के लिए सबसे बड़ी बात यह रही है कि आज तक उनका नाम किसी घोटाले में नहीं आया है और उनके नेतृत्व क्षमता पर भी कोई सवाल खड़ा नहीं हुआ है। मोदी के कार्यकाल में गुजरात का जो विकास हुआ है, इसके लिए दुनिया भर के कई देश उनकी तारीफ कर चुके हैं।)
टाटा समूह के प्रमुख रतन टाटा के साथ गुजरात की आर्थिक संभावनाओं को लेकर बात करते मोदी। (मार्च में ‘टाइम’ ने अपने कवर पर मोदी की तस्वीर प्रकाशित की और कहा कि वे बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर 2014 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के पीएम पद के सम्भावित उम्मीदवार और पार्टी महासचिव राहुल गांधी के सामने कड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं।)
पूजा-अर्चना करते नरेंद्र मोदी।
(विकास की राह पर काफी आगे बढ़ चुके मोदी जाहिर है लौटना नहीं चाहते। उनके विकास के फल चखने वाले कारपोरेट घराने, छोटे उद्यमी, गुजरात को कृषि में अव्वल दर्जा दिलाने वाले किसान और खेतिहर और सबसे बढक़र मोदी के राज में सुख-शांति से जी रहा विशाल मध्यवर्ग भी नहीं चाहता कि मोदी फिर उस गच्चा देने वाले मोड़ पर लौटें।)
एक कार्यक्रम में तस्वीरों को निहाराते हुए। (देश-दुनिया को विकास पुरूष मोदी की ज्यादातर लोगों को मुग्ध करने वाली कहानी में गोधरा और फिर दंगों का एक खतरनाक मोड़ है जिसे उन्होंने तो अपने जीवट के बूते धीरज से पार कर लिया है लेकिन दूसरे उस मोड़ को पार नहीं कर पा रहे हैं या पार करना नहीं चाहते।)
एक कार्यक्रम में तस्वीरों को निहाराते हुए। (देश-दुनिया को विकास पुरूष मोदी की ज्यादातर लोगों को मुग्ध करने वाली कहानी में गोधरा और फिर दंगों का एक खतरनाक मोड़ है जिसे उन्होंने तो अपने जीवट के बूते धीरज से पार कर लिया है लेकिन दूसरे उस मोड़ को पार नहीं कर पा रहे हैं या पार करना नहीं चाहते।)
एक कार्यक्रम में तस्वीरों को निहाराते हुए। (देश-दुनिया को विकास पुरूष मोदी की ज्यादातर लोगों को मुग्ध करने वाली कहानी में गोधरा और फिर दंगों का एक खतरनाक मोड़ है जिसे उन्होंने तो अपने जीवट के बूते धीरज से पार कर लिया है लेकिन दूसरे उस मोड़ को पार नहीं कर पा रहे हैं या पार करना नहीं चाहते।)
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