मंगलवार, 2 जुलाई 2013

बिलजी विभाग ने दिया आश्रितों को ‘झटका’

-नई अनुकंपा नीति से नहीं मिल पायगा विभाग में रोजगार
-कर्मचारी संगठनों ने शुरू किया विरोध 
भोपाल। 
मप्र विद्युत वितरण कंपनी ने अनुकंपा नियुक्ति की राह देख रहे आश्रितों को बड़ा झटका दिया है। बीते 13 साल से अनुकंपा की बाट जोह रहे संभावित 20 हजार आश्रित इस निर्णय से प्रभावित होंगे। कुछ नियुक्तियों में रिआयत दी है, लेकिन यह तर्क संगत नहीं बताई जा रही है। 
निर्णय को लेकर कर्मचारी संगठन विरोध में उतर आए हैं। यह सब बिजली कंपनी द्वारा लागू की गई नई अनुकंपा नीति के तहत होगा। संशोधित नीति लागू होने से परिवार के एक सदस्य को रोजगार का सहारा मिला असंभव हो जाएगा। नवीन संशोधित नीति में नियम कायदों का ऐसा पेंच फंसाया है, जिससे सीधे तौर पर नहीं निपटा जा सकता है। 

-इनकी होगी भर्ती 
नवीन संशोधित नीति के तहत कंपनी के कार्यालय सहायक वर्ग-3, शीघ्र लेखन, कनिष्ठ सहायक, लेखा पाल, कनिष्ठ सहायक, राजस्व अधिकारी, विधि सहायक, लाइन सहायक, परीक्षण सहायक इन सभी पदों पर ही अनुकंपा नियुक्ति को अधिकृत किया गया है। नीति में आश्रित की योग्यता या मृत कर्मचारियों का ध्यान नहीं रखा गया है। इसी से उनके आश्रितों को वाजिब हक नहीं मिल पाएगा। एक और अनिवार्यता की गई है कि इन पदों के लिए आश्रित को आईटीआई होना या टेक्निकली डिग्री का होना आवश्यक है। 

-ऐसी जताई जा रही संभावना 
ेिबजली कर्मचारियों के संगठनों ने कहा, यह सरकार द्वारा निजीकरण को बढ़ावा दिया जाना है। सरकार की मंशाएं इस नीति से खुलती है। साथ ही नए नियमों पर सवालिया निशान खड़े किए हैं कि 13 साल से क्यों आस का आसमान दिखाते रहे। दूसरा जगह खाली न होने का बहाना देकर आश्रितों को लंबे समय तक नियुक्तियां नहीं देंगे। 

-दांव पर भविष्य 
नवीन नीति से कई अड़चनें हैं, इससे प्रत्यक्ष तौर पर प्रदेश के नौ हजार और अप्रत्यक्ष ेतौर पर यह आंकड़ा करीब 20 हजार के पास पहुंचता है। आश्रितों के परिवारों से एक का नियुक्ति देना है, अब इनका भविष्य दांव पर लग गया है। नियुक्ति के यह प्रकरण वर्ष 1984 के बाद से लटके पड़े हैं। कर्मचारी नेताओं की माने तो नीति में संशोधन नहीं किया गया तो परिवारों को तो लाभ मिलेगा ही नहीं, दूसरा भर्तियों में भी नियम चलाए जाएंगे। वहीं निजी स्वार्थ के लिए राजनीतिक सख्स ठेके पर काम कराएंगे। 

-सामने आई यह गलतियां 
कंपनी ने नियुक्ति को लेकर कैडर निर्धारित किया है। ऐसी स्थिति में आश्रित कितलर भी योग्य क्यों न हो, कंपनी उसे केवल कुछ ही पदों पर नियुक्ति देगी। नीति में स्पष्ट लिखा है, कंपनी में पद रिक्त होने पर ही आश्रित को नियुक्ति दी जाएगी। चयन के बावजूद यदि कंपनी में पद खाली नहीं है तो आश्रित को इसके लिए इंतजार करना होगा। नीति में इस बात का भी उल्लेख किया गया है, चयन दिनांक के पांच वर्ष की अवधि में आश्रित की पोस्टिंग नहीं होती है तो उसके बाद उसे एक लाख रुपए वेतन मद से भुगतान कर हमेशा के लिए घर बैठा दिया जाएगा। इसके बाद आश्रित रिक्त पद के लिए दावा-आपत्ति प्रस्तुत नहीं कर सकता। बताया जाता है विद्युत वितरण कंपनी बनने से पहले वर्ष 1989 से विद्युत मंडल में नियुक्तियों पर प्रतिबंध लागू था। नीति में कंपनी ने 10 अप्रैल 2012 के बाद के ही प्रकरणों पर नियुक्ति देने की बात की है। इससे पहले के आश्रितों को किसी प्रकार का कोई लाभ नहीं दिया जाएगा। साथ ही किसी प्रकार की सुनवाई का भी मौका नहीं दिया गया है। 

-निराकरण नीति अनुसार 
यह नीति कंपनी द्वारा तैयार की गई है। ऐसे भी सभी प्रकरणों में कंपनी की नीति के अनुसार ही निराकरण किया जाएगा। 
सुखवीर सिंह,एमडी, मप्र.पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी 

-संवैधानिक अधिकार खत्म 
मनमाने ढंग तरीके से कंपनी ने नीति बनाई है। यह संवैधानिक अधिकार को खत्म किए जाने जैसा है। नवीन नीति से आश्रितों को लाभ का रास्ता सीधे तौर पर बंद हो जाएगा। इसका हम विरोध कर रहे हैं। 
लक्ष्मण सिंह ठाकुर, क्षेत्रीय सचिव, मप्र. विद्युत कर्मचारी फेडरेशन

 

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