शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

आज सचिन करेंगे सांची के राजू का सम्मान -मुम्बई में होगा कार्यक्रम -कनाडा के दंपति देंगे आर्थिक मदद


-बच्चों को पढ़ाकर करता है परिवार का भरण पोषण
हेमन्त पटेल, भोपाल। 
सांची के राजू कीर का शनिवार को मुम्बई में सचिन तेन्दुलकर सम्मानित करेंगे। चार बहनों के इकलौते भाई राजू विकलांग हैं। नि:शक्त होने के इस दंश के बावजूद उन्होंने पूरे गांव को शिक्षित करने का अभियान छेड़ रखा है। इसे वे आगे भी बढ़ा रहे हैं। 
इसके बाद शाम के वक्त साइकल का पंचर बना घरा का भरण-पोषण करते हैं। राजू पर केंद्रित एक स्टोरी एनडीटीवी इंडिया ने प्रसारित की थी। उनके इस काम से प्रेरित हो कनाडा के एक दंपति उन्हें 5 हजार रुपए प्रति माह देने का निर्णय लिया है। राजू प्रतिदिन सांची जनपद से लगे प्राथमिक शाला ग्राम बाघौद में बच्चों को पढ़ा रहे हैं। पढ़ाने का जुनून ऐसा कि वह अपने गांव बराईखास से बाघौद तक साइकिल से ही सफर करते हैं। १९९८ से अब तक बिना किसी अवकाश के बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। राजू खुद कहते हैं, पहले मन में जरूर आता था मैं नि:शक्त हूं, लेकिन इसे कभी दिमाग पर हावी नहीं होने दिया। पिता भी विकलांग हैं पर वे कभी हत-प्रभव नहीं हुए। 

कुछ ऐसा है राजू 
रायसेन जिले की सांची जनपद के ग्राम बराईखास में रहने वाला युवक राजू कीर बचपन से ही विकलांग है। चार बहनों के इकलौते राजू पर ही इनके भरण-पोषण की जिम्मेदारी है। शुरुआत में उन्होंने बिना शुल्क पढ़ाना शुरू किया। उनके जुनून को देख प्राथमिक शाला बाघौद में १९९८ में उसे अतिथि शिक्षक के रूप में रखा गया। राजू को यहां 100 रुपए प्रतिदिन मानदेय मिल रहा है। पढ़ाकर फ्री होने के बाद अपने गांव में राजू साइकिल का पंचर सुधारता है। राजू के पास रहने के लिए पक्का घर नहीं है, चारों बहनों के साथ गांव में एक झोंपड़ी में रहता है। 

-मुम्बई से आया आमंत्रण 
राजू ने बताया मुझे नहीं पता था भविष्य में क्या होगा, लेकिन मैं गांव में निवास करने वाले बच्चों को शिक्षित करना चाहता था। मैं अपनी शिक्षा दिक्षा के तौर पर इन्हें देना चाहता हूं। मेरा सोक कब जुनून बना और मैं कब इसमें जुट गया पता नहीं चला, हां पर मुझे इससे खुशी मिलती है। फिर मैंने इसे अभियान बना लिया। कुछ दिन पहले एनडीटीवी पर खबर प्रसारित हुई। इसी चैनल ने राजू को 2 फरवरी को मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में सम्मानित करने का निर्णय लिया है। गांव वालों का उस समय खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब राजू को समानित किया जाने का एक एक पत्र आया। 

-लक्ष्य के आगे विकलांगता छोटी 
मेरा सपना है, गांव में रहने वाला बच्चा अशिक्षित न रहे। मैं बच्चों को शिक्षत करने में जी-जान से जुटा हूं। खुशी मिलती है इस काम को करने में। अब इसके आगे मेरी विकलांगता खुद छोटी हो गई है। 
राजू कीर, अतिथि शिक्षक, बागौद 

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