-एक साल में 2 हजार रजिस्ट्रियां हुर्इं कम
भोपाल।
बीते दो साल से जमीन की कलेक्टर गाइडलाइन में दरें बढ़ने से रजिस्ट्रियों की संख्या घटी है। रियल स्टेट बाजार के एक्सपर्ट भी दरें बाजार भाव से अधिक होने की बात कर रहे हैं। इसका सीधा नुकसान सरकारी खजाने को हो रहा है। इस बार भी प्रस्तावित गाइडलाइन की दरों में इजाफा हुआ तो राजस्व पर असर देखा जाएगा।
लगातार बढ़ी दरों के कारण बाजार पर भी असर पड़ा है। वहीं घर का सपना देखने वाले पर्याप्त बजट न होने के चलते अवैध बसाई जा रही कॉलोनियों में प्लॉट खरीद रहे हैं। इस बात का खुलासा सोमवार व बीते दिसंबर माह में कई जमीनों पर लगाई रोक से होता है। दूसरा लोग भी सरकार की नजर में अपनी पार्टी का वैधानिक मालिक नहीं हो पाते।
-बढ़ेंगी भविष्य में परेशानियां
रजिस्ट्री न होने के कारण लोगों को उनकी प्रॉपर्टी का वैध मालिकाना हक नहीं मिल पा रहा है। इसके चलते जमीन के दस्तावेजों में गड़गड़ियां सामने आ रही हैं। दूसरा यह परेशानियां भविष्य में और भी बढ़ेंगी। गाइडलाइन में दरें बढ़ने के चलते अंतत: राजस्व का नुकसान ही होता है। क्योंकि जितनी रजिस्ट्रियां कम होगी, राजस्व उतना कम सरकार को मिलेगा।
-5 हजार रजिस्ट्रियां हुर्इं कम
जिला पंजीयक कार्यालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार बीते साल 2013 के जनवरी माह के अंत तक 40 हजार 855 रजिस्ट्रियां हो चुकी थीं। दूसरी ओर इस वर्ष अब तक केवल 38 हजार 804 रजिस्ट्रियां हुई हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो बीते साल से अब तक 2 हजार रजिस्ट्रियां कम हुई हैं। वहीं 2 साल पहले 2011-12 के आंकड़ों की तुलना में इस साल 5 हजार रजिस्ट्रियां कम हुई हैं। इस तरह शासन को राजस्व में साढ़े सात फीसदी कम मिले।
-हां पड़ता है प्रभाव
वरिष्ठ जिला पंजीयक एनएस तोमर भी मानते हैं कि गाइडलाइन में कीमतें बढ़ने से सरकार को मिलने वाले राजस्व में भी प्रभाव पड़ता है। रजिस्ट्रियों की संख्या में कमी होती है। अब जमीनों का बाजार मूल्य वास्तविक कीमतों के अनुसार ही तय किया जाएगा। जिससे इसका रजिस्ट्रियों पर प्रभाव न पड़े। उल्लेखनीय है बीते दो साल से गाइडलाइन बनाने के दौरान बाजार मूल्य में सौ से दो सौ प्रतिशत तक बढ़ोतरी की जा रही है।
-पॉवर आॅफ अटॉर्नी पर चल रहा काम
लगातार दरें बढ़ाएं जाने से वास्ताविक बाजार भाव की अपेक्षा गाइडलाइन में दरें अधिक हो गर्इं हैं। गाइडलाइन में कई क्षेत्रों की दरों को देख कर आंकलन किया जा सकता है। यही कारण है कि जिले में लोग पॉवर आॅफ अटॉर्नी और रजिस्टर्ड एग्रीमेंट से काम चला रहे हैं। वहीं प्रापर्टी का काम भी इसी बेस पर चल रहा है। इससे पांच हजार रुपए तक कम हो जाते हैं। लेकिन इससे उन्हें जमीन का वैधानिक मालिकाना हक नहीं मिलता। दूसरा पॉवर आॅफ अटॉर्नी केवल एक साल के लिए ही मिलती है। अंत में किसी प्रकार का विवाद होने पर जमीन का मालिकानाहक नहीं दिखा पाते। इसके लिए अंतिम चारा केवल रजिस्ट्री ही होती है।
भोपाल।
बीते दो साल से जमीन की कलेक्टर गाइडलाइन में दरें बढ़ने से रजिस्ट्रियों की संख्या घटी है। रियल स्टेट बाजार के एक्सपर्ट भी दरें बाजार भाव से अधिक होने की बात कर रहे हैं। इसका सीधा नुकसान सरकारी खजाने को हो रहा है। इस बार भी प्रस्तावित गाइडलाइन की दरों में इजाफा हुआ तो राजस्व पर असर देखा जाएगा।
लगातार बढ़ी दरों के कारण बाजार पर भी असर पड़ा है। वहीं घर का सपना देखने वाले पर्याप्त बजट न होने के चलते अवैध बसाई जा रही कॉलोनियों में प्लॉट खरीद रहे हैं। इस बात का खुलासा सोमवार व बीते दिसंबर माह में कई जमीनों पर लगाई रोक से होता है। दूसरा लोग भी सरकार की नजर में अपनी पार्टी का वैधानिक मालिक नहीं हो पाते।
-बढ़ेंगी भविष्य में परेशानियां
रजिस्ट्री न होने के कारण लोगों को उनकी प्रॉपर्टी का वैध मालिकाना हक नहीं मिल पा रहा है। इसके चलते जमीन के दस्तावेजों में गड़गड़ियां सामने आ रही हैं। दूसरा यह परेशानियां भविष्य में और भी बढ़ेंगी। गाइडलाइन में दरें बढ़ने के चलते अंतत: राजस्व का नुकसान ही होता है। क्योंकि जितनी रजिस्ट्रियां कम होगी, राजस्व उतना कम सरकार को मिलेगा।
-5 हजार रजिस्ट्रियां हुर्इं कम
जिला पंजीयक कार्यालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार बीते साल 2013 के जनवरी माह के अंत तक 40 हजार 855 रजिस्ट्रियां हो चुकी थीं। दूसरी ओर इस वर्ष अब तक केवल 38 हजार 804 रजिस्ट्रियां हुई हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो बीते साल से अब तक 2 हजार रजिस्ट्रियां कम हुई हैं। वहीं 2 साल पहले 2011-12 के आंकड़ों की तुलना में इस साल 5 हजार रजिस्ट्रियां कम हुई हैं। इस तरह शासन को राजस्व में साढ़े सात फीसदी कम मिले।
-हां पड़ता है प्रभाव
वरिष्ठ जिला पंजीयक एनएस तोमर भी मानते हैं कि गाइडलाइन में कीमतें बढ़ने से सरकार को मिलने वाले राजस्व में भी प्रभाव पड़ता है। रजिस्ट्रियों की संख्या में कमी होती है। अब जमीनों का बाजार मूल्य वास्तविक कीमतों के अनुसार ही तय किया जाएगा। जिससे इसका रजिस्ट्रियों पर प्रभाव न पड़े। उल्लेखनीय है बीते दो साल से गाइडलाइन बनाने के दौरान बाजार मूल्य में सौ से दो सौ प्रतिशत तक बढ़ोतरी की जा रही है।
-पॉवर आॅफ अटॉर्नी पर चल रहा काम
लगातार दरें बढ़ाएं जाने से वास्ताविक बाजार भाव की अपेक्षा गाइडलाइन में दरें अधिक हो गर्इं हैं। गाइडलाइन में कई क्षेत्रों की दरों को देख कर आंकलन किया जा सकता है। यही कारण है कि जिले में लोग पॉवर आॅफ अटॉर्नी और रजिस्टर्ड एग्रीमेंट से काम चला रहे हैं। वहीं प्रापर्टी का काम भी इसी बेस पर चल रहा है। इससे पांच हजार रुपए तक कम हो जाते हैं। लेकिन इससे उन्हें जमीन का वैधानिक मालिकाना हक नहीं मिलता। दूसरा पॉवर आॅफ अटॉर्नी केवल एक साल के लिए ही मिलती है। अंत में किसी प्रकार का विवाद होने पर जमीन का मालिकानाहक नहीं दिखा पाते। इसके लिए अंतिम चारा केवल रजिस्ट्री ही होती है।
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