शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

जापान की संस्था ने ग्रामीण छात्रावासों में परोसा 'दाना', जापान ने विद्यार्थियों को खिलाया 'दाना'


-आधा सैकड़ा से अधिक बच्चों ने लिया खीर-पूड़ा का स्वाद
हेमन्त पटेल, भोपाल/सांची। 
जापान की संस्था एएससीए ओवरसीज कल्चरल एक्सचेंज ने भोपाल से २७ किमी दूर सांची के दो आदिवासी छात्रावासों में मिड-डे मील (मध्याह्न भोजन) योजना शुरू की है। संस्था ने इसे 'दाना' नाम दिया है। संस्था महाबोधि बौद्धिस्त सोसायटी के माध्यम से छात्रावासों में अध्ययनरत आधा सैकड़ा से अधिक बच्चों को भोजन परोस रही है। 
संस्था ने दिसंबर में घोषणा की थी कि वह जनवरी 2013 से कस्बे में हर महीने के दूसरे मंगलवार को दाना योजना के जरिए छात्रों को भोजन कराएगी। हालांकि बीते मंगलवार (२३जनवरी) को इसकी शुरुआत ने की। संस्था की अध्यक्ष जेंसी इटो ने बताया कि सांची के दो आदिवासी छात्रावासों को इस योजना के तहत चुना है। संस्था माह में एक दिन भोजन खिलाने के साथ विद्यार्थियों को अध्ययन सामग्री भी दे रही है। संस्था ने पहले दिन बच्चों को भोजन में पूड़ी, सब्जी, खीर, रायता, फल आदि का वितरण किया। दोनों छात्रावासों के 55 बच्चों ने भोजन का लुत्फ लिया, अच्छी बात ये है कि इन्हें पीने के लिए बिसलरी की पैक बोतलें दी गईं। सुश्री इटो ने बताया, हम भोजन में अच्छी क्वॉलिटी और गुणवत्ता को ध्यान में रख रहे हैं। 
 -श्रीलंका को जिम्मेदारी 
जापानी संस्था ने बच्चों को भोजन कराने की जिम्मेदारी सांची स्थित महाबोधि बौद्धिस्त सोसायटी ऑफ श्रीलंका को दी है। उल्लेखनीय है कि 'दाना' के तहत संस्था ने 2 लाख 40 हजार जापानी येन सोसायटी के अध्यक्ष वेनेगल विमला थिस्सा थेरे को सौंप दिए हैं। भारतीय रुपयों में यह राशि करीब एक लाख 65 हजार रुपए के करीब होती है। सोसायटी के इंचार्ज स्वामी चंद्ररतन ने बताया कि दोनों छात्रावासों में भोजन सोसायटी की निगरानी में वितरित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इसके अलावा बच्चों को कॉपियां, पेंसिल एवं अन्य शैक्षणिक सामग्री का वितरण किया जा रहा है। इसके पीछे केवल बच्चों का पढ़ाई मन लगा रहे उद्देश्य है। योजना को छात्रावासों के अधीक्षक, शिक्षक एवं स्थानीय नागरिकों ने सराहा है। 

-भोजन के बाद खुश दिखे बच्चे
बताया गया कि भोजन करने के बाद सभी बच्चे खुश नजर आ रहे थे। बच्चों ने बताया कि उन्होंने मध्याह्न भोजन के दौरान इतना स्वादिष्ट भोजन आज से पहले काी नहीं किया। हालांकि छात्रावास की ओर से भी कभी-कभी खीर पूड़ी खिलाया जाता है। बच्चे भोजन करने के बाद बिसलरी की बोतल से पानी पीकर खुश हो रहे थे।
-भोजन मेल बढ़ाता है
भोजन हम सबके लिए जरूरी है। 1954 से जापान में आर्थिक संपन्नता आने के बाद देश के सभी स्कूलों में दोपहर के भोजन की व्यवस्था की गई। स्कूलों में भोजन व्यवस्था होने से सभी बच्चे अपने सहपाठियों के साथ भोजन करते हैं। स्कूल में ये मायने नहीं रखता, बच्चा गरीब घर का है या अमीर। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है कि बच्चे एक दूसरे के साथ चीजों को साझा करना सीखें और उसके महत्व को समझें। मुझे उम्मीद है, समूह के इस प्रयास से इन बच्चों के चेहरे पर मुस्कान आएगी।
जेंसी इटो, अध्यक्ष, एएससीए ओवरसीज कल्चरल एक्सचेंज, जापान

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