-मामला प्रेम सिटी का, बिना अनुमति बेच रहे लोगों को प्लाट
-न टीएंडसीपी से एप्रूवल न जमीन का डायर्वसन
-100 रुपए के स्टॉप पर हो गई लिखा पढ़ी
भोपाल।
विदिशा रोड, मालीखेड़ी की रकबा 1.793 हैक्टेयर (4.43 एकड़) जमीन पर बिना अनुमति प्लॉट बेचने वाले अब जेल जाएंगे। गोविंदपुरा एसडीएम कोर्ट में हुई दो पेशियों में जालसाज प्रमाणिक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाएं हैं। इसी माह में कोर्ट इस में जालसाजी का फैसला सुनाएगी।
मालीखेड़ी के खसरा क्र.-119/2-121 रकबा 1.793 हैैक्टेयर (4.43 एकड़) भूमि पर पार्षद पंकज चौकसे, बिल्डर सचिन गुप्ता, मनोज कुशवाह और सूरज प्रेम सिटी के नाम से प्लॉटिंग कर रहे थे। ग्राहकों को दिए ब्रोसर के हिसाब से ये अलग-अलग साइज के 202 प्लॉट काट रहे थे। इसमें करीब 75 प्लॉट इन्होंने बेच दिए। मामले को विस्तार पूर्वक दबंग दुनिया ने 8 और 24 मई, 2013 के अंक में उठाया था। खबरों के प्रकाशन के बाद प्रशासन हरकत में आया। खबरों पर संज्ञान लेते हुए एसडीएम गोविंदपुरा ने 24 मई को ही उक्त जमीन की खरीदी-बिक्री पर रोक लगा दी। इसके बाद बिना डायवर्शन, नगर तथा ग्राम निवेष व सक्षम प्राधिकारी द्वारा बिना वैधानिक अनुमति लिए भूखंड विक्रय को लेकर कोर्ट ने नोटिस जारी कर दिया। कोर्ट ने भूखंड विक्रय करने वालों के साथ मूल जमीन के मालिक मो. शमसेर पुत्र मो. रईस, श्रीमती आमनादी (आमनाबी) पत्नी करीम खां को जवाब तलब किया। दो बार इस मामले में पेशी हो चुकी है, लेकिन जालसाज किसी प्रकार के प्रमाणिक दस्तावेज कोर्ट को उपलब्ध नहीं करा पाए। उक्त जमीन की पॉवर आॅफ अटर्नी मनोज कुशवाह और किसान मो. शमसेर के बीच हुई थी। इसी माह कोर्ट ने फिर तलब किया है। कोर्ट ने पूछा है, क्यों न आप पर जाल साजी का प्रकरण सहित चारसौबीसी का केस बनाते हुए जेल भेजने की कार्रवाई की जाए। कोर्ट ने बचाव पक्ष के वकील द्वारा किए गए अनुरोध के बाद प्रमाणिक व अनुमति संबंधि दस्तावेज देने को कहा है।
-होगी कार्रवाई
कोर्ट में प्रकरण प्रचलन में है। बचाव पक्ष यदि किसी प्रकार के साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाता है तो जाल साजी व प्लॉटिंग करने वालों को जेल भेजने की कार्रवाई की जाएगी।
अमरजीत सिंह पवार, एसडीएम, गोविंदपुरा
-ये अनुमतियां जरूरी
१. टीएंडसीपी से जमीन का नक्शा एप्रूवड होना चाहिए।
२. जहां जमीन है, उससे संबंधित क्षेत्र के एसडीएम (अनुविभागीय अधिकारी) द्वारा भूमि का डायर्वसन (व्यापवर्तन) आदेश पास होना चाहिए।
३. नगर निगम से कालोनी विकास अनुमति होनी चाहिए।
४. संबंधित नजूल कार्यालय की नजूल एनओसी होना आवश्यक है। इसमें प्रमाणित हो कि उक्त भूमि शासकीय नहीं है तथा शासन का कोई पूर्व का राजस्व शेष नहीं है। शासन को इस भूमि पर कालोनी विकसित करने से कोई आपत्ति नहीं है।
५. विक्रय पत्र का पंजीयन एवं अनुबंध का पंजीयन कराया जाना अनिवार्य है, जोकि जोकि के्रता के अधिकार का सुरक्षित करता है। इसे न्यायालयीन कारर्वाई में बतौर साक्ष्य प्रस्तुत किया जा सकता है।
६. जो भी बिल्डर-कालोनाइजर कालोनी विकसित कर रहा है, उसके पास नगर निगम द्वारा जारी कालोनाइजर लायसेंस उक्त भूमि के लिए होना चाहिए।
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