
-अवार्ड और अनुमोदन आदेश में नहीं दर्शाए बोर्ड के अधिपत्य वाले खसरे
-१९८९ को जारी हुई अधिसूचना में शामिल थे ये खसरे
हेमन्त पटेल, भोपाल।
०९८९३७१११४७.
मेन अयोध्या बाईपास रोड से लगी शासन की करीब साढ़े पांच एकड़ जमीन पर श्रीराम कालोनाईजर व कम्फर्ट हेरिटेज ने कब्जा कर कालोनी और शॉपिंग काम्पलेक्स बना दिए हैं। वर्तमान में ७० करोड़ की ये जमीन निजी हाथों में चली गई है। शातिर बिल्डरों ने अधिकारियों से मिली भगत कर शासकीय दर्शाने वाले खसरों को 'भू-अर्जन' (अवार्ड) और 'आयुक्त अनुमोदन' आदेश से हटावा दिया, जबकि अधिसूचना में यह खसरे शामिल हैं। इन खसरों को अभी भी अधिसूचना देखा जा सकता है।
शासकीय भूमि को कब्जाने का काम १९९१ में ही हो गया था। इसके बाद कालोनी सहित अन्य निर्माण किए गए। वर्तमान में मल्टी स्टोरी का निर्माण चल रहा है, जो खसरा न. १४१ के हिस्से में है। यह भूमि मप्र हाउसिंग बोर्ड के कब्जे की है। मामला नरेला शंकरी के विस्थापित किसानों के लिए लड़ रहे योगेन्द्र कुमार पाठक और सुरेश कुमार अग्रवाल द्वारा अधिसूचना के अध्ययन के बाद सामने आया। श्री पाठक ने अधिकारियों की साठ-गाठ की शिकायत राज्यपाल, मुख्यमंत्री से लेकर अनुविभागीय अधिकारी गोविन्दपुरा को की है। खास बात यह है कि १९९१ में अधिगृहित की गई उक्त भूमि के साथ पास ही लगी अन्य भूमि पर विवाद चल रहा है। श्री पाठक के अनुसार मप्र गृह निर्माण मंडल द्वारा नरेलाशंकरी के किसानों की कृषि भूमि १९९१ अवैध रूप से अधिग्रहित (कब्जा) की गई थी।
-किस खसरे पर क्या निर्माण
खसरा क्र.- १४६
टनाटन ढाबा, मैरिज गार्डन, पीडब्ल्यूडी की सड़क (वर्तमान बाई पास अध्योध्या रोड), श्रीराम कालोनी बनी हुई है।
खसरा क्र.- २९५/१४१
खसरा क्र.-१४१ के कुछ हिस्से पर श्रीराम ने बनाई अवैध श्रीराम कैंपस (कालोनी) बनाया है। इसी तरह खसरा क्र.- १४४ की साढ़े तीन एकड़ में कम्फर्ट हेरीटेज का कब्जा। वहीं खसरा क्र.-१४५ जो हाउसिंग बोर्ड के नाम है। इसके कुछ हिस्से पर भी कम्फर्ट हेरीटेज ने अवैध निर्माण किया है।
-ऐसे समझे अधिसूचना, अवार्ड और अनुमोदन
अधिसूचना:-
राज्य शासन अपनी किसी एजेंसी जैसे, हाउसिंग बोर्ड, बीडीए और पीडब्ल्यूडी सहित अन्य के लिए भूमि अधिग्रहित करने से पहले भूमि अधिग्रहण कानून १८९४ की धारा-४(1) तथा धारा-६ अधिसूचना जारी करती है। इसका प्रकाशन राजपत्र सहित समाचार पत्रों किया जाता है। राजपत्र में शासन द्वारा ली जा रही भूमियों के खसरे व रकबा का शामिल किया जाता है। राजपत्र में प्रकाशन के साथ भूमियों के खसरों-रकबों में फेर-फार नहीं की जा सकती। इस प्रकाशन को ही अधिसूचना कहते हैं।
अवार्ड:-
अधिसूचना के बाद, सार्वजनिक प्रयोजन हेतु शासन द्वारा ली जारी निजी भूमियों की कीमत भूमि मालिकों को देने के लिए भू-अर्जन अधिकारी द्वारा भूमि की कीमत तय की जाती है। तथा भूमि अधिग्रहण (कब्जा) के पहले भूमि की कीमत मुआवजा के रूप में भू-स्वामियों को दी जाती है। इसके लिए जारी आदेश को ही अवार्ड कहा जाता है।
आयुक्त द्वारा अनुमोदन:-
मप्र शासन द्वारा ऐसा निर्देशित है कि अवार्ड यदि दस लाख रुपए से अधिक है तो यह अवार्ड संभाग आयुक्त द्वारा अनुमोदित होने के बाद ही पारित किया जाए। संभाग आयुक्त द्वारा किए जाने वाले अनुमोदन को 'आयुक्त द्वारा अनुमोदनÓ कहा जाता है। १० लाख से अधिक के अवार्ड के लिए सीधे-सीधे भू-अर्जन अधिकारी को अधिकार नहीं दिया गया है।
-अधिसूचना से पहले ये
अधिसूचना से पहले संबंधित विभाग अपनी आवश्यकता अनुसार भूमि चयन कर, उसकी उपयोगिता की जांच कर एक रिपोर्ट अपने ही विभाग मुख्यालय को सौंपती है। इसे जांच कर विभाग अधिग्रहण के लिए राजस्व विभाग को भेजा जाता है। राजस्व विभाग इस पर जांच के बाद विभाग को अनुमति देता है। विभाग इस अनुमति के आधार पर एक पत्र कलेक्टर भू-अर्जन अधिकारी को देता है। भू-अर्जन अधिकारी उक्त आवेदन पर कार्रवाई करते हुए तहसीलदार द्वारा प्रश्नाधिन भूमि का क्षेत्रिय परीक्षण करा, किसी विवाद में न होने पर अधिसूचना की कार्रवाई करता है। इसी के साथ भू-अर्जन अधिकारी विभाग को भूमि अधिग्रहित का अधिकार देता है।
-ऐसे समझे शासकीय और निजी घालमेल
अधिसूचना में अधिग्रहित की जा रही भूमियों में खसरा न.-144 और १४६ की लगभग साढ़े पांच एकड़ भूमि शामिल थी। जिसे अवार्ड में शामिल ही नहीं किया गया। इस तरह भू-अर्जन अधिकारी ने बिल्डरों को उक्त भूमि दे डाली। गौर करने वाली बात यह है कि कमिश्नर, कलेक्टर और हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों ने इस पर कोई आपत्ति ही नहीं दर्ज कराई। जबकि तीनों स्तर के अधिकारियों के समक्ष ही अधिसूचना और अवार्ड होता है। इस तरह शासकीय कब्जे वाली भूमि निजी हाथों में चली गई।
-हटाया जाएगा कब्जा
प्रकरण मिला है, इसकी जांच भी शुरू करा दी गई है। शासन की जमीन पर जिन बिल्डरों ने कब्जा जमाया है, उसे हटाया जाएगा।
अमरजीत सिंह पंवार, एसडीएम, गोविन्दपुरा
-बिल्डर-अधिकारियों की मिली भगत
अधिकारियों की मिली-भगत से ही शासन की जमीन पर बिल्डरों ने कालोनी और कॉॅम्प्लेक्स बनाए हैं। अधिकारियों की मिली भगत से इन जमीनों के खसरे अवार्ड और अनुमोदन कागजों से हटवा दिए।
योगेन्द्र कुमार पाठक, संस्थापक, नरेलाशंकरी विस्थापित पुनर्वास अभियान
-जांच नहीं करते अधिकारी
हम सालों किसानों की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन विभागीय अधिकार इस तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं। पूर्व के जिन अधिकारियों ने मिली भगत कर जो किया है, उसकी जांच भी विभागीय अधिकारी नहीं करना चाहते। इसी के चलते किसानों को न्याय नहीं मिल पा रहा है।
सुरेश कुमार अग्रवाल, पदाधिकारी, नरेलाशंकरी विस्थापित पुनर्वास अभियान
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